भारत के गैर-बासमती चावल निर्यात को म्यांमार और पाकिस्तान ने किया मुश्किल
भारत द्वारा 366 डॉलर प्रति टन की कीमत पर गैर-बासमती के सौदे आफर किये जा रहे हैं जबकि म्यांमार 309 डॉलर प्रति टन की कीमत पर गैर-बासमती चावल के निर्यात सौदे कर रहा है। वहीं पाकिस्तान ने कीमत 320 से 325 डॉलर प्रति टन कर दी है। ऐसे में भारतीय निर्यातकों के सामने 366 डॉलर प्रति टन की ऊंची कीमत पर सौदे करना मुश्किल हो गया है।

भारत के 200 लाख टन गैर-बासमती चावल निर्यात की उम्मीदों पर म्यांमार और पाकिस्तान का सस्ता चावल पानी फेरता नजर आ रहा है। फसल वर्ष 2024-25 में गैर-बासमती चावल का निर्यात 150 लाख टन पर अटक सकता है। उद्योग सूत्रों के अनुसार, जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक, गैर-बासमती चावल का निर्यात 135 लाख टन रहा है और यह सितंबर के अंत तक यह 150 लाख टन तक पहुंच सकता है। अक्टूबर से नया विपणन वर्ष शुरू हो गया है।
भारत 366 डॉलर प्रति टन की दर से गैर-बासमती चावल के सौदे ऑफर कर रहा है, जबकि म्यांमार 309 डॉलर प्रति टन और पाकिस्तान 320 से 325 डॉलर प्रति टन की दर से निर्यात सौदे कर रहा है। ऐसे में भारतीय निर्यातकों के लिए 366 डॉलर प्रति टन की ऊंची कीमत पर सौदे करना मुश्किल हो गया है।
बाजार सूत्रों के मुताबिक, वैश्विक बाजार में कीमतों की यह प्रतिस्पर्धा भारत के उस रुख के कारण बनी है, जिसमें 200 लाख टन (20 मिलियन टन) चावल के निर्यात का परोक्ष लक्ष्य तय किया गया था। इसके चलते वैश्विक बाजार में अधिक आपूर्ति की आशंका बनी और कीमतों में गिरावट का दबाव बढ़ गया।
इसके साथ ही सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर गैर-बासमती चावल के निर्यात सौदों का पंजीकरण एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) में अनिवार्य कर दिया है। अब सभी गैर-बासमती चावल निर्यात सौदों का पंजीकरण आवश्यक होगा। अभी तक यह शर्त केवल बासमती चावल के लिए लागू थी, जबकि गैर-बासमती चावल के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं थी। सूत्रों के अनुसार, इस पंजीकरण पर 8 रुपये प्रति टन शुल्क लिया जाएगा।
भारत का अधिकांश गैर-बासमती चावल निर्यात एशियाई और अफ्रीकी देशों को होता है, जबकि उच्च गुणवत्ता वाला बासमती चावल मध्य पूर्व, यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भेजा जाता है। गैर-बासमती चावल की मांग गरीब अफ्रीकी देशों में अधिक रहती है। सूत्रों का कहना है कि इन देशों के लिए कीमत में मामूली अंतर भी बहुत मायने रखता है। ऐसे में म्यांमार के मुकाबले करीब 57 डॉलर और पाकिस्तान के मुकाबले 30–35 डॉलर महंगा भारतीय चावल वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाता और इसका असर निर्यात पर पड़ सकता है।
साथ ही, पाकिस्तान का रुपया और म्यांमार की मुद्रा भारतीय रुपये की तुलना में डॉलर के मुकाबले कमजोर है, जिससे इन देशों के लिए यह सौदा और भी लाभकारी बन गया है।
वर्ष 2024-25 के दौरान देश में चावल का रिकॉर्ड 1490 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है। केंद्रीय पूल में भी स्टॉक रिकॉर्ड स्तर पर है। दूसरी ओर, नए खरीफ विपणन सीजन (2025-26) की धान खरीद शुरू हो चुकी है। अधिक उत्पादन को सरकारी स्टॉक में रखना अब एक चुनौती बनता जा रहा है। ऐसे में बेहतर निर्यात संभावनाएं निजी क्षेत्र को बाजार से धान खरीद के लिए सक्रिय कर सकती हैं, लेकिन यदि वैश्विक बाजार अनुकूल नहीं रहा तो निजी क्षेत्र की सक्रियता प्रभावित होना तय है। आने वाले समय में चावल कारोबार की गतिविधियां सरकार और किसानों दोनों के लिए अहम साबित होने वाली हैं।