गन्ना बकाया को इक्विटी में बदल किसानों को शेयर होल्डर बनाया जाए, इससे नई ब्रांड इक्विटी का होगा निर्माण

खुदरा निवेशकों में शेयर बाजार की लोकप्रियता बढ़ने के बावजूद यह खासतौर से शहरों तक सीमित रहा है। यहां तक कि म्युचुअल फंड भी ग्रामीण बाजार में अपनी पैठ नहीं बना पाए हैं। फलस्वरूप किसान और देश की 60% से अधिक आबादी शेयर बाजार की ग्रोथ स्टोरी से पूरी तरह कटी हुई है। इसे हम निश्चित तौर पर समावेशी विकास तो नहीं कह सकते।

अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर अगर आप आर्थिक खबरों पर गौर करें तो पाएंगे कि शेयर बाजार की खबरें ही ज्यादा होती हैं। उनके बारे में विस्तृत रिपोर्ट छपती है, यह बताया जाता है कि भारत की ग्रोथ स्टोरी के साथ शेयर बाजार के निवेशक किस तरह अमीर हो रहे हैं। विभिन्न सेक्टर की कंपनियों की वैल्यूएशन में अच्छी वृद्धि देखने को मिली है, लेकिन ऐसी कंपनियों की भी कमी नहीं जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था और खासतौर से कृषि क्षेत्र जुड़ी हैं।

बलरामपुर चीनी, चंबल फर्टिलाइजर, एनएफएल, राष्ट्रीय केमिकल्स, पारादीप फॉस्फेट, डीसीएम श्रीराम, यूपीएल, दीपक नाइट्राइट, गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर ऐसी ही कंपनियां हैं जिनका बिजनेस कृषि क्षेत्र से जुड़ा है। खुदरा निवेशकों ने इन कंपनियों की वैल्यूएशन में वृद्धि के साथ अच्छा फायदा उठाया होगा।

खुदरा निवेशकों में शेयर बाजार की लोकप्रियता बढ़ने के बावजूद यह खासतौर से शहरों तक सीमित रहा है। यहां तक कि म्युचुअल फंड भी ग्रामीण बाजार में अपनी पैठ नहीं बना पाए हैं। फलस्वरूप किसान और देश की 60% से अधिक आबादी शेयर बाजार की ग्रोथ स्टोरी से पूरी तरह कटी हुई है। इसे हम निश्चित तौर पर समावेशी विकास तो नहीं कह सकते।

ऐसे में क्या किया जा सकता है? चीनी और एथेनॉल के बिजनेस में जितनी भी सूचीबद्ध कंपनियां हैं उन सबको गन्ने की बकाया भुगतान राशि, जो हजारों करोड़ रुपए में है, को इक्विटी में बदलकर गन्ना किसानों को यह विकल्प देना चाहिए कि वे चाहें तो बकाया भुगतान के बदले इक्विटी शेयर लें। ग्रामीण इलाकों में भी निवेशकों की जागरूकता बढ़ी है। ऐसे में किसान कॉरपोरेट इंडिया के अच्छे सहयोगी बन सकते हैं। अभी तो अनेक जगहों पर दोनों एक दूसरे के खिलाफ खड़े नजर आते हैं।

कर्ज को इक्विटी में बदलने का रास्ता आमतौर पर बैंक ही चुनते हैं। कंपनी कानून में बदलाव करके गन्ने की बकाया राशि को इक्विटी में बदलने के समाधान पर तत्काल विचार किया जाना चाहिए। इससे चीनी कंपनियों और गन्ना किसानों दोनों को फायदा होगा।

इसके अलावा टाटा कंज्यूमर, आईटीसी, एस्कॉर्ट्स, महिंद्रा, एचयूएल जैसी कंपनियों को किसानों को प्रेफरेंशियल एलॉटमेंट के तहत शेयर देने चाहिए। दालों, मसाले और कॉफी के बिजनेस में बड़े पैमाने पर मौजूद टाटा कंज्यूमर राइट्स इश्यू जारी करती है। तो क्यों ना यह राइट्स दाल और कॉफी किसानों को दी जाए। इसके लिए जरूरी हो तो सरकार को खुशी-खुशी नियमों में बदलाव करना चाहिए। 60% आबादी को शेयरधारक बनाना कॉरपोरेट इंडिया के नई ब्रांड इक्विटी निर्माण में बड़ा कदम होगा। सरकार को इस दिशा में फैसिलिटेटर की भूमिका निभानी चाहिए।