संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने वैश्विक उर्वरक बाजार का अपडेट जारी किया है। इसके अनुसार वर्ष 2024-25 में ग्लोबल स्तर पर उर्वरकों के इस्तेमाल में काफी वृद्धि हुई, लेकिन ऊर्जा की बढ़ती लागत, पॉलिसी की अनिश्चितता और अफोर्डेबिलिटी की चुनौतियां 2026 के आउटलुक को आकार देना जारी रखेंगी।
रिपोर्ट के अनुसार दो साल की गिरावट के बाद 2024 में ग्लोबल फर्टिलाइजर इस्तेमाल 6% बढ़कर 20 करोड़ टन हो गया, जो 2020 के रिकॉर्ड के करीब है। नाइट्रोजन का इस्तेमाल 11.5 करोड़ टन तक पहुंच गया, जो अब तक का रिकॉर्ड है। यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से 2024 की शुरुआत में फर्टिलाइजर की कम कीमतों और भारत में यूरिया सब्सिडी बढ़ाने और खेती के इनपुट पर GST कम करने जैसी नीतियों की वजह से हुई। चीन ने भी खेती में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए न्यूट्रिएंट्स के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया।
पोटाश की डिमांड भी तेजी से बढ़ी, खासकर ब्राज़ील, चीन, इंडोनेशिया और मलेशिया में, जहां किफायती दामों ने इस्तेमाल को बढ़ावा दिया। हालांकि, फॉस्फोरस की डिमांड में थोड़ी ही वृद्धि हुई और यह दक्षिण और पूर्वी एशिया में फॉस्फोरस की लगातार ऊंची कीमतों के कारण कमजोर रही।
सप्लाई की स्थिति देखें तो 2024-25 में नाइट्रोजन और पोटाश का उत्पादन तेजी से बढ़ा। हालांकि, फर्टिलाइजर प्लांट में इस्तेमाल का स्तर अब तक के सबसे ऊंचे लेवल से नीचे रहा क्योंकि वैश्विक स्तर पर क्षमता में बढ़ोतरी डिमांड से ज्यादा हो रही है। फॉस्फेट उत्पादन क्षमता धीरे-धीरे बढ़ी। कुल मिलाकर, न्यूट्रिएंट कैपेसिटी 2030 तक हर साल 2% बढ़ने का अनुमान है।
एनर्जी मार्केट एक जरूरी फैक्टर बना हुआ है, क्योंकि नेचुरल गैस नाइट्रोजन उर्वरकों और कई फॉस्फेट प्रोडक्ट के लिए एक जरूरी इनपुट है। ठंडे मौसम और कम पवन ऊर्जा उत्पादन की वजह से डच TTF गैस बेंचमार्क 2025 की शुरुआत में EUR 58/MWh तक बढ़ गया, फिर सितंबर तक LNG की अच्छी सप्लाई के बीच EUR 32–33/MWh तक गिर गया। यह उतार-चढ़ाव यूरोप में उत्पादन लागत पर असर डाल रहा है।
फर्टिलाइज़र की कीमतें 2022 में सबसे ज्यादा थीं और 2023-24 में कम हुईं, लेकिन 2025 की शुरुआत में फिर से बढ़ गईं। सितंबर 2025 तक, फर्टिलाइजर बास्केट की कीमत औसतन 489 डॉलर प्रति टन थी, जो साल-दर-साल 46% ज्यादा थी। हालांकि यह अब भी 2022 के 815 डॉलर प्रति टन के सबसे ऊंचे स्तर से नीचे है। 2025 के पहले नौ महीनों में नाइट्रोजन की कीमतें 23%, फॉस्फेट की 21% और पोटाश की 13% बढ़ीं।
भूराजनीतिक तनाव, मेंटेनेंस से जुड़ी सप्लाई में रुकावट और ब्राजील तथा भारत जैसे बड़े आयातक देशों से घटती-बढ़ती डिमांड की वजह से मार्केट में अनिश्चितता बनी हुई है। वर्ष 2025 के आखिर में, नाइट्रोजन और फॉस्फेट की कीमतें नरम पड़ गईं क्योंकि ज्यादा कीमतों ने डिमांड कम कर दी।
FAO ने चेतावनी दी है कि अगर कीमतें स्थिर नहीं होती हैं और एनर्जी मार्केट का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है, तो 2026 की शुरुआत में दुनिया भर में इसका इस्तेमाल कम हो सकता है।