बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए मतों की गिनती जारी है। शाम 5 बजे तक प्राप्त रुझानों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने प्रचंड बहुमत की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 243 सीटों वाली विधानसभा में 200 से अधिक सीटों पर मजबूत बढ़त बना ली है।
यह न केवल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व और एनडीए गठबंधन की जीत है, बल्कि यह भारतीय जनता पार्टी के लिए एक ऐतिहासिक प्रदर्शन है। भाजपा 91 सीटों पर बढ़त के साथ पहली बार बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वहीं, जनता दल (यूनाइटेड) 83 सीटों पर आगे चल रहा है। पिछली बार के मुकाबले जदयू को करीब 40 सीटों का फायदा हुआ है।
तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनता दल केवल 27 सीटों पर आगे है। कांग्रेस का आंकड़ा भी मात्र 5-6 सीटों पर सिमट गया है। तेजस्वी यादव राघोपुर सीट पर संघर्षपूर्ण मुकाबले में करीब 13 हजार वोटों से आगे चल रहे हैं। आरजेडी से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले तेज प्रताप यादव महुआ सीट पर तीसरे नंबर पर हैं। बहुचर्चित प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज भी खाता खोलते में नाकाम दिख रही है।
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दल का नाम |
आगे/जीती गई सीटें |
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भारतीय जनता पार्टी |
91 |
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जनता दल (यूनाइटेड) |
83 |
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लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) |
20 |
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हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा |
5 |
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राष्ट्रीय लोक मोर्चा |
4 |
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एनडीए कुल सीटें |
203 |
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राष्ट्रीय जनता दल |
27 |
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
5 |
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वाम दल |
3 |
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महागठबंधन कुल सीटें |
35 |
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निर्दलीय/अन्य दल |
4 |
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कुल सीटें |
243 |
NDA के सहयोगी दलों ने भी मजबूत प्रदर्शन किया है। चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) 20 सीटों पर आगे चल रही है, जिससे उनका स्ट्राइक रेट बेहद मजबूत रहा है। जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेकुलर) 5 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है।
मौजूदा रुझानों से स्पष्ट है कि बिहार की जनता ने एक बार फिर से एनडीए के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त किया है, लेकिन देखना होगा कि क्या नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे या इस बार सीएम भाजपा से होगा।
महागठबंधन का लचर प्रदर्शन
विपक्षी महागठबंधन का प्रदर्शन बेहद फीका रहा है। राजद सिर्फ 27 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है। कांग्रेस केवल पांच सीटों पर ही बढ़त बना पाई है। महागठबंधन की ओर से उपमुख्यमंत्री के तौर पर प्रचारित किए गये मुकेश सहनी की पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई है। जबकि वामपंथी पार्टियां मात्र तीन-चार सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं।
ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम पांच सीटों पर आगे हैं और इस बार भी उन्होंने मुस्लिम वोट में सेंध लगाने में कामयाब रही है। महागठबंधन के कई बड़े उम्मीदवारों के लिए भी चुनाव कठिन साबित हो रहा है। राघोपुर सीट से खुद तेजस्वी यादव शुरुआती दौर में पीछे चल रहे थे, वहीं छपरा सीट पर राजद के खेसारी लाल यादव भी बीजेपी उम्मीदवार से पीछे चल रहे हैं। राजद को इस चुनाव में करीब 50 सीटों का भारी नुकसान उठाना पड़ा है।
एनडीए की जीत के कारण
बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को मिली प्रचंड जीत को “डबल इंजन सरकार” और सुशासन की छवि पर जनादेश की मुहर माना जा रहा है। नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय लोकप्रियता और नीतीश कुमार की लम्बे शासन ने मिलकर एनडीए के पक्ष में मजबूत लहर बनाई। इसके अलावा एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों की साझेदारी और चुनाव अभियान के संचालन में अच्छा तालमेल रहा।
चुनाव से ठीक पहले महिलाओं के खातों में 10 हजार रुपये डालना और महिला कल्याण से जुड़ी सीएम नीतीश कुमार की योजनाओं का लाभ भी एनडीए को मिला। महिला सुरक्षा, शिक्षा, स्कॉलरशिप और सरकारी योजनाओं के लाभार्थी वर्ग ने एनडीए के लिए मजबूत समर्थन दिखाया। नीतीश कुमार ने अपनी योजनाओं और रणनीति में महिलाओं को आगे रखा, इसका नतीजा मतदान में बढ़ोतरी और महिलाओं से एनडीए को मिले समर्थन के रूप में सामने आया।
बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए के पक्ष में भारी रुझान के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर लिखा, "बिहार की जनता का एक-एक वोट भारत की सुरक्षा और संसाधनों से खिलवाड़ करने वाले घुसपैठियों और उनके समर्थकों के विरुद्ध मोदी सरकार की नीति में विश्वास का प्रतीक है। वोट बैंक के लिए घुसपैठियों को संरक्षण देने वालों को जनता ने करारा जवाब दिया है। बिहार की जनता ने पूरे देश का मूड बता दिया है कि मतदाता सूची का शुद्धिकरण अनिवार्य है और इसके विरुद्ध राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है। इसीलिए, राहुल गांधी के नेतृत्व में, कांग्रेस पार्टी आज बिहार में सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई है।"
महागठबंधन की हार की वजह
महागठबंधन के घटक दलों में प्रचार अभियान से लेकर सीट शेयरिंग व उम्मीदवारों के चयन में तालमेल की कमी साफ नजर आई। आखिर तक भी राजद, कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन पाई और दर्जन भर सीटों पर महागठबंधन फ्रेंडली फाइट में उलझा रहा।
भाजपा और सहयोगी दलों ने अपराध और “जंगल राज” की पुरानी राजनीतिक बहस के जरिए राजद को घेरने का काम किया। कांग्रेस की ओर से उठाया गया वोटचोरी का मुद्दा भी मतदाताओं की नब्ज छूने में नाकाम रहा। पिछड़े, दलित और महिला मतदाताओं में एनडीए की पैठ मजबूत बनी रही, जो महागठबंधन के लिए बड़ा झटका साबित हुई। राजद अपने परंपरागत मुस्लिम और यादव मतदाताओं से इतर दायरा बढ़ाने में नाकाम रहा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने कहा कि "जिस प्रकार से ये धन बल का प्रयोग करते हैं लोग कल्पना नहीं कर सकते हैं... चुनाव आयोग इनका साथ दे रहा है। चुनाव चलते हुए 1 करोड़ 35 लाख महिलाओं के खाते में 10 हजार गए। चुनाव आयोग को क्या हो गया है?... राजस्थान में चुनाव की घोषणा के बाद पेंशन मिलना बंद हो गई थी. वहां सब जारी रहा।"
बिहार में मतगणना के बीच आरजेडी सांसद मनोज झा ने आरोप लगाया कि मतगणना की प्रक्रिया धीमी है और निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर समय से अपडेट नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि करीब 60 से 70 सीटें बहुत ही लो मार्जिन में हैं।