जिस तेजी से देश में यूरिया की खपत तेजी से बढ़ रही है वह सरकार के लिए एक चुनौती बन सकता है। हर साल यूरिया की खपत में एक नये यूरिया संयंत्र की क्षमता से ज्यादा की बढ़ोतरी हो रही है। चालू वित्त वर्ष (2025-26) में देश में यूरिया की खपत 400 लाख टन को पार कर जाने की संभावना है जो घरेलू उत्पादन से करीब 100 लाख टन अधिक होगी। लगातार बेहतर मानसून और यूरिया की कीमत का बाकी सभी उर्वरकों से आधे से भी कम कीमत पर उपलब्ध होना इसकी बड़ी वजह है। इस साल सामान्य से बेहतर मानसून के चलते रबी का रकबा बढ़ने के साथ ही अधिक यूरिया खपत वाली फसलों का बढ़ता संभावित क्षेत्रफल इसकी मांग में इजाफा करेगा। वही चालू रबी सीजन की शुरुआत पिछले साल से करीब 26 लाख टन कम यूरिया स्टॉक से हुई है। पिछले साल 1 अक्तूबर, 2024 के देश में यूरिया के 63 लाख स्टॉक के मुकाबले इस साल 1 अक्तूबर 2025 को यूरिया का स्टॉक 37 लाख टन रहा।
चालू सील में खरीफ सीजन में भी देश के विभिन्न हिस्सों से यूरिया की किल्लत की खबरें लगातार आती रही हैं। ऐसे में रबी सीजन के शुरू में स्टॉक कम रहने का असर रबी सीजन में भी उपलब्धता पर पड़ सकता है। हालांकि पिछले कुछ साल में देश में उर्वरक उत्पादन के नये संयंत्र स्थापित हुए हैं इनमें सरकारी क्षेत्र की भारत उर्रवरक एवं रसायन से अलावा निजी क्षेत्र के संयंत्र भी शामिल हैं। इसके बावजूद देश में यूरिया का उत्पादन खपत से पिछड़ रहा है। निजी क्षेत्र के दो उर्वरक संयंत्रों में यूरिया का उत्पादन बंद भी हुआ है।
चालू साल के पहले छह माह में यूरिया की खपत 2.1 फीसदी बढ़ी है। वहीं पिछले साल 2024-25 में यूरिया की खपत 388 लाख टन रही थी जो अभी तक का सर्वोच्च स्तर था। ऐसे में चालू साल में रबी के बेहतर रकबे और यूरिया की अधिक खपत वाली फसलों के चलते इसकी खपत 400 लाख टन पार कर जाएगी।
सरकार ने यूरिया की खपत को कम करने के मकसद से और इसके गैर कृषि क्षेत्र में डायवर्जन को रोकने के लिए पूरे यूरिया उत्पादन को नीम कोटेट करने के साथ ही यूरिया के बैग की मात्रा को 50 किलो से घटार 45 किलो भी किया था। लेकिन इसका कोई असर यूरिया की खपत पर पड़ता नहीं दिखा है।
सरकार ने यूरिया की अधिकतम खुदरा कीमत (एमआरपी) को जनरवरी, 2015 से 5628 रुपये प्रति टन पर रखा हुआ है। यूरिया का दाम सरकार के नियंत्रण में है और उसे मौजूदा स्तर पर रखने के लिए सरकार सब्सिडी देती है। वहीं विनियंत्रित उर्वरकों के मामले में सरकार न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी स्कीम (एनबीएस) के तहत सब्सिडी देती है। उत्पादक और आयात कंपनियों को विनियंत्रित उर्वरकों को दाम तय करने की छूट है क्योंकि सरकार न्यूट्रियंट के आधार पर सब्सिडी देती है। हालांकि सरकार ने परोक्ष रूप से विनियंत्रित उर्वरकों और खासतौर से डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की कीमतों को तय करने की व्यवस्था जारी रखी है। डीएपी की कीमत 27000 रुपये प्रति टन और यह देश में यूरिया के बाद दूसरा सबसे अधिक खपत वाला उर्वरक है। खास बात यह है कि न्यूट्रिएंट के मामले में डीएपी भी उर्वरको से अधिक क्षमता वाला उर्वरक है। लेकिन ज्यादातर कॉम्पलेक्स और फॉस्फेटिक उर्वरक डीएपी से महंगे हैं। डीएपी की किल्लत के चलते इन उर्वरकों की खपत में बढ़ोतरी भी हुई है। उद्योग सूत्रों का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों में यूरिया की खपत होने की कोई संभावना नहीं दिखती है और कुछ साल में ही यह 450 लाख टन तक पहुंच सकती है। इसके पीछे जहां यूरिया की कम कीमत है वहीं राजनीतिक रूप से भी यूरिया की कीमत बहुत संवेदनशील मामला है।
जहां तक घरेलू उत्पादन की बात है तो देश में 2023-24 में यूरिया की उत्पादन 314 लाख टन रहा था लेकिन 2024-25 में यह घटकर 306 लाख टन रह गया वहीं चालू साल में अप्रैल से सितंबर, 2025 के दौरान देश में यूरिया उत्पादन पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 5.6 फीसदी घट गया। जबकि 2019 से 2022 के बीच देश में छह नये यूरिया उत्पादक संयंत्र लगे जिनकी सालाना क्षमता 13 लाख टन है। इनमें चंबल फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल की गडेपान (तीन) इकाई राजस्थान में, रामागुंडम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल की रामागुंडम इकाई तेलंगाना में, पश्चिम बंगाल के पानागढ़ में मैटिक्स फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल का संयंत्र और हिंदुस्तान उर्वरक एंड रसायन की उत्तर प्रदेश में गोरखपुर, झारखंड में सिंदरी और बिहार में बरौनी में स्थापित उर्वरक संयंत्रों से उत्पादन शुरू होने से देश यूरिया की उत्पादन क्षमता 219-20 की 24.5 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 314 ला टन हो गई।
लेकिन इसके साथ ही आंध्र प्रदेश के काकीनाडा स्थित नागार्जुन फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स और कानपुर के पनकी स्थित कानपुर फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्त में उत्पादन होने से उत्पादन क्षमता करीब 19 लाख टन घट गई।
जहां तक आपूर्ति की बात तो देश में अब यूरिया की उत्पादन क्षमता 300 से 310 लाख टन के बीच है। ऐसे बढ़ते आयात और अंतरराष्ट्रीय कीमतों में बड़े उतार-चढ़ाव से बचने के लिए देश में यूरिया की उत्पादन क्षमता में इजाफा करना होगा। अब यह सरकार को देखना है कि वह आयात पर निर्भरता बनाये रखती है या यूरिया उत्पादन कि घरेलू क्षमता बढ़ाती है।