प्याज अभी और होगा महंगा, जानिए कब तक आएगी नई फसल

प्याज पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क लगाए जाने के बाद करीब डेढ़ महीने तक तो भाव स्थिर रहे लेकिन अब फिर से बढ़ने शुरू हो गए हैं। महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों की कृषि उपज मंडियों में प्याज के थोक मूल्य में पिछले चार-पांच दिनों में 50 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है। इसकी वजह से खुदरा बाजार में गुणवत्ता के लिहाज से भाव 50-80 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं।

प्याज पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क लगाए जाने के बाद करीब डेढ़ महीने तक तो भाव स्थिर रहे लेकिन अब फिर से बढ़ने शुरू हो गए हैं। महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों की कृषि उपज मंडियों में प्याज के थोक मूल्य में पिछले चार-पांच दिनों में 50 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है। इसकी वजह से खुदरा बाजार में गुणवत्ता के लिहाज से भाव 50-80 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं।

महाराष्ट्र स्थित प्याज की सबसे बड़ी थोक मंडी लासलगांव में प्याज के भाव 40 रुपये प्रति किलो और अन्य मंडियों में 45 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं। जबकि उज्जैन के चिमनगंज मंडी में गुरुवार को भाव 51 रुपये प्रति किलो और दिल्ली की आजादपुर थोक मंडी में 62 रुपये प्रति किलो तक की बोली लगी। यह पिछले चार साल में सबसे ज्यादा थोक भाव है। दरअसल, प्याज की कीमतें बढ़ने की सबसे बड़ी वजह आपूर्ति में कमी होना है। रबी सीजन की प्याज खत्म हो रही है और बहुत कम स्टॉक बचा हुआ है, दूसरी तरफ खरीफ की नई फसल आने में अभी दो-तीन हफ्ते की देरी है। इसका असर आपूर्ति पर पड़ा है।  

शेतकारी संगठन के पूर्व अध्यक्ष और स्वतंत्र भारत पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष अनिल घनवत ने रूरल वॉयस को बताया, “प्याज की कीमतें बढ़ने की वजह खरीफ की नई फसल आने में देरी होना है। इस साल अनियमित मानसून की वजह से प्याज की बुवाई में देरी हुई जिसकी वजह से नई फसल दो-तीन हफ्ते बाद ही बाजार में आ पाएगी। साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण है कि पिछले चार साल से प्याज की खेती में किसानों को घाटा हो रहा है, इसलिए वे कम रकबे में प्याज की खेती कर रहे हैं जिससे उत्पादन प्रभावित हो रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियां हैं। जब किसानों को अच्छी कीमत मिलने लगती है तो उपभोक्ताओं का ख्याल करते हुए सरकार बाजार में हस्तक्षेप करती है। इससे थोड़े समय के लिए तो कीमतें स्थिर रहती हैं लेकिन बाद में बढ़ने लगती है। जब उत्पादन ही कम होगा तो सरकार नियंत्रण की कितनी भी कोशिश करे, कीमतें बढ़ेंगी ही। सरकार की इस तरह की नीति से किसानों को तो नुकसान होता ही है, उपभोक्ताओं को भी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है।”

तीन कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई समित के भी अनिल घनवत सदस्य रहे हैं। घनवत कहते हैं कि सरकार महंगाई थामने के लिए खाद्य पदार्थों के दाम नियंत्रित करने की कोशिश करती है, जबकि गैर-खाद्य पदार्थों की महंगाई ज्यादा बढ़ रही है। इसके अलावा, जब दाम बहुत घट जाते हैं तब सरकार हस्तक्षेप करने क्यों नहीं आती है और किसानों को राहत क्यों नहीं देती है। अभी कुछ महीने पहले ही जब टमाटर के दाम बढ़े तो सरकार ने हस्तक्षेप किया और कीमतें नीचे आ गईं। मौजूदा समय में टमाटर की कीमत काफी घट गई है, किसानों के लिए लागत निकालना मुश्किल हो रहा है और वे टमाटर फेंक रहे हैं, अब सरकार क्यों हस्तक्षेप नहीं कर रही है। इसी तरह, मार्च-अप्रैल में अचानक बारिश की वजह से रबी की प्याज खराब हो गई और भाव 2 रुपये किलो तक पहुंच गया था, तब सरकार सामने क्यों नहीं आई। उनका कहना है कि सरकार की नीतियां किसानों को हतोत्साहित कर रही हैं।

दरअसल, इस साल स्टॉक जल्दी खत्म होने के पीछे एक वजह यह भी है कि मार्च में बेमौसम बारिश की वजह से रबी के प्याज की जीवन अवधि करीब तीन हफ्ते कम हो गई थी। इसे ही भंडारित कर रखा जाता है। रबी की प्याज का इस्तेमाल अक्टूबर-नवंबर तक होता है। उसके बाद खरीफ की प्याज आने लगती है। खरीफ के प्याज की जीवन अवधि दो-ढाई महीने से ज्यादा नहीं होती है।