धान पर फिजी वायरस का हमला, अब क्या करें किसान? टॉप कृषि वैज्ञानिक ने बताए उपाय

इस साल पंजाब सरकार ने 15 जून से पहले ही धान रोपाई की अनुमति दी थी। धान में लगे रोग को इस फैसले से जोड़कर भी देखा जा रहा है। रोग के प्रभाव और प्रसार का पता लगाने के लिए आईसीएआर ने वैज्ञानिकों की पांच टीमें गठित की हैं।

धान की फसल पर एक वायरस के हमले ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। देश के प्रमुख धान उत्पादक राज्यों पंजाब और हरियाणा के कई जिलों में Southern Rice Blackstreaked Dwarf Virus (SRBSDV) या फिजी वायरस का प्रकोप देखा जा रहा है। यह वायरस सफेद पीठ वाली टिड्डी व्हाइटबैक्ड प्लांटहॉपर (WBPH) के जरिए फैलता है। इसके प्रकोप से पौधों की बढ़त रुक जाती है और ऊंचाई कम रह जाती है। पौधों की पत्तियां गहरी हरी होती हैं लेकिन कल्लों की वृद्धि रुक जाती है। जड़े काली पड़ जाती हैं और आसानी उखड़ जाती हैं। जड़ों से पर्याप्त पोषक पौधे को नहीं मिल पाता है।

धान अनुसंधान केंद्र, कौल (कैथल) को अंबाला, यमुनानगर, करनाल और कैथल जिलों में किसानों द्वारा धान की फसल में पौधों के बौनेपन की सूचना मिली है। जींद जिले के किसान अशोक दनौदा ने रूरल वॉयस को बताया कि धान में बौना रोग के कारण किसानों को खड़े खेत जोतकर दोबारा बुवाई करनी पड़ रही है। इससे किसानों को बहुत नुकसान हो रहा है। वह बताते हैं कि 2022 में भी इस तरह की बीमारी आई थी। इसका पता बुवाई से लगभग एक महीना बाद चलता है जब पौधों की बढ़त रुक जाती है। 

जल्दी बुवाई वाले धान में ज्यादा प्रकोप  

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा), नई दिल्ली के पूर्व निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह ने रूरल वॉयस को बताया कि हरियाणा और पंजाब के कई जिलों में फिजी वायरस के प्रकोप की जानकारी किसानों से मिली है। उन्होंने बताया कि पंजाब के फरीदकोट, पटियाला, मानसा, बरनाला, लुधियाना, रोपड़, मोगा, संगरूर और पठानकोट जिलों में इस बीमारी के प्रकोप की जानकारी मिली है। इसके साथ ही हरियाणा के पेहवा, कुरूक्षेत्र और कुछ अन्य जिलो में इस बीमारी का प्रभाव है। खासतौर पर जहां धान की रोपाई जून के पहले सप्ताह या उससे पहले हुई है, वहां इस रोग का प्रकोप अधिक देखा जा रहा है। 

इस साल पंजाब सरकार ने 15 जून से पहले ही धान रोपाई की अनुमति दी थी। धान में लगे रोग को पंजाब सरकार के इस फैसले से जोड़कर भी देखा जा रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, रोग के प्रभाव और प्रसार का पता लगाने के लिए आईसीएआर ने वैज्ञानिकों की पांच टीमें गठित की हैं जो ग्राउंड पर जाकर स्थिति का पता लगाएंगी।

किन किस्मों में अधिक प्रकोप

डॉ. अशोक कुमार सिंह का कहना है कि फिजी वायरस का प्रकोप मुख्यत: पीआर 131, पीआर 126 और पूसा 44 जैसी गैर-बासमती किस्मों में देखा जा रहा है, लेकिन कुछ जगह जल्द रोपाई वाली बासमती किस्मों में भी यह रोग देखा गया है।

डॉ. सिंह ने बताया कि अगर खेत में केवल 5 फीसदी पौधों में वायरस का प्रकोप है तो बहुत अधिक नुकसान की आशंका नहीं है। ऐसे में दोबारा बुवाई करने की जरूरत नहीं है। लेकिन अधिक नुकसान होने पर किसान पूसा बासमती 1847 की गीले खेते में सीधी बुवाई कर सकते हैं। इसका बीज पूसा संस्थान नई दिल्ली में उपलब्ध है।

कैसे करें रोकथाम

डॉ. अशोक कुमार सिंह ने बताया कि किसान धान के खेतों की लगातार निगरानी करें। बौने पौधे, रोगवाहक कीट या रोग के लक्षण दिखाई देने पर कुछ कीटनाशकों के प्रयोग की सलाह दी जाती है।

निम्नलिखित कीटनाशकों का उपयोग करें:

डायनोटीफ्यूरान 20% एस जी (ओशीन या टोकन) 80 ग्राम/एकड़ या पाइमेट्रोजिन 50% डब्लू जी (चैस) 120 ग्राम/एकड़ को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों की जड़ की तरफ छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर पुनः एक या दो बार कीटनाशी का छिड़काव करें, विशेषकर यदि हॉपर्स की संख्या अधिक हो।

इन दवाइयों को 100 लीटर पानी में घोलकर पौधों की जड़ की तरफ फ्लैट-फैन या खोखली शंकु नोजल से छिड़काव करने की सलाह दी गई है।

संक्रमित पौधों को उखाड़कर नष्ट करें:

  • रोगग्रस्त पौधों को पहचान कर तुरंत उखाड़ें, गहरे गड्ढों में दबाएं या जला दें ताकि रोग का प्रसार न हो।
  • नालियों और मेढ़ों की सफाई करें। खरपतवार एवं अनावश्यक पौधों को हटाकर नष्ट करें, क्योंकि यह कीटों के आश्रय बन सकते हैं।
  • खेत में जलभराव न होने दें, उपयुक्त जल निकासी की व्यवस्था करें जिससे पौधे स्वस्थ रहें और वायरस का प्रभाव कम हो।
  • खेतों में सफेद पीठ वाला तेला (हॉपर्स) के नियंत्रण के लिए लाइट ट्रैप का प्रयोग करें जिससे हॉपर प्रकाश की तरफ आकर्षित होकर मर जाते हैं।