एमएसपी से 1500 रुपये नीचे तक बिक रही कपास, ड्यूटी फ्री आयात से किसानों को झटका

राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के साथ गुजरात में नई फसल की आवक शुरू हो गई है। हर रोज मंडियों में 80 से 90 लाख क्विंटल कपास की पहुंच रही है। मंडियों में कपास की कीमत 6500 रुपये से 7000 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है। जबकि चालू मार्केटिंग सीजन के लिए केंद्र सरकार ने कपास की लॉन्ग स्टेपल किस्म के लिए 8110 रुपये प्रति क्विंटल का एमएसपी तय किया है।

प्रतीकात्मक/फाइल फोटो

देश के कपास किसानों को शुल्क-मुक्त कॉटन आयात का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। देश के अधिकांश हिस्सों में 8,110 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुकाबले किसानों को 6,500 से 7,000 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर कपास बेचनी पड़ रही है। वहीं, एमएसपी पर कपास खरीदने के लिए अधिकृत सरकारी एजेंसी कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) अभी खरीदारी की पूरी तैयारी नहीं कर पाई है, क्योंकि जिनिंग इकाइयों के साथ उसके अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) नहीं हुए हैं। नतीजतन, किसानों को निजी व्यापारियों को अपनी कपास एमएसपी से नीचे भाव पर बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। चालू विपणन सीजन (2025-26) के लिए केंद्र सरकार ने मीडियम स्टेपल कपास का एमएसपी 7,710 रुपये और लॉन्ग स्टेपल के लिए 8,110 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।

सूत्रों के अनुसार, सीसीआई के पास पिछले सीजन (2024-25) की बची हुई कॉटन है। केंद्र सरकार द्वारा सितंबर में कॉटन के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति देने और बाद में इसे 30 सितंबर से बढ़ाकर 31 दिसंबर 2025 तक करने के कारण कॉटन की कीमतों में गिरावट आई है। इसके चलते सीसीआई को अपने पुराने स्टॉक की बिक्री के लिए बार-बार कीमतें घटानी पड़ी हैं। चालू सीजन के लिए तय एमएसपी के आधार पर सीसीआई की कॉटन खरीद लागत लगभग 61 हजार रुपये प्रति गांठ आ रही है, जबकि बाजार में कीमतें 51,000 से 52,000 रुपये प्रति गांठ के आसपास हैं। वहीं, देश में आयातित कॉटन की लागत भी इसी दायरे में आ रही है।

रूरल वॉयस को मिली जानकारी के अनुसार, सीसीआई के पास करीब 23 लाख गांठ कॉटन ऐसी है, जिसकी बिक्री हो चुकी है लेकिन उठान नहीं हुआ है। इसमें से लगभग दो-तिहाई मात्रा ट्रेडर्स द्वारा खरीदी गई कॉटन की है। इसके अलावा, सीसीआई के पास करीब 13 लाख गांठ कॉटन का बिना बिका स्टॉक भी है। ऐसे में, उसे यह कॉटन मौजूदा बाजार दर यानी 51 से 52 हजार रुपये प्रति गांठ पर ही बेचनी पड़ेगी। नई फसल की खरीद के लिए सीसीआई को अपना पुराना स्टॉक खाली करना होगा।

ऐसी भी चर्चाएं हैं कि जिनिंग मिलों ने गठजोड़ (कार्टेल) बनाकर जिनिंग रेट बढ़ा दिए हैं, जिसके चलते सीसीआई के साथ अनुबंध होने में देरी हो रही है। लेकिन इस स्थिति का नुकसान किसानों को उठाना पड़ रहा है। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात में नई फसल की आवक शुरू हो चुकी है। रोजाना मंडियों में 80 से 90 हजार गांठ कपास की आवक हो रही है। राजस्थान, पंजाब और हरियाणा की मंडियों में कपास की कीमत 6,500 से 7,000 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है, जबकि चालू सीजन के लिए केंद्र सरकार ने लॉन्ग स्टेपल किस्म का एमएसपी 8,110 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। देश में कपास का अधिकांश उत्पादन इसी किस्म का होता है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि देश में कपास का उत्पादन लगातार घट रहा है। इस वर्ष कपास का रकबा करीब दस लाख हेक्टेयर कम हो गया है, क्योंकि एक ओर बीमारियों से किसानों को नुकसान हुआ है, वहीं उन्हें कपास की उचित कीमत भी नहीं मिल रही। देश में 2013-14 में कपास का उत्पादन 398 लाख गांठ रहा, जो इस साल घटकर लगभग 306 लाख गांठ रह गया है। दिलचस्प रूप से, कपास आयात के लिए दबाव बनाने वाला कॉटन उद्योग पहले उत्पादन घटा हुआ बता रहा था, लेकिन अब वही इसमें बढ़ोतरी का दावा कर रहा है।

सूत्रों के अनुसार, आशंका है कि सस्ते में खरीदी गई कपास को एमएसपी पर सीसीआई को दोबारा बेचने (रीसायकल) की कोशिश की जा सकती है। इसके साथ ही पिछले साल के बकाया करीब 25 लाख गांठ के स्टॉक के भी रिसायकल होने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता है। साथ ही शुल्क-मुक्त आयात के चलते सीसीआई को पुराने स्टॉक को नुकसान में बेचना पड़ा है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक करीब 40 लाख गांठ का शुल्क मुक्त आयात हो चुका है जो 50 लाख गांठ तक पहुंच सकता है। अब नई फसल के साथ उसकी खरीद लागत लगभग 61 हजार रुपये प्रति गांठ आने के कारण व्यापारी इसका फायदा उठाएंगे, जिससे सरकार को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। कुल मिलाकर, शुल्क-मुक्त कॉटन आयात का फैसला किसानों और सरकार दोनों के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है।