सुप्रीम कोर्ट ने तीन कृषि कानूनों पर रोक लगाई, चार सदस्यीय कमेटी गठित की, किसानों ने कहा वह आंदोलन जारी रखेंगे

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक नए तीन कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी है। वहीं अदालत ने इस मसले को सुलझाने के लिए एक कमेटी बनाने का भी निर्णय लिया है। 

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक केंद्न सरकार द्वारा बनाये गये  तीन नये कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इस मसले को सुलझाने के लिए एक कमेटी बनाने का भी निर्णय लिया है। अदालत ने पंजाब के किसान नेता भूपिंदर सिंह मान, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, डॉ प्रमोद कुमार जोशी और महाराष्ट्र के किसान संगठन  शेतकारी संघटना के अनिल धनावत को समिति का सदस्य बनाया है। न्यायालय ने कहा कि जो इस मुद्दे के लिए गंभीर हैं वह इस समिति के सामने आपनी बात रखेंगे। किसानों की आपत्तियों और विशेषज्ञों की राय के आधार पर समिति अपनी रिपोर्ट अदालत को देगी। अदालत द्वारा बनाई गई कमेटी सभी पक्षों से बात करेगी, चाहे कानून समर्थक हो या विरोधी। लेकिन दिल्ली के विभिन्न बार्डरों पर धरना दे रहे आंदोलनरत किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा ने अदालत के आदेश के बाद बयान जारी कर कहा है कि उनका आंदोलन और उसके लिए घोषित कार्यक्रम जारी रहेंगे। संयुक्त मोर्चा ने कहा है कि मोर्चा अदालत के कानूनों पर रोक लगाने के फैसले का स्वागत करता है। लेकिन यह रोक अस्थाई है जिसे कभी भी हटाया जा सकता है। हमारा आंदोलन इन तीन  कानूनों के स्थगन के लिए नहीं कानूनों को रद्द करने के लिए है। इसलिए हम  कानूनों के स्टे के आधार पर आंदोलन के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं कर सकते हैं। जब तक यह कानून रद्द नहीं हो जाते हमारा आंदोलन जारी रहेगा।

सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश अरविंद शरद बोबड़े ने कहा कि हम एक कमेटी बना रहे हैं ताकि हमारे पास एक स्पष्ट तस्वीर हो। हम यह तर्क नहीं सुनना चाहते कि किसान कमेटी में नहीं जाएंगे। जो लोग इमानदारी से इस मुद्दे का हल चाहते हैं वह कमेटी के सामने जाएंगे। अदालत ने दिल्ली पुलिस के आवेदन पर सभी किसान यूनियनों को नोटिस देने का भी फैसला किया है। दिल्ली पुलिस ने 26 जनवरी को किसान संगठनों द्वारा दिल्ली मेंं प्रस्तावित किसान गणतंत्र परेड पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। 

कृषि संगठनों में से एक गुट भारतीय किसान यूनियन (भानु) की ओर से पेश वकील एपी सिंह ने कहा  है कि उनके मुवक्किल इस बात पर सहमत हैं कि कोई भी बुजुर्ग, महिला या बच्चे विरोध प्रदर्शन में भाग नहीं लेंगे। सीजेआई का कहना है कि वह सभी प्रदर्शनकारी यूनियनों के लिए यह आश्वासन रिकॉर्ड पर लेगा।

संयुक्त किसान मोर्चा ने न्यायालय द्वारा गठित चार सदस्यीय समिति के बारे में कहा है कि मोर्चा किसी भी समिति के प्रस्ताव को खारिज कर चुका है। हमाने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं। लेकिन हमने इस मामले में  कोर्ट से मध्यस्थता की प्रार्थना नहीं की। ऐसी किसी कमेटी से हमारा को कोई संबंध नहीं है। कमेटी के सदस्यों पर संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि आज  कोर्ट ने जो चार सदस्यीय कमेटी बनाई है वह सभी सरकार द्वारा बनाये गये कानूनों के पैरोकार हैं और खुलकर इन कानूनों के समर्थन में माहौल बनाने की असफल कोशिश करते रहे हैं। यह अफसोस की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मदद के लिए बनाई इस कमेटी में एक भी निष्पक्ष व्यक्ति को नहीं रखा है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है माननीय सुप्रीमकोर्ट ने किसानों के प्रति जो सकारात्मक रुख दिखाया है। उसके लिये हम माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आभार व्यक्त करते है।किसानों का मांग कानून को रद्द करने व न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानून बनाने की है। जब तक यह मांग पूरी नही होती तब तक आंदोलन जारी रहेगा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का परीक्षण कर कल संयुक्त मोर्चा आगे की रणनीति की घोषणा करेगा।

कौन हैं कमेटी के सदस्य

 . अशोक गुलाटी कृषि अर्थशास्त्री हैं और लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अध्यक्ष रहे हैं। वह इस समय इक्रीअर में इन्फोसिस के चेयर प्रोफेसर हैं। गुलाटी नीति आयोग के तहत प्रधानमंत्री की ओर से बनाई एग्रीकल्चर टास्क फोर्स के मेंबर और कृषि बाजार सुधार पर बने एक्सपर्ट पैनल के अध्यक्ष हैं। इसके अलावा वह इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) के डायरेक्टर रहे हैंं। वह सरकार द्वारा बनाये गये कानूनों का खुले रूप में समर्थन कर चुके हैं। वह इन कानूनों के पक्ष में है और कृषि सुधारों की लगातार वकालत करते रहे हैं। पिछले दिनों वह पंजाब सरकार की एक समिति में बिजली सब्सिडी समाप्त करने की सिफारिश कर चुके हैं। इसके सामने आने पर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंद्र सिंह को सफाई देकर कहना पड़ा था कि सरकार सब्सिडी समाप्त नहीं कर रही है।

.डॉ. प्रमोद जोशी  भी इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर रहे हैं। वे नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च मैनेजमेंट हैदराबाद के भी डायरेक्टर थे। डॉ. जोशी नेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च नई दिल्ली के डायरेक्टर भी रह चुके हैं। वह इन कानूनों के समर्थन में कई लेख लिख चुके हैं और वह कृषि क्षेत्र में सुधारों के पक्ष में है। पंजाब सरकार के लिए एक कमेटी में वह कृषि उत्पादों के विपणन में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने की सिफारिशें कर चुके हैं।

. भूपिंदर सिंह मान , पंबाज में भारतीय किसान यूनियन के एक धड़े के अध्यक्ष हैं। वह इन कानूनो के लिए सरकार को समर्थन दे चुके हैं और इसके लिए कृषि मंत्री से भी मिल कर समर्थन दे चुके हैं। 

. अनिल घनावत महाराष्ट्र में किसानों के एक संगठन शेतकारी संगठन के अध्यक्ष हैं। वह कृषि क्षेत्र में सुधारों के पक्षधर हैं और इन कानूनों के पक्ष में आंदोलन चलाने की बात कर चुके हैं।

कमेटी के नाम आने के बाद से ही उनके रुख को लेकर सोशल मीडिया में चर्चा शुरू हो गई और उनके रुख को लेकर कहा जा रहा है कि समिति के सदस्यों और सरकार की राय एक ही है। इस समिति को दो माह का समय दिया गया है। लेकिन इस समिति को लेकर किसानों के बीच जो राय बन रही है उसको लेकर सवाल उठ रहे हैं कि उससे कोई संतुलित राय बनने की संभावना नहीं बन रही है।

इन स्थितियों को देखते हुए आने वाले दिनों में इस मुद्दे को लेकर विवाद गहराता दिख रहा है। इसके साथ ही सरकार द्वारा 15  जनवरी को किसान संगठनों के साथ जो बैठक रखी गई है उसका भविष्य क्या होगा। सराकार में उच्च पदस्थ सूत्रों ने रुरल वॉयस को बताया कि इसके चलते अभी अनिश्चितता की स्थिति है। इसिलए आने वाले दिनों सरकार का क्या कदम होगा, वह काफी अहम होगा। दूसरी ओर किसान आंदोलन चला रहे संगठनों के प्रतिनिधि इन कानूनों को रद्द करने की अपनी मांग पर अडिग हैं।