राजस्थान हाई कोर्ट ने सेफ्टी नियम बनने तक जीएम फ़ूड की बिक्री पर रोक लगाई

राजस्थान हाई कोर्ट ने फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट, 2006 के सेक्शन 22 के तहत कानूनी सेफ्टी नियम बनने तक जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फूड्स की बिक्री, उन्हें बनाने, आयात और डिस्ट्रीब्यूशन पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने FSSAI और केंद्र को छह महीने के अंदर GM फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड बनाने का निर्देश दिया है।

जीएम-मुक्त भारत गठबंधन (The Coalition for a GM-Free India) ने राजस्थान उच्च न्यायालय के उस आदेश का स्वागत किया है जिसमें कहा गया है कि किसी भी खाद्य पदार्थ/पैकेज्ड खाद्य पदार्थ के आयात की अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक कि उन्हें निर्यातक देश द्वारा जीएम-मुक्त प्रमाणित और लेबल न किया गया हो। साथ ही, इसने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 की धारा 22 के तहत वैधानिक नियम बनाए बिना भारत में किसी भी जीएम खाद्य पदार्थ की बिक्री, निर्माण, वितरण या आयात की अनुमति देने पर रोक लगा दी है। हाई कोर्ट ने 13 अक्टूबर 2025 को जारी आदेश में कहा कि उनकी टिप्पणियां और निष्कर्ष जनहित याचिकाओं के एक समूह पर सर्वोच्च न्यायालय के जुलाई 2024 के फैसले के अनुरूप हैं। उच्च न्यायालय ने एफएसएसएआई के साथ-साथ केंद्र सरकार से छह महीने के भीतर जीएम खाद्य पदार्थों पर नियम बनाने और अधिसूचित करने को भी कहा। 

जीएम-मुक्त भारत गठबंधन का कहना है कि उसने पहले ही जुलाई 2024 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में एक गंभीर विसंगति की ओर इशारा किया है, जिसमें खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 की धारा 23 (लेबलिंग के संबंध में) को लागू करने का आदेश दिया गया था, जबकि पहले धारा 22 को लागू करने का आदेश नहीं दिया गया था। उसका कहना है कि सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किसी नियामक ढांचे के बिना, धारा 22 के नियमों के माध्यम से लेबलिंग नियमों को लागू करना अर्थहीन है और खाद्य सुरक्षा कानून का मजाक उड़ाना है। उच्च न्यायालय के आदेश में "एफएसएसएआई के साथ-साथ भारत सरकार को 2006 के अधिनियम की धारा 22 को उसके सही अर्थों में लागू करने और आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थों के संबंध में समयबद्ध तरीके से मानक और सुरक्षा प्रोटोकॉल बनाने का निर्देश दिया गया है।" 

राजस्थान उच्च न्यायालय का यह फैसला ऐसे महत्वपूर्ण समय में आया है जब अमेरिका अपने जीएम उत्पादों को भारत में लाने के लिए घरेलू कानूनों, नियमों और नीतियों से समझौता करते हुए पुरजोर कोशिश कर रहा है। यह फैसला यह भी सुनिश्चित करता है कि स्व-प्रमाणन (सेल्फ सर्टिफिकेशन) लागू न हो। केवल निर्यातक देश की एक अधिकृत एजेंसी ही भारत को निर्यात किए जा रहे सभी खाद्य पदार्थों की जीएम-मुक्त स्थिति को प्रमाणित कर सकती है। अमेरिकी सरकार ने पहले भी प्रस्तावित विनियमन पर आपत्तियां उठाकर भारत में आने वाले प्रसंस्कृत जीएम खाद्य से निपटने के एफएसएसएआई के प्रयास को कमजोर किया है।

उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ के आदेश में कहा गया है कि "किसी भी जीएम खाद्य पदार्थ, चाहे वह घरेलू रूप से उगाया गया हो या आयातित, जिसमें खाद्य तेल भी शामिल हैं, को व्यापक कानूनी जांच के बिना भारतीय रसोई तक पहुंचने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जैसा कि संसदीय समितियों द्वारा पहले ही आगाह किया जा चुका है।" 

अतीत में, जब सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भारत में अवैध जीएम खाद्य पदार्थों की मौजूदगी का खुलासा किया था, तब एफएसएसएआई ने कुछ खाद्य उत्पादों में जीएम अवयवों की मौजूदगी से इनकार किया था। एफएसएसएआई का यह इनकार चौंकाने वाला है, क्योंकि कुछ खाद्य कंपनियों ने खुद अपने लेबल पर जीएम की मौजूदगी का ज़िक्र किया था! 

जीएम-मुक्त भारत गठबंधन की कविता कुरुगंती ने कहा, "जीईएसी और एफएसएसएआई जैव सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और भारतीयों की सुरक्षा करने के अपने वैधानिक कर्तव्य को निभाने में लगातार विफल रहे हैं। राजस्थान उच्च न्यायालय का आदेश इन वैधानिक नियामक संस्थाओं के लिए एक सही रिमाइंडर है कि वे अपने दायित्वों को ज़िम्मेदारी और जवाबदेही के साथ पूरा करें। उच्च न्यायालय का आदेश यह सुनिश्चित करता है कि भारत सरकार पर अमेरिकी दबाव के कारण आम भारतीयों की बलि न चढ़ाई जाए।"