वैश्विक कृषि को आपदाओं से तीन दशक में 3.26 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान; FAO ने डिजिटल तकनीक को बताया प्रमुख समाधान

FAO की नई रिपोर्ट बताती है कि पिछले 33 वर्षों में आपदाओं के कारण वैश्विक कृषि को 3.26 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ, जिससे खाद्य आपूर्ति में गिरावट और भूख की समस्या बढ़ी। इन आपदाओं से एशिया, अमेरिका और अफ्रीका सबसे अधिक प्रभावित हुए। रिपोर्ट दिखाती है कि एआई, रिमोट सेंसिंग, अर्ली वार्निंग सिस्टम और पैरामीट्रिक बीमा जैसी डिजिटल तकनीक जोखिमों का पूर्वानुमान लगाने में मदद कर रही हैं। इसलिए FAO ने समावेशी डिजिटल पहुंच पर जोर दिया है।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार पिछले 33 वर्षों में वैश्विक कृषि क्षेत्र को आपदाओं से लगभग 3.26 ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर का नुकसान हुआ है। 'द इम्पैक्ट ऑफ डिज़ास्टर्स ऑन एग्रीकल्चर एंड फूड सिक्योरिटी 2025' शीर्षक वाली यह रिपोर्ट अब तक का सबसे व्यापक मूल्यांकन प्रस्तुत करती है कि सूखा, बाढ़, कीट, तूफान और समुद्री हीटवेव जैसी घटनाएं किस प्रकार वैश्विक खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर रही हैं। 

FAO ने पाया कि 1991 से 2023 के बीच आपदाओं ने 4.6 अरब टन अनाज, 2.8 अरब टन फल और सब्जियां और 90 करोड़ टन मांस और दुग्ध उत्पाद नष्ट कर दिए। इन नुकसानों के कारण प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 320 किलो कैलोरी ऊर्जा की कमी आई है, जो औसत ऊर्जा आवश्यकता का लगभग 13 से 16 प्रतिशत है। इस स्तर का विनाश विशेषकर उन क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा को गहरा कर रहा है जहां कृषि आजीविका का प्रमुख आधार है।

एशिया में वैश्विक कृषि का सबसे अधिक नुकसान होता है। दुनिया का 47 प्रतिशत नुकसान यहीं होता है जिसकी वैल्यू 1.53 लाख करोड़ डॉलर है। यह क्षेत्र न केवल बड़े पैमाने पर कृषि उत्पादन करता है, बल्कि बाढ़, तूफानों और लंबे सूखे जैसी चरम घटनाओं के अत्यधिक संपर्क में भी है। अमेरिका महाद्वीप में कुल वैश्विक नुकसान का 22 प्रतिशत यानी लगभग 713 अरब डॉलर का नुकसान हुआ, जो लगातार सूखे, विनाशकारी तूफानों और अत्यधिक तापमान की घटनाओं के कारण हुआ। अफ्रीका में 611 अरब डॉलर का नुकसान दर्ज किया गया, लेकिन सबसे अधिक अनुपातिक प्रभाव यहीं पड़ा। यहां कृषि GDP का 7.4 प्रतिशत आपदाओं से नष्ट हो गया। उन अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाओं में जहां खेती रोजगार और आय का मुख्य स्रोत है, इस नुकसान ने खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण स्थिरता पर गहरा प्रभाव डाला है।

छोटे द्वीपीय विकासशील देश भी दुनिया के सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों में बने हुए हैं। हालांकि इनका कृषि उत्पादन अपेक्षाकृत कम है, लेकिन बार-बार आने वाले चक्रवातों, बाढ़ और समुद्र-स्तर में वृद्धि के कारण कृषि GDP के मुकाबले आपदाओं का प्रभाव अत्यधिक रहता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 1985 और 2022 के बीच समुद्री हीटवेव के कारण 6.6 अरब डॉलर का नुकसान हुआ, जिससे वैश्विक फिशरीज का 15 प्रतिशत प्रभावित हुआ। यह नुकसान अक्सर आपदा आकलनों में अदृश्य रह जाता है, जबकि मत्स्य क्षेत्र विश्वभर में 50 करोड़ लोगों की आजीविका का आधार है।

रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि डिजिटल तकनीकें आपदा जोखिम प्रबंधन में महत्वपूर्ण मोड़ ला रही हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन, सेंसर, मोबाइल-आधारित मॉनिटरिंग सिस्टम, रिमोट सेंसिंग प्लेटफ़ॉर्म और प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स जैसी तकनीकें किसानों और सरकारों को वास्तविक समय में जोखिमों की निगरानी करने, प्रभावों का अनुमान लगाने और नुकसान होने से पहले कार्रवाई करने में सक्षम बना रही हैं। FAO के महानिदेशक कू डोंग्यु ने कहा कि डिजिटल रूपांतरण जोखिम कम करने में मूलभूत बदलाव ला रहा है। FAO के अनुसार, 91 लाख से अधिक किसान डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से पैरामीट्रिक बीमा तक पहुंच प्राप्त कर चुके हैं

रिपोर्ट डिजिटल नवाचार के कई उदाहरण प्रस्तुत करती है। FAO का क्लाइमेट रिस्क टूलबॉक्स 200 से अधिक परियोजनाओं में कृषि योजना का मार्गदर्शन करने के लिए वैश्विक डेटासेट को एकीकृत करता है। रिफ़्ट वैली फीवर अर्ली वार्निंग डिसीजन सपोर्ट टूल ने पूर्वी अफ्रीका में प्रकोपों का सही पूर्वानुमान लगाया, जिससे समय पर वैक्सीनेशन संभव हुआ। FAO का सॉइल-एफईआर (SoilFER) प्लेटफ़ॉर्म मिट्टी और उर्वरक डेटा का मिलान करके टिकाऊ और कुशल खेती को बढ़ावा देता है। फॉल आर्मीवर्म मॉनिटरिंग और अर्ली वार्निंग सिस्टम 60 से अधिक देशों में कीट प्रकोपों को ट्रैक करने में मदद कर रहा है। FAO की फाइनेंसिंग फॉर शॉक-ड्रिवन फ़ूड क्राइसिस फ़ैसिलिटी भी देशों को खाद्य आपात स्थितियों के बढ़ने से पहले प्रतिक्रिया करने में मदद कर रही है।

हालांकि प्रगति तेज है, लेकिन रिपोर्ट चेतावनी देती है कि विश्वभर में अब भी 2.6 अरब लोग ऑफलाइन हैं, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण किसान हैं जो आपदा और जलवायु जोखिमों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं। FAO का कहना है कि डिजिटल परिवर्तन की पूरी क्षमता तभी साकार हो सकती है जब यह मानव-केंद्रित डिजाइन, मजबूत संस्थागत क्षमता, नीतिगत सुधारों और लक्षित निवेशों पर आधारित हो। संगठन ने सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों और निजी क्षेत्र से डिजिटल बुनियादी ढांचे का विस्तार करने, डिजिटल साक्षरता को मजबूत करने और इन तकनीकों को राष्ट्रीय कृषि रणनीतियों में शामिल करने का आह्वान किया। रिपोर्ट इस बात पर भी जोर देती है कि महिलाओं, युवाओं, छोटे किसानों और आदिवासी समुदायों को इन तकनीकों तक समान पहुंच मिलनी चाहिए ताकि वैश्विक कृषि-खाद्य प्रणालियाँ अधिक मजबूत बन सकें।