महिला सशक्तीकरण के लिए एनआरएलएम एक बेहतर उदाहरण, टेक्नोलॉजी तक पहुंच और मार्केटिंग में सुधार की दरकार

इस कार्यक्रम का मुख्य मंत्र केंद्र सरकार, राज्य सरकार और पंचायतों की विभिन्न योजनाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ मिलाना है। संस्थागत विकास और प्रभावी गवर्नेंस के लिए विभिन्न स्तरों पर स्वयं सहायता समूहों को जोड़ा गया है

दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) का उद्देश्य 10 करोड़ परिवारों को स्वयं सहायता समूह के रूप में संगठित करना है, ताकि टेक्नोलॉजी और मार्केटिंग के क्षेत्र में उनकी मदद की जा सके और उनका विकास हो सके। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन को 3 जून 2011 से पूरे देश में मिशन मोड में लागू किया गया है। मई 2013 और दिसंबर 2015 में इसका पुनर्गठन किया गया और नाम डीएवाई-एनआरएलएम रखा गया।

1. डीएवाई-एनआरएलएम के मुख्य फीचर

हर ग्रामीण गरीब परिवार की कम से कम एक महिला को स्वयं सहायता समूह नेटवर्क से जोड़ा जाना है। गरीब इस कार्यक्रम के मुख्य भागीदार हैं और कार्यक्रम को लागू भी गरीब ही कर रहे हैं। गरीबों की शक्ति को देखते हुए इस कार्यक्रम को ‘गरीबों के लिए, गरीबों का और गरीबों के द्वारा’ कहा जा सकता है। इस कार्यक्रम का मुख्य मंत्र केंद्र सरकार, राज्य सरकार और पंचायतों की विभिन्न योजनाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ मिलाना है। संस्थागत विकास और प्रभावी गवर्नेंस के लिए विभिन्न स्तरों पर स्वयं सहायता समूहों को जोड़ा गया है।

2. डीएवाई-एनआरएलएम के मुख्य भाग

संस्था निर्माणः गरीबों को संगठित करना, उन्हें संस्थागत रूप देना और उनकी क्षमता बढ़ाना ताकि सामूहिक रूप से उनकी गरीबी दूर की जा सके। इस मिशन के तहत गरीबों के संस्थानों को रिवाल्विंग फंड (10000 से 15000 रुपए), कम्युनिटी इन्वेस्टमेंट फंड (सीआईएफ) जैसे फंड मुहैया कराए जाते हैं। इसका उद्देश्य उनका वित्तीय आधार मजबूत करना है। बैंकिंग कॉरेस्पांडेंट सखी के माध्यम से दूरदराज के इलाकों में फाइनेंशियल इनक्लूजन को लागू किया जा सकता है।

ब्याज में छूटः स्वयं सहायता समूह के सदस्य 7 फ़ीसदी कर्ज की दर और बैंक की दर के बीच अंतर के बराबर ब्याज में छूट के हकदार हैं। 250 जिलों में सभी महिला स्वयं सहायता समूह 7 फ़ीसदी ब्याज पर तीन लाख रुपए तक का कर्ज ले सकती हैं। समय पर कर्ज लौटाने पर ब्याज में 3 फ़ीसदी अतिरिक्त छूट का प्रावधान है। इस तरह प्रभावी ब्याज की दर 4 फ़ीसदी रह जाती है।

3. आजीविका प्रमोशन

टिकाऊ खेती, मवेशी और नेशनल टिंबर फॉरेस्ट प्रोड्यूस (एनपीएसपी) के लिए कृषि आजीविका में मदद की जाती है। यह मदद महिला किसान सशक्तीकरण प्रोग्राम (एमकेएसपी) प्रोजेक्ट और राज्यों के लाइवलीहुड एनुअल एक्शन प्लान के माध्यम से की जाती है। आजीविका को बढ़ावा देने में सामुदायिक स्तर पर कृषि सखी, पशु सखी और वन सखी जैसे व्यक्ति होते हैं। गैर कृषि आजीविका को स्टार्टअप विलेज आंत्रप्रेन्योरशिप प्रोग्राम (एसवीईपी) और आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना (एजीईवाई) के माध्यम से लागू किया जाता है। नेशनल रूरल इकोनॉमिक ट्रांसफॉर्मेशन प्रोजेक्ट (एनआरईटीपी) के तहत भी इसे बढ़ावा दिया जाता है।

उप योजनाएं

महिला किसान सशक्तीकरण कार्यक्रम (एमकेएसपी) कृषि और एनटीएफपी में महिलाओं को सशक्त करने के उद्देश्य के साथ लांच किया गया था। इसके लिए कृषि आधारित आजीविका में उनकी भागीदारी और उत्पादकता बढ़ाने, एनटीएफपी के लिए टिकाऊ हार्वेस्टिंग क्षमता निर्माण करने और हार्वेस्टिंग के बाद की तकनीक विकसित करने में निवेश किया गया।

एसवीवीपी में ग्रामीण इलाकों में छोटे बिजनेस स्थापित करने के लिए उद्यमियों की मदद की जाती है। इसके लिए उन्हें बिजनेस की व्यावहारिकता, मैनेजमेंट की जानकारी मुहैया कराने के साथ बिजनेस शुरू करने और उसके विस्तार के लिए कर्ज लेने में भी मदद की जाती है। एजीईवाई ग्रामीण इलाकों में सुरक्षित, सस्ता और कम्युनिटी की मॉनिटरिंग पर आधारित ट्रांसपोर्ट सेवा मुहैया कराने के लिए है। इसके वाहन के मालिक स्वयं सहायता समूह के सदस्य होते हैं और वही उन इलाकों में ऑपरेट करते हैं जहां नियमित ट्रांसपोर्ट कंपनियां अपनी सेवाएं नहीं देती हैं। आरएसईटीआई हर जिले में उपलब्ध है और इसके तहत युवाओं को शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग दी जाती है। कुछ आरएसईटीआई युवाओं को ऑफसाइट ट्रेनिंग भी देते हैं। ट्रेनिंग के बाद इंटरएक्टिव वेब पोर्टल, कॉल सेंटर, बिजनेस काउंसलिंग सेंटर और एल्यूमनी सम्मेलन में भी मदद की जाती है।

4. लागू करने की रणनीति

इस मिशन को सभी 28 जिलों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया गया है। हर स्तर पर स्पेशलाइज्ड राज्य मिशन मैनेजमेंट यूनिट (एसएमएमयू), जिला मिशन मैनेजमेंट यूनिट (डीएमएमयू) और ब्लॉक मिशन मैनेजमेंट यूनिट (बीएमएमयू) स्थापित किए गए हैं। अभी इस मिशन के तहत 706 जिलों के 6782 ब्लॉक में कार्य चल रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 के अंत तक इसके पूरा होने की उम्मीद है।

5. डीएवाई-एनआरएलएम की मौजूदा स्थिति

उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मिशन के तहत चल रहा कार्य उत्साहजनक है। वित्त वर्ष 2011-12 से 2013-14 के दौरान स्वयं सहायता समूह में महिलाओं की संख्या 2.35 करोड़ थी जो मई 2022 में 5.96 करोड़ हो गई। यह एक दशक में 153% वृद्धि दर्शाता है। इसी तरह स्वयं सहायता समूहों की संख्या भी बढ़ी है। 2011-12 से 2013-14 तक इनकी संख्या 19.29 लाख थी जो मई 2022 में 76.21 लाख हो गई। यानी इसमें 300% की वृद्धि हुई है। स्वयं सहायता समूहों को आरएस और सीआईएफ के रूप में दिए गए कर्ज और कैपिटलाइजेशन की राशि भी कई गुना बढ़ी है। 31 मई 2014 तक गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) 9.58% थी जो 21 जून 2022 को घटकर 2.35% रह गई। इससे पता चलता है कि मिशन लागू होने के एक दशक में एनपीए में बड़ी गिरावट आई है।

मिशन के तहत 78,549 बैंकिंग कॉरस्पॉडेंट कार्य कर रहे हैं। एजीईवाई के तहत वाहनों की संख्या 1811 है और कम्युनिटी द्वारा मैनेज किए जाने वाले कस्टम हायरिंग सेंटर की संख्या 24,381 है। वित्त वर्ष 2013-14 में प्रोड्यूसर एंटरप्राइज की संख्या 34 थी जो मई 2022 में बढ़कर 183 हो गई। इस तरह इस में 400% से अधिक की वृद्धि हुई है। इसी प्रकार वित्त वर्ष 2013-14 में एमकेएसपी की संख्या एक दशक में 600% से अधिक बढ़कर 170 हो गई है।

इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि मिशन लागू होने के बाद से इसका प्रदर्शन अच्छा रहा है। एनपीए में गिरावट से यह भी पता चलता है कि निचले स्तर पर परिसंपत्तियों में सुधार हुआ है। यह तथ्य बताते हैं कि लोकल अब वोकल हो रहा है।

6. मिशन का मूल्यांकन और असेसमेंट 

इंस्टीट्यूट आफ रूरल मैनेजमेंट आनंद (आईआरएमए) के असेसमेंट से पता चला कि 1) जिन इलाकों में मिशन लागू नहीं किया गया उनकी तुलना में मिशन लागू किए जाने वाले इलाकों में प्रत्येक परिवार के पास 2.34 मवेशी अधिक थे। 2) संस्थाओं को बचाने के लिए लोगों में झुकाव देखा गया। 3) गैर मिशन वाले इलाको में कर्ज का आकार 67% अधिक था। 4) बिना मिशन वाले इलाकों की तुलना में मिशन लागू किए गए इलाकों में परिवारों की आमदनी 22% अधिक थी, खासकर एंटरप्राइज से होने वाली आमदनी के कारण। 5) एनआरएलएम परिवार पंचायत गतिविधियों में अन्य की तुलना में 3 गुना अधिक हिस्सेदारी करते हैं।

क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) ने 2019 में एसवीईपी का मध्यावधि असेसमेंट किया था। इससे पता चला कि 1) 82% आंत्रप्रेन्योर अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के हैं। 2) 75 फ़ीसदी उपक्रम का प्रबंधन महिलाएं कर रही थीं। 3) परिवारों की कुल आय का 57% एसवीईपी के तहत प्रमोट किए गए उद्यमों से आता है। 4) उद्यमों का औसत मासिक राजस्व 39000 रुपए के आसपास है। 5) 99% उद्यमियों ने उद्यम से अतिरिक्त आमदनी की बात स्वीकार की।

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम का 2019 में मूल्यांकन किया गया। इससे पता चला कि 1) परिवारों की आय 19 फ़ीसदी बढ़ी है। 2) अनौपचारिक कर्ज में 20% की गिरावट आई है। 3) बचत 28% बढ़ी है। 4) गैर मिशन वाले इलाकों की तुलना में मिशन वाले इलाकों में परिवारों को अन्य योजनाओं का भी लाभ अधिक मिला है।

7. मिशन की चुनौतियां

मिशन के तहत प्रगति का अंदाजा इस बात से होता है कि इसके लिए जो फंड का आवंटन 2011-12 में 2914 करोड़ रुपए का था वह एक दशक में 358% बढ़कर 13336.42 करोड़ रुपए हो गया। 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 2022-23 के बजट अनुमान में भी बढ़ोतरी की गई है। फिर भी कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनका आगे समाधान किया जाना चाहिए।

ग्रामीण विकास मंत्रालय के पांचवें कॉमन रिव्यू मिशन ने 2019 में सुझाव दिया कि 1) बड़ी संख्या में रिक्तियों को भरा जाए 2) कॉन्ट्रैक्ट अथवा आउटसोर्स किए गए लोगों के लिए बेहतर एचचार मैनुअल हो। 3) सुमित बोस की अध्यक्षता में गठित टास्क फोर्स की सिफारिशों पर अमल किया जाए। राज्य की ट्रेजरी से एनआरएलएम अकाउंट में फंड ट्रांसफर में देरी और एनआरएलएम के डायरेक्टर के बार बार तबादले से भी मिशन को आगे बढ़ाने में बाधा आती है। 

केरल में कुदुंबश्री, छत्तीसगढ़ में बिहान कैंटीन और बिहान आउटलेट, उड़ीसा में सोशल ऑडिट स्वयं सहायता समूहों के लिए अच्छे कदम हैं। हालांकि जैसा 5वें कॉमन रिव्यू मिशन 2019 की सिफारिशों में कहा गया है, मणिपुर, मेघालय, राजस्थान जैसे राज्यों पर अधिक फोकस किया जाना चाहिए। आरएसईटीआई के तहत सावधानीपूर्वक लाभार्थियों की पहचान की जानी चाहिए।

अंत में कहा जा सकता है कि युद्ध के लिए पुरुष और चौका चूल्हा के लिए स्त्री, हाथ में कलम हो लेकिन लिखना न जानता हो, हाथ में तलवार हो लेकिन उसका इस्तेमाल करना ना जानता हो, जैसी कहावतें अब बेकार हो चुकी हैं। महिलाओं के विकास के लिए उनका उचित सामाजिक मोबिलाइजेशन जरूरी है।

गांव के सभी युवाओं चाहे वह महिला हो अथवा पुरुष, को इस मिशन का फायदा उठाना चाहिए। जानकार लोगों को जिले की वेबसाइट देखनी चाहिए अथवा डीएवाई-एनआरएलएम के डिप्टी कमिश्नर के साथ व्यक्तिगत मुलाकात करनी चाहिए। उत्तर प्रदेश में ऐसे डिप्टी कमिश्नर चीफ डेवलपमेंट ऑफिसर के कार्यालय परिसर में बैठते हैं। सभी राज्यों में इस तरह के कार्यालय हैं। लोगों को उनके बारे में जरूरी सूचनाएं जुटानी चाहिए और उनका फायदा लेना चाहिए। 

(लेखक इंडियन इकोनॉमिक सर्विस के पूर्व अधिकारी और कर्प फाउंडेशन  के प्रेसिडेंट हैं। उनसे mpal1661@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।