'कोई भी देश अपने नागरिकों की अनदेखी कर अनाज निर्यात नहीं कर सकता'

जब तक डब्ल्यूटीओ अपने नियमों में ढील नहीं देता या संशोधन नहीं करता है और जब तक आईएमएफ के नेतृत्व में सभी प्रभावित देश डब्ल्यूटीओ पर दबाव नहीं बनाते हैं, तब तक भारत निर्यात पर प्रतिबंध नहीं हटा सकता है। अगर सरकार को दया दिखानी ही है तो नीति ऐसी हो कि उन देशों को प्राथमिकता मिले जिन्हें गेहूं की आवश्यकता बहुत अधिक है

दुनिया में खाद्य संकट चिंताजनक स्थिति पर पहुंच गया है। अनेक देशों के सामने अपनी आबादी को खिलाने के लिए अनाज खासकर गेहूं की कमी पड़ गई है। अनेक देशों में लोग भुखमरी की तरफ बढ़ रहे हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गेहूं निर्यात पर लगी पाबंदी हटाने का आग्रह करना पड़ा, ताकि इन देशों को भुखमरी से बचाया जा सके। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण अनेक पश्चिमी देशों में खाद्य का संकट बना है क्योंकि यह दोनों देश दुनिया के बड़े गेहूं उत्पादक देश ही नहीं बल्कि बड़े निर्यातक भी हैं।

इन हालात में भारत इस समय काफी बेहतर स्थिति में है। यहां देश की आबादी को खिलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में अनाज उपलब्ध है। हालांकि इस वर्ष मौसम की गड़बड़ी के कारण उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। मानवीय आधार पर मौलिक सवाल यह है कि किसी आवश्यक खाद्य कमोडिटी का निर्यात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक या व्यापार आधारित मुद्दों के चलते रोका जाना चाहिए? विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नियम तय करता है, इसलिए किसी एक देश के लिए डब्ल्यूटीओ के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करना संभव नहीं है।

भारत ऐसे संकट के समय बड़ा दिल और मानवीय सोच रखने वाला देश माना जाता है। उदाहरण के लिए अनेक देशों को कोविड-19 महामारी की करोड़ों वैक्सीन निर्यात की गई। लेकिन प्रधानमंत्री ने मौजूदा हालात में जो सावधानी दिखाई है उसे समझा जा सकता है। कोई भी देश अपने नागरिकों की आवश्यकताओं की अनदेखी करते हुए किसी कमोडिटी का निर्यात नहीं कर सकता है। खासकर तब जब उससे समाज के गरीब वर्ग को वह कमोडिटी ना मिलने का खतरा हो।

जब तक डब्ल्यूटीओ अपने नियमों में ढील नहीं देता या संशोधन नहीं करता है और जब तक आईएमएफ के नेतृत्व में सभी प्रभावित देश डब्ल्यूटीओ पर दबाव नहीं बनाते हैं, तब तक भारत निर्यात पर प्रतिबंध नहीं हटा सकता है। अगर सरकार को दया दिखानी ही है तो नीति ऐसी हो कि उन देशों को प्राथमिकता मिले जिन्हें गेहूं की आवश्यकता बहुत अधिक है। इसके लिए डब्ल्यूटीओ भी मंजूरी दे और भारत पर निर्यात के लिए दबाव ना बनाया जाए बल्कि भारत मानवीय आधार पर निर्यात करे।

यह 'अन्नदाता सुखीभव' और 'अन्नपूर्णी' के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सही कदम होगा। मानवता की भलाई के लिए इस आध्यात्मिक संदेश और सामाजिक उद्देश्य को ध्यान में रख भारत सरकार गेहूं निर्यात की दिशा में कदम उठा सकती है। संदेश बिल्कुल साफ है कि डब्ल्यूटीओ/आईएमएफ को बिना देरी किए इस दिशा में कदम बढ़ाना पड़ेगा। उम्मीद है कि करोड़ों लोगों का जीवन बचाने के लिए वे आगे आएंगे।

(लेखक सीपीसीआरआई, कासरगोड के पूर्व डायरेक्टर हैं और सोसाइटी फॉर हंगर एलीमिलेशन (एसएचई) के प्रेसिडेंट हैं, लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं)