जूट पैकेजिंग मानदंडों को सीसीईए की मंजूरी, खाद्यान्न एवं चीनी की पैकेजिंग में अनिवार्य रूप से होता है इस्तेमाल

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने जूट वर्ष 2023-24 (1 जुलाई, 2023 से 30 जून, 2024) के लिए पैकेजिंग में जूट के अनिवार्य उपयोग के लिए आरक्षण मानदंडों को मंजूरी दे दी है। इसके तहत खाद्यान्नों की पैकेजिंग में शत-प्रतिशत और चीनी की पैकेजिंग में अनिवार्य रूप से 20 फीसदी जूट की बोरियों का इस्तेमाल करने का प्रावधान है।

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने जूट वर्ष 2023-24 (1 जुलाई, 2023 से 30 जून, 2024) के लिए पैकेजिंग में जूट के अनिवार्य उपयोग के लिए आरक्षण मानदंडों को मंजूरी दे दी है। इसके तहत खाद्यान्नों की पैकेजिंग में शत-प्रतिशत और चीनी की पैकेजिंग में अनिवार्य रूप से 20 फीसदी जूट की बोरियों का इस्तेमाल करने का प्रावधान है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शुक्रवार को हुई सीसीईए की बैठक में जूट के आरक्षण मानदंडों को मंजूरी दी गई। एक सरकारी बयान में कहा गया है कि जूट पैकेजिंग सामग्री में पैकेजिंग के लिए आरक्षण से देश में उत्पादित कच्चे जूट (2022-23 में) का लगभग 65 फीसदी हिस्सा खपत होता है। जेपीएम अधिनियम, 1987 के तहत आरक्षण संबंधी मानदंड जूट के क्षेत्र में चार लाख श्रमिकों और 40 लाख किसानों को सीधे रोजगार प्रदान करते हैं। यह अधिनियम जूट किसानों, श्रमिकों और जूट के सामान के उत्पादन में लगे लोगों के हितों की रक्षा करता है। इसके अलावा, यह पर्यावरण की रक्षा में मदद करता है क्योंकि जूट प्राकृतिक, जैविक रूप से अपघटित होने योग्य, नवीकरणीय एवं पुनः उपयोग योग्य रेशा है। इसलिए यह टिकाऊ होने के सभी मानकों को पूरा करता है।

भारत सरकार खाद्यान्नों की पैकिंग के लिए हर साल लगभग 12,000 करोड़ रुपये मूल्य के जूट की बोरियां खरीदती है। यह कदम जूट किसानों एवं श्रमिकों की उपज के लिए गारंटीकृत बाजार सुनिश्चित करता है। जूट की बोरियों का औसत उत्पादन सालाना लगभग 30 लाख गांठ (9 लाख मीट्रिक टन) है। सरकार जूट किसानों, श्रमिकों तथा जूट उद्योग में लगे लोगों के हितों की रक्षा के लिए जूट की बोरियों के उत्पादन का पूरा उठाव सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

जूट उद्योग विशेष तौर पर पूर्वी क्षेत्र यानी पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, त्रिपुरा, मेघालय सहित आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।  पश्चिम बंगाल के प्रमुख उद्योगों में से यह एक है। जूट उद्योग के कुल उत्पादन का 75 फीसदी हिस्सा जूट की बोरियां हैं, जिसमें से 85 फीसदी हिस्से को भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) एवं राज्य की खरीद एजेंसियों (एसपीए) को आपूर्ति की जाती है। शेष को सीधे बेचा जाता है।