खाद्य सुरक्षा से पोषण सुरक्षा और कृषि में बुनियादी बदलाव के लिए नीतिगत मुद्दों की तैयारी पर मंथन

नीति आयोग, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और यूनाइटेड नेशंस के फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन (एफएओ) ने संयुक्त रूप से भारतीय कृषि के 2030 में स्वरूप को लेकर एक राष्ट्रीय संवाद की पहल की इसकी प्रकिया नवंबर 2019 में शुरू हुई और 19 से 22 जनवरी, 2021 के दौरान एक वर्चुअल कांफ्रेंस में इस दशक के लिए जरूरी नीतिगत जरूरतों पर मंथन हुआ जिसमें कृषि और नीतिगत मामलों के विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत विषयगत पेपरों पर चर्चा और विचार विमर्श हुआ

नीति आयोग, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और यूनाइटेड नेशंस के फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन (एफएओ) ने संयुक्त रूप से भारतीय कृषि 2030 राष्ट्रीय संवाद की प्रकिया नवंबर 2019 में शुरू की थी। इस संवाद  का उद्देश्य देश के लिए हरित क्रांति के पश्चात की कृषि का भावी खाका तैयार करने के लिए नीति आयोग और कृषि एवं किसान कल्याण के प्रयासों के पूरक के रूप में साल 2020 से 2030 के बीच बुनियादी बदलावों के लिए एक दशक में जरूरी कदमों को तलाशना है।

कांफ्रेंस

राष्ट्रीय संवाद की वर्चुअल कांफ्रेंस का  उद्घाटन 19 जनवरी 2021 को माननीय उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने किया था। उन्होंने अपने उद्घाटन संबोधन में कहा कि कृषि भारत की जलवायु, संस्कृति और सभ्यता का स्तंभ है।  उन्होंने कहा कि अब हमें खाद्य सुरक्षा की बजाय अब पोषण सुरक्षा पर जोर देना चाहिए। साथ ही लैब से खेत के कांसेप्ट पर प्रभावी रूप से अमल करना चाहिए। उन्होंने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देकर युवाओं को कृषि की ओर आकर्षित करने पर जोर दिया।

इसके बाद के तीन दिनों में 20 से 22 जनवरी के दौरान राष्ट्रीय संवाद में सभी संबंधित हितधारकों के बीच कृषि में बुनियादी बदलाव के लिए  विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया चली । भारतीय कृषि क्षेत्र के कुछ प्रतिभाशाली विचारकों और विशेषज्ञों द्वारा लिखे गये और कांफ्रेंस में प्रस्तुत किये गये आठ विषयगत पेपर्स  पर चर्चा हुई। इन प्रमुख विषयगत क्षेत्रों की पहचान नीति आयोग , कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और एफएओ की एक  संचालन समिति के समग्र मार्गदर्शन में की गई थी।

19 जनवरी, 2021:

राष्ट्रीय संवाद के अवलोकन सत्र के दौरान 19 जनवरी को नीति आयोग के सदस्य  प्रोफेसर रमेश चंद के नेतृत्व में चर्चा करने वालों ने भारतीय कृषि में आवश्यक मूलभूत बदलाव  के औचित्य पर विचार-विमर्श किया गया। पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक टिकाऊपन के   तीन पहलुओं पर जोर देते हुए प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा कि खपत विविधीकरण और उत्पादन विविधीकरण के बीच एक असंतुलित वृद्धि है। उन्होंने जोर दिया कि फसल और कृषि प्रणाली छोटे और सीमांत किसानों के  अनुकूल होनी चाहिए। उन्होंने कृषि और उसके सहयोगी क्षेत्रों में औद्योगीकरण की आवश्यकता पर बल दिया। एफएओ के मुख्य अर्थशास्त्री मेक्सिमो टोरेरो कुलेन ने  कोविड19 महामारी के उपरांत की  दुनिया में कृषि के लिए चुनौतियों पर प्रकाश डाला। इस सत्र में उन्होंने कृषि में नवोन्मेष और मानव संसाधन के विकास पर जोर दिया। इस सत्र ने किसानों की आय और पारिस्थितिक सुरक्षा को बढ़ाने के लिए भारत के खाद्य और कृषि प्रणाली को नई दिशा देने के लिए आवश्यक नीतिगत बदलावों की ओर इशारा किया। इस सत्र में, नेशनल रेनफेड एरिया अथारिटी के चेयरमैन अशोक दलवई ने आपूर्ति  आधारित  मॉडल की बजाय  मांग आधारित मॉडल के मुताबिक सोचने की जरूरत बताते हुए कहा कि किसानों आय बढ़ने के लिए मूल्य संवर्धन और वैल्यू चेन को जोड़ने वाला सिस्टम बनाने की जरूरत है जो किसानों की आय में वृद्धि करने में सहायक होगा।

20 जनवरी, 2021:

इस दिन संवाद में चर्चा के विषय थे,  भारतीय कृषि में बुनियादी बदलाव,  कीट महामारी, तैयारी और जैव सुरक्षा; प्राकृतिक खेती, कृषि पारिस्थितिकी और जैव विविधता का भविष्य ।

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (इक्रीअर) के  डॉ.  अशोक गुलाटी और रितिका जुनेजा द्वारा प्रस्तुत शोध,  भारतीय कृषि में बुनियादी बदलाव  के संभावित मार्ग पर चर्चा करने के लिए विभिन्न संकेतकों का उपयोग करते हुए कृषि परिवर्तन के प्रक्षेपवक्र पर चर्चा की। लेखकों ने स्वीकार किया कि संसाधनों के केंद्रीकृत उपयोग ने भारत को बहुत अधिक भोजन, फ़ीड और फाइबर सुरक्षा प्रदान की, लेकिन इसके साथ ही नकारात्मक पर्यावरणीय परिणाम भी रहे। हालांकि, ऐसे कई मितव्ययी उपाय और नवाचार हैं, जिन्हें बढ़ाया जाना आवश्यक है। उनका कहना था कि खाद्यान्न के मुकाबले पशुपालन क्षेत्र के उत्पादन का वैल्यू अधिक हो गया है। इसके साथ ही बागवानी फसलों का उत्पादन मूल्य खाघान्न के बराबर हो गया है। आने वाले दिनों में जमीन की कमी की बजाय पानी की कमी कृषि विकास के लिए मुश्किल के रूप में सामने आएगी।

उन्होंने कहा कि संसाधनों के उपयोग की दक्षता को प्राथमिकता देते हुए और खाद्य प्रणालियों के दृष्टिकोण का उपयोग करके  खाद्यान्नों के अधिक उत्पादन की बजाय पोषण सुरक्षा उच्च मूल्य वाले कृषि उत्पादों की नीतियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

 दूसरे सत्र में बॉयोडायर्सिटी इंटरनेशनल के डॉ. एन के कृष्ण कुमार और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के डॉ.  एस वेन्निला ने अपना पेपर प्रस्तुत किया जिसमें  भारतीय कृषि के सामने महामारी, टिड्डियों के हमले और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के चलते खड़ी हो रही नई चुनौतियों पर बात की गई है। कीट और महामारी की सामाजिक-आर्थिक और पारिस्थितिक चिंताओं पर प्रकाश डालते हुए, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और वैश्वीकृत सेटिंग्स द्वारा बढ़े हुए, विषयगत प्रस्तुतकर्ताओं ने मजबूत अंतर और अंतरा संस्थागत समन्वय की आवश्यकता को रेखांकित किया। इसमें एक-स्वास्थ्य दृष्टिकोण की धारणा के तहत  बुनियादी ढाँचा और महामारी विज्ञान अनुसंधान; सीमा-पार सहयोग; और मजबूत डेटाबेस और निगरानी तंत्र पर जोर दिया गया।

दिन के अंतिम सत्र में आरवाईएसएस , आंध्र प्रदेश कम्युनिटी नेचुरल फार्मिंग, आंध्र प्रदेश सरकार के पूर्व  ex officio मुख्य सचिव विजय कुमार , और डॉ. रवि प्रभु, डायरेक्टर इनोवेशन, इन्वेस्टमेंट एंड इम्पैक्ट, वर्ल्ड एग्रोफॉस्ट्री ने चर्चा की और  अपना पेपर को प्रस्तुत किया। इसका विषय है प्राकृतिक खेती, कृषि पारिस्थितिकी और जैव विविधता फ्यूचर्स। इस पेपर के लेखकों ने कृषि विज्ञान और प्राकृतिक कृषि प्रणालियों के मूल्य प्रस्ताव को समझाने पर जोर दिया  है।  खाद्य और पोषण सुरक्षा की चुनौतियों को पूरा करने की अपनी क्षमता, प्राकृतिक संसाधनों की अधिकतम उपयोगिता   और प्रभाव , प्रौद्योगिकी और नवाचार को एकीकृत करने, जो जलवायु के लचीलेपन के साथ अधिक आर्थिक व्यवहार्यता को सुनिश्चित करता है। उन्होंने कहा, कृषि में बुनियादी बदलाव लोगों की मानसिकता, दृष्टिकोण और व्यवहार को बदलने का विषय है न कि केवल विज्ञान के उपयोग का। इसमें सभी मूल्य श्रृंखला पक्षों को शामिल करने की आवश्यकता होगी विशेष रूप से किसानों को बराबर भागीदारों के रूप में प्रक्रिया में इस में शामिल करना होगा। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आंध्र प्रदेश में नॉलेज एक्सचेंज और सामूहिक कार्यशैली को बढ़ावा देने के लिए स्वयं सहायता समूह के रूप में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

21 जनवरी, 2021:

चर्चा के विषय थे, संरचनात्मक सुधार और शासन; जलवायु परिवर्तन और जोखिम प्रबंधन; और कृषि में पानी।

पहले सत्र में  जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की डॉ सीमा बाथला और इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (इक्रीअर ) के सिराज हुसैन द्वारा प्रस्तुत पत्पर में कृषि क्षेत्र के परिवर्तन के लिए संरचनात्मक सुधारों और शासन के मुद्दों की भूमिका पर चर्चा की गई और इसके लिए रास्ते उपलब्ध कराए गए। एक स्थायी और लचीला कृषि और खाद्य प्रणालियों के लिए नीतियों और संस्थानों में सुधार करना। अधिक विशेष रूप से प्रस्तुतकर्ताओं ने कहा कि इनपुट सब्सिडी की व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है क्योंकि इससे  बढ़ती असमानताओं पर ध्यान देते हुए इसमें संतुलन स्थापित करने की वश्यकता है। इसके साथ ही इनपुट सहायता  की जगह आय सहायता पर शिफ्ट करने की जरूरत है। आरएंडडी में निवेश ने उच्चतम रिटर्न दिखाया है और इस पर अधिक फोकस की जरूरत है। सब्सिडी को न केवल एक वित्तीय पहलू से देखा जाना चाहिए, बल्कि कृषि क्षेत्र केविकास में इसकी भूमिका को भी देखा जाना चाहिए। शासन के मुद्दे को कृषि आदानों के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

इसके बाद क्लाइमेट चेंज एंड रिस्क मैनेजमेंट पेपर की प्रस्तुति सिमिट के  डॉ.  प्रमोद के अग्रवाल, इंडिया और एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की डॉ. जयश्री रॉय ने की। फसलों से लेकर पशुपालन, मत्स्य पालन तक व्यापक पहलुओं पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए, प्रस्तुतकर्ताओं ने इस मुद्दे को व्यापक रूप से देखने के महत्व को रेखांकित किया। विशेष रूप से कमजोरियों की प्राथमिकता पर ध्यान केंद्रित किया।  बदलावों के प्रबंधन; फसल की गुवतत्ता के लिए मूल्यवर्धन की भूमिका, गेहूं और चावल जैसे दो मुख्य अनाजों के लिए जोखिम प्रबंधन की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कृषि-आधारित आजीविका पर जलवायु परिवर्तन के अधिक स्थायी और हानिकारक प्रभाव को देखने के महत्व पर भी चोट की, जो खाद्य और पोषण सुरक्षा, असमानता, ऋणग्रस्तता आदि जैसे सामाजिक कल्याण संकेतकों की सीमा से संबंधित है, साथ ही साथ इसके महत्व को भी रेखांकित किया।  इसके अतिरिक्त उन्होंने फसल बीमा की अवधारणा को स्वीकार करने और व्यवहार में लाने के लिए बेहतर संचार, उत्पाद डिजाइन और प्रोत्साहन की आवश्यकता पर बल दिया।

दिन के अंतिम सत्र में, डॉ.  मिहिर शाह और सामाजिक प्रगति सहयोग के  विजयशंकर ने कृषि में जल पर अपना पेपर  प्रस्तुत किया प्रस्तुतकर्ताओं ने देश में कृषि-क्षेत्रों की विविधता और फसलों के विविधीकरण और कृषि-वैज्ञानिक दृष्टिकोण की पहचान करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जो जगह के अनुकूल हैं। प्रस्तुतकर्ताओं ने कहा, भारत की कृषि विज्ञान की विविधता पोषक तत्वों-अनाज, दालों और तेल के बीजों के उच्च हिस्से को विकसित करने के लिए अनुकूल है और इस क्रॉपिंग पैटर्न के लिए संक्रमण / विविधता के लिए आग्रह किया। साथ ही, उन्होंने पानी की बेहतर उपयोग  दर और मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाने के लिए मिट्टी कार्बनिक पदार्थों की रक्षा करने की आवश्यकता को प्रोत्साहित किया। यह स्वीकार करते हुए कि यह प्रतिमान एक दीर्घकालिक उद्देश्य है, प्रस्तुतकर्ताओं ने बेहतर प्रबंधन और जल उपयोग दक्षता के लिए प्रौद्योगिकी और प्रोत्साहन तंत्र का उपयोग करने पर विचार को प्रोत्साहित किया। उस सत्र में जोर दिया गया कि क्रॉपिंग पैटर्न को स्थानांतरित करने से पानी के तनाव से संबंधित मुद्दों का समाधान हो सकता है, लेकिन साथ ही यह चेतावनी भी दी है कि इस संक्रमण को बाजार की मांगों और कीमतों का समर्थन नहीं किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि इस बदलाव का समर्थन करने के लिए, दालों की खरीद बढ़ाना और इसे पीडीएस प्रणाली से जोड़ना काफी मदद कर सकता है।

 

22 जनवरी, 2021:

कांफ्रेंस के अंतिम दिन, पोषक और सुरक्षित भोजन के लिए आहार विविधता के विषय; और विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार पर चर्चा की गई।

 इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च के डॉ. महेंद्र देव और डॉ. विजयरलक्ष्मी पांडे द्वारा प्रस्तुत आहार विविधता के लिए आहार विविधता और सुरक्षित भोजन पर पेपर ने स्वीकार किया कि मजबूत आर्थिक विकास और अधिशेष खाद्य उत्पादन के बावजूद भारत में कुपोषण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की तिहरी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। पोषण प्रक्रिया का  आहार प्रणाली खाद्य प्रणालियों के साथ सीधा संबंध है। खाद्य उत्पादन एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती है। इसलिए प्रस्तुतकर्ताओं ने देश में आहार पैटर्न में एक संरचनात्मक बदलाव का आह्वान किया, जिसका खाद्य प्रणालियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। सुरक्षित और स्वस्थ आहार के लिए पथ में खाद्य आपूर्ति, पर्यावरण मूल्य श्रृंखला, महिला सशक्तीकरण, खाद्य सुरक्षा, उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन और मजबूत निगरानी प्रणाली के साथ एक स्थायी खाद्य प्रणाली दृष्टिकोण शामिल है। सत्र ने स्वीकार किया कि सरकार ने देश में खाद्य असुरक्षा को दूर करने के लिए आईसीडीएस, मिड-डे मील, लक्षित पीडीएस, नकद हस्तांतरण जैसे कई उपाय किए हैं, लेकिन महामारी ने विशेष रूप से गरीबों और हाशिए पर पड़े खाद्य और पोषण सुरक्षा के महत्व को उजागर किया है। प्रस्तुतकर्ताओं ने राज्यों में सरकारी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में बड़ी विसंगतियों को भी स्वीकार किया। इसलिए, पोषण सुरक्षा को संबोधित करने के लिए बेहतर प्रशासन का आग्रह।

विज्ञान, तकनीकी और नवोन्मेष (एसटीआई) सत्र में इस बात पर जोर था कि हमें शोध विज्ञान की उसो लोगों तक पहुंचाने की दक्षता हासिल करने की जरूरत है। एसटीआई के तहत कृषि शिक्षा में गुवअव्तात परर जोर देने की जरूरत है और इसे प्राथमिक स्कूली शिक्षा से ही शुरू करने की जरूरत है। जिस तरह से नई शिक्षा नीति-2020 में जोर दिया गया है। उसी तरह किसान केंद्रीय और टिकाऊ और मांग में बढ़ोतरी व टिकाऊ खेती पर जोर देने के साथ ही महिलाओं की कृषि भूमिका को पहचानने की भी जरूरत है। वैल्यू चेन के जरिये टेक्नोलाजी का उपगोय करते हुए युवाओं को आंत्रप्रन्योर के रूप में कृषि को जोड़ना चाहिए और इसके लिए लघुन उद्योगों को बढ़ावा देने की जरूरत है। इसे स्मार्ट खेती के रूप में बढ़ावा देना चाहिए। नीतियों और कानूनों के जरिये जमीन को पट्टे पर देने, किसानों को ऋण प्रवाह बढ़ाने और तकनीकी सहायता देने के कदम उठाने चाहे जो एक तरह की सामाजिक सुरक्षा का भी काम करेंगे।