बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारतीय कृषि क्षेत्र का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक

भारत को विकसित भारत@2047 लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए कृषि क्षेत्र का पुनर्मूल्यांकन अनिवार्य है। बदलते वैश्विक परिदृश्य, जलवायु चुनौतियों और बाजार प्रतिस्पर्धा को देखते हुए विज्ञान, नवाचार, तकनीक आधारित शिक्षा, अनुसंधान और नीतिगत सुधार आवश्यक हैं। छोटे किसानों के सशक्तीकरण, गुणवत्ता मानव संसाधन, उद्यमिता और आधुनिक कृषि प्रणालियों से ही कृषि आर्थिक परिवर्तन का इंजन बन सकती है।

प्रतिकात्मक फोटो

भारत सरकार द्वारा "विकसित भारत@2047" का लक्ष्य निर्धारण करना एक साहसिक व प्रेरणादायक   कदम है। वर्तमान की आकर्षक व प्रभावी विकास दर (6.8%) के दृष्टिगत विशेषज्ञों का ऐसा अनुमान है कि भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था (पांच ट्रिलियन यूएस डॉलर)  बन जाएगा। प्रतिष्ठित वित्तीय सेवा कम्पनी मोर्गन स्टेनले (Morgan Stanley) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत 2028 तक जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (4.7 ट्रिलियन यूएस डॉलर) हो जाएगा। 

लेकिन इस आर्थिक प्रगति को तभी टिकाऊ बनाए रखा जा सकता है जब कृषि व उससे संबद्ध क्षेत्रों सहित हमारी अर्थव्यवस्था के सभी स्तम्भ आर्थिक प्रगति की निरंतरता बनाए रखने में बढ़-चढ़ कर  योगदान करें। इसीलिए कृषि के सशक्तीकरण के लिए इस क्षेत्र का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्णय कोई विकल्प के रूप में नहीं बल्कि अनिवार्यता के रूप में होना चाहिए।

पुनर्मूल्यांकन क्यों आवश्यक है? 
इतिहास गवाह है कि कृषि प्रणाली को समयानुकूल तकनीकों व नीतियों से अगर पोषित न किया जाए तो इसके परिणाम बहुत ही गंभीर,  निराशाजनक व भयावह होते हैं। इस संबंध में हमारे पास बहुचर्चित "रायल कमीशन रिपोर्ट 1928" एक प्रमाण के रूप में है जिसमें कहा गया है, "भारतीय किसान कर्ज में पैदा होता है, कर्ज में ही जीवन जीता है और कर्ज को ही अपनी संतान को उपहार में देकर जाता है।" 

यदि परिस्थितियों का गहनता से अध्ययन करें तो पता चलता है कि 18वीं सदी में अप्रत्यक्ष रूप से ईस्ट इंडिया कम्पनी के माध्यम से और फिर 1858 से1947 तक प्रत्यक्ष रूप में चले ब्रिटिश शासनकाल में भारतीय कृषि क्षेत्र के विकास के प्रति तत्कालीन शासकों की अत्यधिक उदासीनता रही। इसके कारण किसानों व कृषि से जुड़े हितधारकोंं की आर्थिक बदहाली हुई। 

इसी रिपोर्ट की अनुशंसा के आधार पर 1929 में इम्पीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च की स्थापना की गई। स्वतंत्रता के बाद उसका नाम बदल कर इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) कर दिया गया। इसी परिषद के कुशल नेतृत्व में देश में हरित क्रांति/ कृषि क्रांति व खाद्य सुरक्षा का आगाज हुआ।

वर्तमान समय में कृषि क्षेत्र के लिए पर्यावरण परिवर्तन की समस्या, विश्व बाजार की स्पर्धा तथा प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा जैसी बड़ी चुनौतियां उभर रही हैं उनके दृष्टिगत हमें पुनः इस क्षेत्र के सशक्तीकरण के लिए अब कदम उठाना आवश्यक हो गया है।

कृषि क्षेत्र- विकसित भारत का इंजन
यह क्षेत्र देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 16-18% तक का योगदान देता है और देश के लगभग 45% कार्यबल को रोजगार देने में सक्षम है। सन् 2023-24 में लगभग 52 अरब डॉलर का कृषि निर्यात किया गया और 2035 तक निर्यात लक्ष्य 100 अरब डॉलर निर्धारित किया गया है। भारत का पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था 2030 तक बन जाना अनुमानित है जिसमें कृषि क्षेत्र द्वारा एक ट्रिलियन डॉलर का योगदान देने की संभावना को साकार करना है। 

इसके लिए कृषि क्षेत्र से संबंधित नीतियों में ऐसे बदलाव हों जिसके केन्द्र में किसान, विशेषकर छोटे व मझोले किसान हों, जिनकी संख्या कुल किसानों की 86% है। प्रौद्योगिकी संचालित खेती करने के लिए इन किसानों की तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाना तथा उनको बाजारोन्मुखी व उद्यमशील बनने के लिए प्रेरित करना अत्यंत आवश्यक है। 

विज्ञान, नवाचार व नीति- बदलाव के तीन स्तंभ
उभरती चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए विशेष नीतिगत बदलाव लाकर खेती को विज्ञान व नवाचार आधारित बनाने के लिए निर्णायक कदम उठाने होंगे। इसी के दृष्टिगत कृषि में सुधार लाने के लिए कई राष्ट्रीय समितियों, जिनमें डॉ. आरए माशेलकर कमेटी 2005, डॉ. एमएस स्वमीनाथन कमेटी 2006 तथा डॉ आरएस परोदा कमेटी 2019 शामिल हैं, ने अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। इन कमेटियों के सुझाव से यह इंगित होता है कि कृषि क्षेत्र में परिवर्तनकारी सुधारों को गति देने के लिए कृषि शिक्षा पाठ्यक्रम में बदलाव, अनुसंधान को नई दिशा देने,  किसानों व हितधारकों की क्षमता (capacity building) बढ़ाने ,  सामूहिक बुद्धिमत्ता (Collective Intelligence) के उपयोग का वातावरण तैयार करने तथा कृषि विज्ञान की उपलब्धियों व नवाचारों को प्रयोगशालाओं से किसानों, उद्यमियों व अन्य हितधारकों तक ले जाने पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। 

कृषि अनुसंधान प्रणाली के पुनर्मूल्यांकन के लिए सरकार व संस्थानों के बीच जो महत्वपूर्ण विमर्श हो रहा है वह एक दूरदर्शी व समयानुकूल कदम है। यह कृषि शिक्षा, अनुसंधान व विकास को पुनर्व्यवस्थित करके वर्तमान चुनौतियों से निपटने में मददगार होगा, तथा भविष्य के लिए एक टिकाऊ और कृषि क्षेत्र में सकारात्मक आर्थिक बदलाव लाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।

कृषि शिक्षा का आधुनिकीकरण
ऐसा प्रत्यक्ष प्रतीत हो रहा है कि 21वीं सदी में कृषि क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक बढ़ेगी। इस स्पर्धा का सामना करने के लिए वैज्ञानिक ज्ञान से संपन्न व तकनीकी कौशल से युक्त मानव संसाधन का कृषि क्षेत्र में होना आवश्यक होगा। अतः परंपरागत  प्रणाली से हट कर अब कृषि शिक्षा प्रणाली को पूर्णरूप से विज्ञान व तकनीक आधारित बनाए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए कृषि विश्वविद्यालयों व संस्थानों का ऐसा एकीकृत पाठ्यक्रम होना चाहिए जो वर्तमान व भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निम्नलिखित क्षेत्रों में मानव संसाधन विकसित कर सके:
-आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, मशीन लर्निंग, व रोबोटिक्स
-ब्लॉकचेन एवं मार्केट इंटेलिजेंस
-सतत एवं जलवायु प्रतिरोधी कृषि प्रणाली 
-उद्यमिता विकास, कृषि व्यवसाय प्रबंधन, स्टार्टअप विकास
-गुणवत्ता व सेनीटरी-फाइटोसेनीटरी के वैश्विक मानकों की जानकारी

शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ डिग्री देने तक सीमित न हो बल्कि ऐसे स्नातक बनें जो उद्यमशील हों तथा जिनमें नवाचार करने की प्रवृत्ति हो। अर्थात हमारे स्नातक नौकरी खोजी होने के बजाय नौकरी देने वाले परिवर्तनकारी बनें।

कृषि विज्ञान केन्द्र ज्ञान-नवाचार केन्द्र बनें 
‘डॉ. आरएस परोदा कमेटी रिपोर्ट 2019’ में  किसानों व कृषि से जुड़े हितधारकों को साक्षर बनाने के महत्व  को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। देश के सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों (731) व कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन केन्द्रों (691) को "ज्ञान-कौशल-नवाचार केन्द्रों" के रूप में परिवर्तित करने की अनुशंसा की गई है ताकि ये केन्द्र ऐसा मानव संसाधन पैदा कर सकें जो ज्ञान अद्यतन हो, सतत क्षमता निर्माण में सहायक हों और  भारतीय कृषि क्षेत्र को आवश्यक तकनीकी हस्तांतरण द्वारा अधिक प्रगतिशील, समृद्ध व विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में बड़ी भूमिका निभाए।

सोच वैश्विक हो लेकिन कार्यान्वयन स्थानीय हो 
हमारे अनुसंधान की प्राथमिकताओं में नवाचार को प्रमुखता दी जानी चाहिए। इसी दृष्टिकोण से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 2006 में बौद्धिक संपदा प्रबंधन व व्यवसायीकरण के लिए नीति लागू की लेकिन इस दिशा में बहुत धीमी प्रगति हुई है। इसके लिए आवश्यक है कि-
-अनुसंधान व विकास के सशक्तीकरण के लिए सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों में भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाए।
-नवाचार आधारित उद्यमिता को बढ़ावा मिले
-अनुसंधान के केन्द्र में किसान की आवश्यकताएं भी हों
-भारतीय कृषि की कुल कारक उत्पादकता 

इनपुट के लिहाज से देखें तो उत्पादकता कम है। पानी उपयोग की दक्षता सिर्फ 36-40% है, जबकि मृदा की उर्वरा-शक्ति व कार्बन स्तर कम होता जा रहा है। स्थिर व लचीली खेती के लिए जीनोमिक्स, जीन एडीटिंग तथा टिकाऊ खेती जैसी तकनीकों का प्रयोग आवश्यक हो गया है।

कृषि सशक्तीकरण के लिए नीतिगत बदलाव हों
स्वतंत्रता के बाद कृषि क्षेत्र के सशक्तीकरण के लिए भूमि प्रबंधन व सिंचाई सुविधाओं में सुधार से लेकर कृषि उत्पादन विपणन कमेटी अधिनियम (APMC Act) व अनुबंधित खेती करने सहित अनेक नीतिगत बदलाव किए गए, लेकिन विभिन्न कारणों से अनेक क्षेत्रों में आशातीत प्रगति नहीं हो पाई। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सबल बनाने के लिए ऐसे साहसिक नीतिगत बदलाव की आवश्यकता है जो यह सुनिश्चित करे कि-
-निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी लाभदायक है
-अनुसंधान, विकास व नवाचार के लिए अधिक निवेश किया जा सके
-सब्सिडी देने की रूपरेखा ऐसी हो जिससे छोटे व मझोले किसानों को सीधा लाभ मिले
-ज्ञान व कौशल विकास के लिए जमीनी स्तर पर समग्र एवं सतत प्रयास हों
-किसान आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बन सकें

उपसंहार
भारतीय कृषि को भविष्य की आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तन लाने के लिए ऐसा एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा जिसमें सभी किसानों व हितधारकों के सशक्तीकरण के लिए नीतिगत बदलाव, तकनीकी उन्नयन, नवाचार और सतत विकास योजनाओं के कार्यान्वयन पर विशेष ध्यान दिया जाए। जब हमारी कृषि विज्ञान व प्रौद्योगिकी आधारित होगी तो वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सक्षम होगी और खाद्य व पोषण सुरक्षा देने के साथ-साथ विकसित भारत@2047 मिशन में महत्वपूर्ण योगदान दे सकेगी।

कृषि को मात्र एक जीविका का साधन न समझा जाए बल्कि इसे आर्थिक परिवर्तन लाने के इंजन के रूप में पहचाना जाना चाहिए।

(डॉ. आर. एस. परोदा ,पूर्व महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूर्व सेक्रेटरी, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग भारत सरकार एवं चेयरमैन, ट्रस्ट फार एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल सांइसेज हैं)