गन्ने पर रिसर्च के लिए ICAR में अलग टीम बनाई जाएगीः शिवराज सिंह चौहान

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि देश में गन्ने पर रिसर्च के लिए आईसीएआर (ICAR) में अलग टीम बनाई जाएगी। यह टीम देखेगी कि गन्ने की पॉलिसी कैसी होनी चाहिए। केंद्रीय मंत्री देश में गन्ने की अर्थव्यवस्था पर आयोजित एक राष्ट्रीय विमर्श को संबोधित कर रहे थे।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि देश में गन्ने पर रिसर्च के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) में अलग टीम बनाई जाएगी। यह टीम गन्ने की खेती से जुड़ी समस्याओं के समाधान पर फोकस करेगी। केंद्रीय मंत्री "गन्ना अर्थव्यवस्था पर राष्ट्रीय परामर्श" को संबोधित कर रहे थे। यह आयोजन मंगलवार को नई दिल्ली के पूसा परिसर में मीडिया प्लेटफॉर्म रूरल वॉयस और नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज (NFCSF) द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के सहयोग से किया गया। 

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, हितधारकों से परामर्श के बाद ही राज्यों और देश की कृषि नीति में जरूरत के मुताबिक संशोधन करेंगे। इसमें किसान, इंडस्ट्री और वैज्ञानिक सबके साथ चर्चा होगी। 'विकसित कृषि संकल्प अभियान' का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मेरठ में किसानों ने बताया कि गन्ने की 238 वैरायटी में चीनी की मात्रा अच्छी है, लेकिन इसमें रेड रॉट की समस्या आ गई है। हमें सोचना पड़ेगा कि एक वैरायटी कितने साल चलेगी। हमें साथ-साथ दूसरी वैरायटी पर भी काम करना पड़ेगा। ताकि एक वैरायटी में समस्या हो तो दूसरी तैयार रहे। 

उन्होंने कहा कि समस्याओं से हम परिचित हैं। हमें उत्पादन बढ़ाना है, मैकेनाइजेशन की जरूरत है। यह भी देखना है कि लागत कैसे घटाएं, चीनी की रिकवरी ज्यादा कैसे हो। पानी के इस्तेमाल का भी सवाल है। पानी की आवश्यकता को हम कैसे कम कर सकते हैं। इसके लिए ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ सोच का आधार होना चाहिए। इसके साथ यह भी देखना है कि किसान उतना खर्च करेगा कैसे, क्योंकि ड्रिप बिछाने के लिए पैसे चाहिए।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि कौन से अन्य प्रोडक्ट बन सकते हैं जिनसे किसानों का लाभ बढ़े। यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या प्राकृतिक खेती फर्टिलाइजर की समस्या में सहायक हो सकती है। चीनी मिलों की अपनी समस्याएं हो सकती हैं लेकिन किसानों को गन्ने के भुगतान में देरी होती है। मजदूरी की भी समस्या है। आजकल श्रमिक आसानी से नहीं मिलते है। यह देखना चाहिए कि क्या हम ट्रेनिंग देकर कैपेसिटी बिल्डिंग का काम कर सकते हैं। मैकेनाइजेशन डिवीजन भी इस पर सोचे कि कम मेहनत से कैसे गन्ने की कटाई की जा सकती है।

उन्होंने कहा कि मोनो क्रॉपिंग की समस्या अनेक रोगों को नियंत्रण देती है। इससे नाइट्रोजन फिक्सेशन की समस्या भी उपजती है। लगातार एक ही फसल पोषक तत्वों को कम कर देती है। यह देखा जाना चाहिए कि मोनोक्रेपिंग की जगह इंटरक्रॉपिंग कितनी व्यावहारिक है। 

कृषि मंत्री ने कहा कि आईसीएआर को मैं कहना चाहता हूं कि गन्ना रिसर्च के लिए अलग टीम बनाएं। यह टीम व्यावहारिक समस्याओं पर गौर करे। किसान और इंडस्ट्री की मांगों के अनुरूप की रिसर्च होनी चाहिए। जिस रिसर्च का किसान को फायदा नहीं, उसका कोई मतलब नहीं। हमने तय किया था कि गन्ने के लिए हमें ब्रेनस्टॉर्मिंग करनी है। आज जो परामर्श कर रहे हैं वो गन्ने की फसल के लिए हमारे रोडमैप का बेस साबित हो सकता है। कृषि विभाग अगले 5 साल के लिए योजना बनाने वाला है। 

आईसीएआर प्रमुख ने बताए रिसर्च के चार प्रमुख फोकस

राष्ट्रीय परामर्श को संबोधित करते हुए आईसीएआर के महानिदेशक और सचिव, डेयर,  डॉ. एम.एल. जाट ने रिसर्च के लिए चार प्रमुख फोकस बताए- पहला, क्या रिसर्च में क्या फोकस करना है। दूसरा, रिसर्च आगे ले जाने के लिए क्या डेवलपमेंटल मुद्दे हैं। तीसरा, इंडस्ट्री से संबंधित क्या मुद्दे हैं और चौथा, पॉलिसी से संबंधित क्या कदम उठाए जाने चाहिए। 

डॉ. जाट ने कहा कि गन्ने में पानी का काफी उपयोग होता है और फर्टिलाइजर का भी काफी इस्तेमाल होता है। मोनोक्रॉपिंग की वजह से कीट और बीमारियों की समस्या है। इंडस्ट्री और मार्केट से संबंधित समस्या है। पानी की समस्या दूर करने के लिए कई अनुसंधान हुए हैं। गन्ने में माइक्रो इरिगेशन से पानी की बचत होगी। जिस तरीके से फर्टिलाइजर का इस्तेमाल होता है वह ठीक नहीं है। उर्वरकों की एफिशिएंसी बढ़ाना जरूरी है। 

उन्होंने कहा कि मोनोक्रॉपिंग की बजाय विविधीकरण की आवश्यकता है। गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग में दलहन और तिलहन का प्रयोग किया जा सकता है। देश में दलहन और तिलहन की पैदावार बढ़ाने की कोशिश भी चल रही है। इंटरक्रॉपिंग से किसानों की आमदनी बढ़ेगी और सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा मिलेगा।

गन्ने पर आयोजित राष्ट्रीय परामर्श में उपस्थित प्रतिभागी।

किसानों और चीनी उद्योग ने उठाए अपने मुद्दे 

परिचर्चा में कई राज्यों से आए प्रगतिशील गन्ना किसानों ने अपनी समस्याओं और मुद्दों से अवगत कराया। सबसे ज्यादा चिंता गन्ने की रोगग्रस्त प्रजाति 0238 का विकल्प न मिल पाने को लेकर सामने आई। साथ ही गन्ने के दाम में बढ़ोतरी और श्रमिक न मिलने की समस्या को लेकर भी किसानों ने अपनी बात रखी। 

इस अवसर पर आईसीएआर के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने गन्ने की उन्नत किस्में विकसित करने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। आईसीएआर के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ. देवेंद्र कुमार यादव, उप महानिदेशक (कृषि प्रसार) डॉ. राजबीर सिंह, गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयंबटूर के निदेशक डॉ. पी. गोविंदराज, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के निदेशक डॉ. दिनेश सिंह सहित वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने गन्ने की खेती से जुड़े तकनीकी और वैज्ञानिक पहलुओं के बारे में बताया। 

इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी, डीसीएम श्रीराम लिमिटेड के सीईओ एवं ईडी (शुगर बिजनेस) रोशन लाल टामक तथा रेणुका शुगर्स लिमिटेड के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन अतुल चतुर्वेदी ने चीनी व एथनॉल उत्पादन से जुड़ी चिंताओं को साझा किया। 

नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज (NFCSF) के उपाध्यक्ष केतन कुमार पटेल तथा महानिदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने सहकारी चीनी मिलों की भूमिका और उनने जुड़े मुद्दों पर अपनी बात रखी।       

कार्यक्रम का संचालन करते हुए रूरल वॉयस के प्रधान संपादक हरवीर सिंह ने देश में गन्ना की अर्थव्यवस्था से जुड़ी समस्याओं के हल और किसानों की बेहतर आय के लिए संवाद और समन्वित प्रयासों को महत्वपूर्ण बताया।