जीएम सरसों के खिलाफ खड़ा हुआ ‘सरसों सत्याग्रह’ मंच, देशभर में करेगा विरोध

सरसों सत्याग्रह ने जीएम-सरसों की मंजूरी के मामले में बीटी-बैंगन से भी बुरी तरह नियामक प्रक्रिया का पालन करने का आरोप लगाया। उसने कहा कि इस मामले में जीईएसी ने गैर जरूरी जल्दबाजी दिखाई है। इसके लिए वैज्ञानिक मानकों का पूरी तरह से पालन नहीं किया गया। इसके साथ ही पर्यावरण मंत्रालय ने नीति निर्धारण के लिए अपनी जिम्मेदारी को ठीक से नहीं निभाया। इसलिए यह अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश के नागरिकों के सामने सही वैज्ञानिक तथ्यों को रखें

जीएम सरसों की पर्यावरण रिलीज के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) द्वारा जारी अनुमोदन पत्र के खिलाफ सरसों सत्याग्रह नाम के मंच ने देश भर में विरोध करने की घोषणा की है। शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में सरसों सत्याग्रह ने कहा कि हम हर उपलब्ध लोकितांत्रिक और अहिंसक उपायों को सक्रिय कर सुनिश्चित करेंगे कि जीएम सरसों की रोपाई पर तुरंत रोक लगे और इससे भारत में कोई अपरिवर्तनीय नुकसान न हो। इस मंच में शामिल लोगों ने कहा कि  इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को कहा है कि इस मामले की 10 नवंबर को होने वाली सुनवाई तक यथास्थिति बनी रहनी चाहिए।

जीएम-सरसों की मंजूरी के मामले में बीटी-बैंगन से भी बुरी तरह नियामक प्रक्रिया का पालन करने का आरोप भी सरसों सत्याग्रह ने लगाया। उसने कहा कि इस मामले में जीईएसी ने गैर जरूरी जल्दबाजी दिखाई है। इसके लिए वैज्ञानिक मानकों का पूरी तरह से पालन नहीं किया गया। इसके साथ ही पर्यावरण मंत्रालय ने नीति निर्धारण के लिए अपनी जिम्मेदारी को ठीक से नहीं निभाया। इसलिए यह अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश के नागरिकों के सामने सही वैज्ञानिक तथ्यों को रखें। 

सरसों सत्याग्रह के बैनर तले हुई प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करने वालों में आशा किसान स्वराज से कपिल शाह, रेपसीड-सरसों अनुसंधान निदेशालय के पूर्व डायरेक्टर डॉ. धीरज सिंह, खाद्य नीति मामलों के एक्सपर्ट देवेंद्र शर्मा, खेती विरासत के उमेंद्र दत्त, कृषि वैज्ञानिक डॉ. सतविंद्र कौर मान, कवित कुरूगंटी (जीएम मुक्त भारत के लिए गठबंधन) और भारतीय किसान यूनियन के नेता युद्धवीर सिंह शामिल थे। 

जीएम सरसों और इसकी एचटीबीटी किस्म के लिए ग्लूफोसिनेट के उपयोग से पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान, बॉयो डायवर्सिटी को होने वाले नुकसान, सरसों का मूल भारत में होने के चलते इस मंजूरी से होने वाले नुकसान और शहद उत्पादकों का निर्यात बाजार खत्म होने जैसे तमाम मुद्दों पर सिलसिलेवार और विस्तृत रूप से चर्चा हुई। पैनलिस्टों ने कहा कि वह वैज्ञानिक तथ्यों और विज्ञान के खिलाफ नहीं हैं लेकिन वह इसके लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाये जाने के पक्षधर हैं।

पैनलिस्टों ने बॉयो सेफ्टी और एक्सपर्ट कमेटी व संसदीय समिति द्वारा एचटीबीटी और जीएम सरसों का विरोध किये जाने का दावा किया। उन्होंने दावा किया जिस हाइब्रिड किस्म को मंजूरी दी गई है उससे अधिक उत्पादकता की किस्में पहले से मौजूद हैं। साथ ही जीएम सरसों में उपयोग की गई पैरेंटल लाइंस को भी मंजूरी दे दी गई। उन्होंने कहा कि वह देश भर में लोकतांत्रिक तरीक से इसके खिलाफ आंदोलन करेंगे।