कितनी कारगर है केन - बेतवा लिंक परियोजना

अगर हम आज की तारीख में केन बेतवा लिंक परियोजना की आधी कीमत यानी 22 हजार करोड़ रुपये से तालाबों का निर्माण कराते है तो दो लाख रुपये की औसत लागत से 1200 क्यूबिक मीटर क्षमता वाले करीब 14 लाख तालाब बन जाएंगे |

मध्य प्रदेश में बेतवा नदी की फाइल फोटो

पिछले दिनों विश्व जल दिवस पर माननीय प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच केन बेतवा लिंक प्रोजेक्ट को लेकर समझौता हुआ।  केन बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के तहत केन नदी पर पन्ना नेशनल टाइगर पार्क के बीच 73.4 मीटर ऊँचा और 1468 मीटर लम्बा बांध बनाकर और उससे 231.45  किलोमीटर लम्बी नहर निकालकर 1020 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बेतवा नदी में ट्रांसफर किया जाएगा। जिसकी परियोजना लागत 2004 में 1188.75 करोड़ रुपये थी, जो अब बढ़कर लगभग 45 हजार  करोड़ रुपये हो गयी है। इतना पैसा खर्च करने पर भी अगर 10 गाँवो के स्थानीय लोगो को विस्थापित करने और  कृषि भूमि का अधिग्रहण करने के पश्चात भी स्थायी रोज़गार न मिल सके तब इतना पैसा विकास के नाम पर खर्च करने का  कोई महत्व नहीं रह जाता है। नहर के रास्ते में कई राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग, रेलवे लाइन, पुल, घाटिया, पड़ेगे। उसके लिए हो सकता है कि केन के जल को बेतवा तक ले जाने के लिए पंप भी करना पड़ सकता है। ऐसे में जितनी बिजली ( 72 मेगावाट)  केन बेतवा लिंक परियोजना में बनेगी उससे कही ज्यादा पानी को पंप करने में खर्च हो जायेगी।

केन नदी में इतना पानी उपलब्ध ही नहीं है जितना कि बेतवा नदी में ट्रांसफर किया जाना है | रेत और पत्थर  खनन व जलवायु  परिवर्तन के कारण नदिया सूख रही है और भूमिगत जल का स्तर नीचे जा रहा है | यही कारण है कि गर्मियों में केन नदी बाँदा जिले में सूख जाती है। बुंदेलखंड में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण पहले लगभग 52 दिन बारिश होती थी, लेकिन अब बारिश की अवधि घटकर मात्र 25 दिन रह गयी है। इस परियोजना पर जो अध्धयन राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी द्वारा किया गया अगर उसको भी ध्यान से देखा जाय तो स्पष्ट है कि केन में बेतवा नदी से कम पानी है | यानी इस परियोजना में छोटी नदी का पानी बड़ी नदी में  ट्रांसफर किया जाना है। जो की नदी लिंक परियोजना के सिद्धांत के विरूद्ध है |

पन्ना नेशनल टाइगर पार्क की लगभग 50 वर्ग किलोमीटर जमीन डूब क्षेत्र में आएगी जिससे पार्क में जंगली जानवरो की 10 ऐसी प्रजातियां है जो वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची एक के अंतर्गत आती है। 23 प्रकार की मछलिया, 153 प्रजाति के पंछी, 229 प्रजाति के पेड़ पौधे आदि  डूब क्षेत्र में आकर नष्ट हो जायेगे। इसके अलावा सरकार की तरफ से इस प्रोजेक्ट में किसानो की आमदनी बढ़ाने के लिए संपर्क नहर के किनारे नकदी फसलों को भी बढ़ावा दिया जाएगा जिनमे सिंचाई की आवश्यकता ज्यादा होती है | कुल मिलाकर किसानो को जितना फायदा होगा उसका बड़ा हिस्सा रासायनिक खाद, कीटनाशकों और सिंचाई पर किसान को खर्च करना पड़ेगा | कोदो, कुटकी, जौ, बाजरा, इत्यादि की बात करे, ये वह अनाज है, जो पिछले सैकड़ों साल से बुंदेलखंड के लोगो की जरूरतों को पूरा कर रहे है|  ये अनाज स्वास्थ की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, क्योकि इन अनाजों में सबसे पहला गुण यह है कि ये क्षारीय होते है| यह बात वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है की क्षारीय वातावरण में कोई भी बीमारी पैदा नहीं हो सकती । दूसरा, वैज्ञानिकों द्वारा की गयी रिसर्च से ये साबित हो चुका है कि इनअनाजों में हृदय से सम्बंधित बीमारियां को रोकने की क्षमता होती है और यह  एंटीऑक्सीडेंट की तरह कार्य करते है । महिलाओं के लिए स्वास्थ की दृष्टि से ये छोटे अनाज तो एक तरह से वरदान होते है| आने वाले समय में बुंदेलखंड के किसानों का खेत उनको व्यापार करने का  व पैसा कमाने का मौका दे सकता है सिर्फ जरुरत है अपने पारम्परिक खेती के ज्ञान व तरीको को समृद्ध करने की ।

केन नदी पर पन्ना नेशनल टाइगर पार्क के बीच जो दौधन बांध बनाया जाएगा उसकी डिज़ाइन में अवसादन दर 357 क्यूबिक मीटर प्रति वर्ग किलोमीटर प्रति वर्ष मानी गयी है लेकिन जंगल की कटाई होने के कारण अवसादन दर स्वभाभिक है ज्यादा होगी। राष्ट्रीय केंद्र मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग योजना के अनुसार मिटटी की अपरदित दर माध्यम से लेकर अपने उच्चतम दर पर आंकी गयी है। जिससे बांध की उपयोगिता 100 वर्ष जो अनुमानित है, वह नहीं होगी। दो पहाड़ियों के बीच बनाने वाले बांध में अवसादन दर बहुत ज्यादा होगी।

बुंदेलखंड में केन बेतवा लिंक प्रोजेक्ट का विकल्प तालाब हैं। इसका उत्तर तो चंदेल और बुंदेली राजाओं ने आज से 500 साल पहले बुंदेलखंड में तालाब बनवाकर दिया था| उनके बनवाये तालाब आज भी बुंदेलखंड के हर जिले में उपयोगी है | इसके अलावा बुंदेलखंड की कृषि भूमि में कार्बनिक मैटीरियल की मात्रा कम होने के कारण कृषि भूमि की नमी बनाये रखने के लिए तालाब का किसान के पास होना बहुत जरुरी है। अगर बांधों के माध्यम से बुंदेलखंड की प्यास पूरी होती या बुझती तो ललितपुर में एशिया में सबसे ज्यादा बांध है इसके बाबजूद वहां की 30 से 40 फीसदी  कृषि भूमि असिंचित है | अगर बांध और तालाब की तुलना की जाय तो बांध से विस्थापन होता है, जंगल नष्ट होते है, किसान को सिंचाई के लिए कभी भी समय से पानी नहीं मिलता, बांध के सिर्फ 30 से 40 फीसदी जल का उपयोग हो पाता है। बांध से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है, लेकिन तालाब से ऐसा कुछ नुकसान नहीं होता है |

महात्मा गाँधी, विनोबा, नाना जी देशमुख और तालाबों के जानकार अनुपम मिश्रा जैसे लोगो के विचार अगली पीढ़ी में स्थान्तरित करके उनको सच्ची श्रद्धांजलि दे पाते है। अगर हम आज की तारीख में केन बेतवा लिंक परियोजना की आधी कीमत यानी 22 हजार करोड़ रुपये से तालाबों का निर्माण कराते है तो दो लाख रुपये की औसत लागत से 1200 क्यूबिक मीटर क्षमता वाले करीब 14 लाख तालाब बन जाएंगे |

अगर वैश्विक स्तर देखा जाय तो भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के द्वारा जो कम कार्बन जीवन शैली के दिशा निर्देशों व आकड़ों के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन की बोरवेल कारक के हिसाब से गणना की जाय तो पूरे बुंदेलखंड में तालाबों के माध्यम से लगभग 51 लाख टन कार्बन डाई ऑक्साइड का ह्रास प्रतिबर्ष तालाबों के माध्यम से होता है जो की एक बहुत बड़ी मात्रा है | अतः यह कहा जा सकता है कि बुंदेलखंड की कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की समस्या तालाबों के माध्यम से हल हो जायेगी और बुंदेलखंड वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन में पेरिस समझौता में अपना सहयोग भी देता है या बड़े पैमाने पर दे सकता है |

यही वजह थी, कि तालाबों के उपरोक्त लाभ के कारण चित्रकूट से लौटकर 30 मार्च 2003 को नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक रैली में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था कि " नानाजी से सीखें, कैसे बदला जा सकता है देश "। चित्रकूट के उस इलाके में जहा डाकुओ का बड़ा जोर था, आतंक था, लोगो का जीना मुहाल था।  लेकिन जब बारिश का पानी तालाबों के माध्यम से रोका गया तो खेतो में गेहूं की हरी हरी बालिया खड़ी हो गई और जिंदगी का रूप बदलने लगा। नानाजी ने भी एक बूढ़े किसान से सीख लेकर जल संरक्षण पर कार्य शुरू किया था और जल प्रबंधन योजनाओ के सुखद परिणाम को देखकर यही कहा था, कि पता नहीं क्यों राजनेता और नौकर शाह इसे सफल बनाने में रूचि नहीं रखते है। इसलिए बुंदेलखंड में केन बेतवा लिंक प्रोजेक्ट की नहीं बल्कि किसान को ऐसी कृषि से जोड़ने की जरूरत है जिसमें स्थानीय और वैश्विक पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान हो।

( गुंजन मिश्रा, पर्यावरणविद हैं और बुंदेलखंड उनका कार्यक्षेत्र है। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)