महंगाई पर रिजर्व बैंक की राय सरकार से अलग, कहा- इस पर अंतरराष्ट्रीय कारणों का असर कम

अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी के दाम एक फ़ीसदी बढ़ते हैं तो खुदरा महंगाई दर पर उसका असर सिर्फ 0.02 फ़ीसदी होता है। दूसरी तरफ थोक महंगाई अगर एक फ़ीसदी बढ़ती है तो खुदरा महंगाई पर उसका असर 0.26 फ़ीसदी पड़ता है

केंद्र सरकार भले ही आसमान छूती महंगाई के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध, कच्चा तेल और कमोडिटी के दाम में वृद्धि तथा सप्लाई चेन की बाधाओं जैसे अंतरराष्ट्रीय कारकों को जिम्मेदार बता रही हो, भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार महंगाई में अंतर्राष्ट्रीय कारकों का योगदान बहुत कम है। शुक्रवार को रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट जारी की। इसमें महंगाई का सेंसटिविटी एनालिसिस यानी संवेदनशीलता विश्लेषण किया गया है। इस विश्लेषण के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी की कीमतों के बढ़ने का खुदरा महंगाई पर मामूली असर होता है, खुदरा महंगाई पर थोक महंगाई का असर ज्यादा है।

सेंसटिविटी एनालिसिस के मुताबिक अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी के दाम एक फ़ीसदी बढ़ते हैं तो खुदरा महंगाई दर पर उसका असर सिर्फ 0.02 फ़ीसदी होता है। दूसरी तरफ थोक महंगाई अगर एक फ़ीसदी बढ़ती है तो खुदरा महंगाई पर उसका असर 0.26 फ़ीसदी पड़ता है। इसी तरह ग्लोबल कमोडिटी एक फ़ीसदी महंगी होने पर थोक महंगाई पर उसका असर 0.11 फ़ीसदी होता है। यह विश्लेषण बताता है कि खुदरा महंगाई पर अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में थोक महंगाई का असर अधिक होता है। यानी सप्लाई की दिक्कतें, टैक्स तथा अन्य स्थानीय कारण खुदरा बाजार में दाम बढ़ाने में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

अप्रैल में खुदरा महंगाई दर 7.79 फ़ीसदी दर्ज हुई जो मोदी सरकार के कार्यकाल में सबसे अधिक है। रिजर्व बैंक को खुदरा महंगाई 2 फ़ीसदी से 6 फ़ीसदी के बीच रखनी है लेकिन बीते चार महीने से यह लगातार 6 फ़ीसदी से ऊपर बनी हुई है। थोक महंगाई भी फल सब्जियों और कमोडिटी के दाम बढ़ने के कारण अप्रैल में रिकॉर्ड 15.08 प्रतिशत पर पहुंच गई। रिजर्व बैंक का विश्लेषण बताता है कि सरकार सप्लाई की दिक्कतें दूर करने में नाकाम रही जिससे खुदरा महंगाई लगातार बढ़ रही है। खुदरा महंगाई सूचकांक में खाने पीने की चीजों का वेटेज सबसे ज्यादा 45.86 फ़ीसदी है जबकि थोक महंगाई में खाद्य पदार्थों का वेटेज सिर्फ 24.4 फ़ीसदी है। इसमें मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट का वेटेज सबसे अधिक 64.2 फ़ीसदी है।

गौरतलब है कि सरकार महंगाई को नियंत्रित करने में अपनी भूमिका को कमतर और अंतरराष्ट्रीय कारणों को अधिक जिम्मेदार बताती रही है। दो हफ्ते पहले सरकार ने गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। आईएमएफ ने जब सरकार से प्रतिबंध हटाने का आग्रह किया तो वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि जब तक संकट खत्म नहीं हो जाता तब तक प्रतिबंध जारी रहेगा। रोचक बात यह है कि सरकार ने खुद अभी तक यह स्वीकार नहीं किया है कि गेहूं को लेकर संकट है। शुक्रवार को भी कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि देश में पर्याप्त मात्रा में गेहूं उपलब्ध है।