यूरिया का आयात मूल्य 530 डॉलर पर पहुंचा, घरेलू स्टॉक पिछले साल से 49 लाख टन कम होने से बढ़ी किल्लत

ताजा आंकड़ों के मुताबिक 1 अगस्त, 2025 को देश में यरिया का स्टॉक 37.19 लाख टन था जो 1 अगस्त 2024 के मुकाबले 49.24 लाख टन कम है। एक अगस्त, 2024 को देश में यूरिया का स्टॉक 86.43 लाख टन था।

देश में यूरिया के स्टॉक में पिछले साल के मुकाबले भारी गिरावट आई है। इसके चलते कई राज्यों में किसान यूरिया की उपलब्धता के संकट से जूझ रहे हैं। उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में यूरिया की कीमतें बढ़ने से देश में आयातित यूरिया की लागत 530 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है जो मई में 400 डॉलर के आसपास थी। 

डाईअमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की किल्लत का सामना कर रहे किसानों के सामने यूरिया की कमी ने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 1 अगस्त 2025 को देश में यूरिया का क्लोजिंग स्टॉक 37.19 लाख टन था जो पिछले साल के मुकाबले 49.24 लाख टन कम है। एक अगस्त, 2024 को देश में यूरिया का क्लोजिंग स्टॉक 86.43 लाख टन था। इस तरह यूरिया का स्टॉक पिछले साल के मुकाबले आधे से भी कम है। पिछले दिनों राज्यों के कृषि मंत्रियों ने यूरिया की कमी का मुद्दा उठाते हुए केंद्र सरकार से अतिरिक्त यूरिया की मांग की थी।  

इस साल देश में बेहतर मानसून के चलते रिकॉर्ड क्षेत्रफल में खरीफ की बुआई हुई है। बुवाई क्षेत्र में सबसे अधिक बढ़ोतरी धान और मक्का में हुई है और इन दोनों फसलों में यूरिया की अधिक खपत होती है। जबकि कम यूरिया की जरूरत वाली फसलों जैसे तिलहन और कुछ दालों का क्षेत्रफल कम हुआ है। इस स्थिति ने यूरिया की मांग को बढ़ा दिया है जबकि देश में उपलब्ध स्टॉक पिछले साल का आधा भी नहीं है। इसी के चलते कई राज्यों किसान यूरिया के लिए लंबी लाइनों में दिख रहे हैं। क्योंकि उनके लिए इस समय यूरिया की उपलब्धता अहम हैं।

यूरिया की कमी के पीछे जहां वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी बड़ी वजह है वहीं चीन द्वारा भारत को यूरिया का निर्यात नहीं करना भी एक कारण है। हालांकि, इस तरह की खबरें आ रही हैं कि चीन भारत को उर्वरक निर्यात पर प्रतिबंध हटा रहा है। लेकिन अब अगर भारत चीन के साथ आयात सौदे भी करता है तो वहां से आयातित यूरिया को किसानों तक पहुंचने में एक से डेढ़ माह लगेगा। 

दूसरी ओर यूरिया का घरेलू उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक, रामागुंडम फर्टिलाइजर और तालचेर उर्वरक संयंत्र में भी उत्पादन प्रभाावित हुआ है। वहीं काकीनाडा स्थित नागार्जुन फर्टिलाइजर ने यूरिया उत्पादन की बजाय ग्रीन अमोनिया बनाकर उसके निर्यात को प्राथमिकता दी है। 

अन्य उर्वरकों में एक अगस्त, 2025 को डीएपी का स्टॉक 13.90 लाख टन था जो पिछले साल इसी समय के 15.82 लाख टन के मुकाबले थोड़ा कम है। वहीं कॉम्प्लेक्स उर्वरकों का स्टॉक एक अगस्त, 2025 को 34.97 लाख टन रहा जो पिछले साल इसी तिथि को 46.99 लाख टन था। एमओपी का स्टॉक पिछले साल के आठ लाख टन के मुकाबले इस साल एक अगस्त, 2025 को 6.27 लाख टन रहा। हालांकि, एसएसपी का स्टॉक पिछले साल के 20.06 लाख टन के मुकाबले इस साल एक अगस्त, 2025 को 20.73 लाख टन रहा। 

कॉप्लेक्स उर्वरकों के लिए सरकार न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) के तहत सब्सिडी देती है और उनकी कीमतों को नियंत्रित नहीं किया जाता है। लेकिन यूरिया की कीमत सरकार के नियंत्रण में है और उसके उपर बिक्री मूल्य के अतिरिक्त आने वाली लागत की पूरी भरपाई सरकार सब्सिडी के जरिये करती है। इसके बावजूद यूरिया की किल्लत पैदा होना असामान्य है क्योंकि डीएपी और दूसरे कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की किल्लत की खबरे तो पहले आती ही हैं लेकिन यूरिया को लेकर इस तरह की दिक्कत का सामना किसानों को बहुत कम करना पड़ा है। यूरिया की किल्लत का असर खरीफ सीजन के उत्पादन पर पड़ सकता है।