डीएपी की आयात कीमत 810 डॉलर प्रति टन पर पहुंची, ओपनिंग स्टॉक पिछले साल से 42% कम

एक जून, 2025 को देश में डीएपी का स्टॉक 12.4 लाख टन था जबकि पिछले साल 1 जून 2024 को डीएपी का स्टॉक 21.6 लाख टन था और उसके एक साल पहले जून 2023 में डीएपी का स्टॉक 33.2 लाख टन था। इन आंकड़ों का सीधा मतलब है कि उर्वरक कंपनियां डीएपी और उसके कच्चे माल फॉस्फोरिक एसिड और रॉक फॉस्फोरस का कम आयात कर रही हैं

देश में यूरिया के बाद सबसे अधिक खपत वाले उर्वरक डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की आयात कीमतें 810 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। बढ़ती कीमतों और घटते आयात का असर यह है कि 1 जून, 2025 को डीएपी का ओपनिंग स्टॉक पिछले साल से करीब नौ लाख टन यानी करीब 42% कम था।  इसकी वजह से जहां देश में कई जगहों पर किसानों को डीएपी की उपलब्धता का सामना करना पड़ रहा है, वहीं डीएपी की कालाबाजारी भी बढ़ रही है।

इस बारे में बात करने पर देश की सबसे बड़ी उर्वरक कंपनियों में एक के वरिष्ठ अधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि हमें कम डीएपी के साथ काम चलाना सीख लेना चाहिए। कीमतों में तेजी की सबसे बड़ी बड़ी वजह चीन द्वारा डीएपी का निर्यात बंद करना है और उसकी वजह से दुनिया भर में डीएपी की कीमतें बढ़ रही हैं।

चालू खरीफ सीजन में एक जून, 2025 को देश में डीएपी का स्टॉक 12.4 लाख टन था जबकि पिछले साल 1 जून 2024 को डीएपी का स्टॉक 21.6 लाख टन था और उसके एक साल पहले जून 2023 में डीएपी का स्टॉक 33.2 लाख टन था। इन आंकड़ों का सीधा मतलब है कि उर्वरक कंपनियां डीएपी और उसके कच्चे माल फॉस्फोरिक एसिड और रॉक फॉस्फोरस का कम आयात कर रही हैं। डीएपी की मामले में भारत की आयात निर्भरता लगभग शतप्रतिशत है। देश में खपत का आधे से अधिक तैयार डीएपी आता है और बाकी का उत्पादन कच्चे माल का आयात कर उसका उत्पादन देश में होता है।

किसान डीएपी का अधिकांश उपयोग फसल की बुवाई या रोपाई के समय करते हैं क्योंकि पौधों की जड़ों को मजबूत करने   और शुरुआती विकास में यह उर्वरक अहम भूमिका निभाता है। यही वजह है कि सीजन के शुरू में इसकी उपलब्धता किसानों के लिए काफी अहम हैं। हालांकि सरकार ने कहा है कि वह महंगे आयात की लागत की कंपनियों को भरपाई करेगी लेकिन उर्वरक कंपनियां पुराने बकाया के चलते इस मामले में गो स्लो की रणनीति अपना रही हैं। हालांकि डीएपी विनियंत्रित (डि-कंट्रोल) उर्वरकों में शुमार होता और सरकार इन उर्वरकों की कीमतें यूरिया की तरह नियंत्रित नहीं करती है। लेकिन परोक्ष रूप से सरकार के मुताबिक ही उर्वरक कंपनियो ने डीएपी के एक बैग (50 किलो) की कीमत 1350 रूपये प्रति बैग तय कर रखी है।

उर्वरक उद्योग सूत्रों का कहना है कि किल्लत के चलते किसानों को कई जगह इसके लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है। यह कीमत 1700 रुपये से 1800 रुपये तक है। उक्त सूत्रों का कहना है कि हालांकि सरकार उर्वरक कंपनियों को कालाबाजारी को लेकर आगाह करती रही है लेकिन कंपनियों का कहना है कि तरह की घटनाएं स्थानीय स्तर पर ही होती हैं और उसके लिए वितरकों पर शिकंजा कसना जरूरी है।

देश में सालाना 100 लाख टन से अधिक डीएपी की खपत होती है जो पिछले साल के 359 लाख टन यूरिया की खपत के बाद दूसरी सबसे अधिक खपत वाला उर्वरक है। चीन दुनिया का एक बड़ा डीएपी निर्यातक देश है। साल 2023-24 में भारत ने चीन से 22.9 लाख टन डीएपी का आयात किया था जबकि पिछले वित्त वर्ष 2024-25 में यह घटकर 8.4 लाख टन रह गया और चालू साल में वहां से डीएपी का कोई आयात नहीं हुआ है।

ऐसे  भारत का डीएपी आयात सउदी अरब, मोरक्को, जॉर्डन और रूस से अधिक हो रहा है। इनमें से कई देशों के साथ भारत का डीएपी आयात का दीर्घकालिक समझौता है लेकिन उर्वरक उद्योग सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि यह समझौता मात्रा को लेकरहै और कीमतों के मामले में बाजार में चल रही कीमतें लागू होती हैं। 

चीन से डीएपी के निर्यात पर रोक की एक बड़ी वजह जहां घरेलू उपलब्धता को प्राथमिकता देना है वहीं इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (ईवी) के लिए बैटरी बनाने में फॉस्फेट का इस्तेमाल वहां बढ़ गया है और चीनी कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहनों के दुनिया के बड़े बाजार पर काबिज होती जा रही हैं। पिछले साल फॉस्फेट के ईवी  वाहनों की बैटरी में बढ़ते इस्तेमाल को लेकर रूरल वॉयस ने खबर की थी। जिसमें डीएपी की उपलब्धता में कमी की परिस्थिति पैदा होने के कारकों को विस्तार से बताया गया था।

जून में जॉर्डन के साथ भारतीय कंपनियों ने डीएपी का आयात सौदा 781.5 डॉलर प्रति टन (कीमत और समुद्री भाड़ा सहित) पर किया है। जबकि कुछ माह पहले कीमतें 515 से 525 डॉलर प्रति टन के बीच थी। वहीं अब सउदी अरब की कंपनी साबिक ने 810 डॉलर प्रति टन की कीमत पर निर्यात सौदे करने की बोली लगाई है।

उद्योग सूत्रों का कहना है कि इस साल 2022 जैसी ही स्थिति बन रही है जब रूस और यूक्रेन युद्ध शुरू होने पर डीएपी की कीमतें 900 से 1000 डॉलर प्रति टन तक चली गई थी। वहीं डीएपी के कच्चे माल फॉस्फोरिक एसिड की कीमतें भी जनवरी से मार्च, 2025 की तिमाही की 1055 डॉलर प्रति टन से बढ़कर जुलाई से सितंबर तिमाही के लिए 1258 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई हैं।

आयात की कमी के चलते डीएपी की खपत भी घट रही है और 2024-25 में यह 92.8 लाख टन रही जबकि 2023-24 में देश में 108.1 लाख टन डीएपी की खपत हुई थी। वहीं दूसरे कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की खपत बढ़ रही है। डीएपी में फॉस्फेट और नाइट्रोजन होता जबकि कई कॉम्प्लेक्स उर्वरकों में फॉस्फेट के साथ सल्फर भी होता है। डीएपी की कमी में कंपनियों को कम फॉस्फेट स्तर वाले कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की बढ़ी बिक्री का फायदा मिला है। खास बात यह है कि अधिकांश कॉम्प्लेक्स उर्वरकों के दाम डीएपी से अधिक हैं।

डीएपी की बढ़ती कीमतों का नतीजा बढ़ती उर्वरक सब्सिडी के रूप में सामने तो आएगा ही वहीं कम आयात के चलते किसानों को किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। इस बारे में उद्योग सूत्रों का कहना है कि हमें कम डीएपी उपलब्धता की आदत डालनी ही होगी। हालांकि किसान यह बात समझेगा या नहीं यह कहना अभी मुश्किल है लेकिन सरकार भी इस बारे में अपनी स्थिति साफ नहीं कर रही है।