भारत-अमेरिका व्यापार समझौते का भविष्य अनिश्चितता की ओर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा 6 अगस्त को भारतीय उत्पादों के आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त सीमा शुल्क (टैरिफ) लगाने का आदेश जारी करने के अगले दिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि भारत अपने किसानों के हितों की कीमत पर कोई समझौता नहीं करेगा।

भारत-अमेरिका व्यापार समझौते का भविष्य अनिश्चितता की ओर

भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते का भविष्य अब अनिश्चितता की ओर बढ़ता दिख रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा 6 अगस्त को भारतीय उत्पादों के आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त सीमा शुल्क (टैरिफ) लगाने का आदेश जारी करने के अगले दिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि भारत अपने किसानों के हितों की कीमत पर कोई समझौता नहीं करेगा। पीएम मोदी के इस बयान के बाद दोनों देशों के बीच व्यापारिक मोर्चे पर स्थिति और अधिक जटिल हो गई है।

हालांकि ट्रम्प का यह आदेश 21 दिन बाद, यानी 27 अगस्त से लागू होगा, लेकिन इससे पहले लगाए गए 25 प्रतिशत टैरिफ के साथ मिलाकर कुल टैरिफ दर 50 प्रतिशत हो जाएगी। यह टैरिफ रूस से कच्चे तेल के आयात के खिलाफ एक तरह की 'पेनल्टी' के रूप में लगाया गया है।

ट्रम्प के इस कदम का असर भारतीय उत्पादों के निर्यात पर दिखना शुरू हो गया है, जिससे निर्यातकों के सामने अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो गई है। मौजूदा हालात में अमेरिका को होने वाले भारत के लगभग 7 अरब डॉलर के कृषि निर्यात में गिरावट तय मानी जा रही है। इसमें सबसे अधिक प्रभावित होने वाला उत्पाद श्रिम्प (झींगा) है, जो अमेरिका को भारत के कृषि और उससे संबंधित उत्पादों में सबसे बड़ा निर्यात है। इसके अलावा, बासमती चावल, ऑयल एसेंस, मसाले और फल-सब्जियों का निर्यात भी प्रभावित होगा।

अमेरिका भारत में अपने कृषि उत्पादों के लिए बाजार चाहता है, लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह डेयरी क्षेत्र और जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम)  सोयाबीन और मक्का के लिए अपना बाजार नहीं खोलेगा। फिलहाल अमेरिका से भारत को बड़े पैमाने पर ट्री नट्स (सूखे मेवे जिनमें बादाम, पिस्ता और अखरोट शामिल हैं)  का निर्यात होता है, जिसकी वार्षिक कीमत 1 अरब डॉलर से अधिक है। भारत अमेरिका से एथेनॉल का भी आयात करता है, लेकिन यह केमिकल और फार्मा उद्योग के लिए होता है। अमेरिका चाहता है कि भारत पेट्रोल में एथेनॉल ब्लेंडिंग के लिए भी इसका उपयोग करे, जिसका भारतीय उद्योग द्वारा कड़ा विरोध किया गया है।

गौरतलब है कि करीब दो माह पहले नीति आयोग द्वारा भारत-अमेरिका व्यापार पर जारी एक पेपर में कुछ अमेरिकी उत्पादों के लिए भारतीय बाजार खोलने के सुझाव दिए गए थे, लेकिन भारी विरोध के चलते उस पेपर को वापस ले लिया गया था।

दिलचस्प यह है कि चालू कैलेंडर वर्ष में भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार में तेज़ी देखी गई है। जनवरी से जून 2025 के बीच भारत में अमेरिकी कृषि उत्पादों का आयात 49.1 प्रतिशत बढ़कर 1.69 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 1.13 अरब डॉलर था। वहीं, इसी अवधि में भारत से अमेरिका को कृषि निर्यात 24.1 प्रतिशत बढ़कर 3.47 अरब डॉलर हो गया, जो पहले 2.79 अरब डॉलर था।

ऐसे में, अगर भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर 50 प्रतिशत शुल्क लागू होता है, तो कृषि निर्यात का प्रभावित होना लगभग तय है। हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि भारत अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए ही कोई निर्णय लेगा। अब देखना यह है कि क्या भारत अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी शुल्क (रिटेलियेटरी टैरिफ) लगाएगा या नहीं।

भारत अमेरिका से खाद्य तेलों के रूप में सोयाबीन तेल और कपास का भी आयात करता है। हाल ही में सरकार ने क्रूड सोयाबीन ऑयल पर सीमा शुल्क में कटौती की थी, जबकि टेक्सटाइल उद्योग कपास पर भी शुल्क समाप्त करने की मांग कर रहा है। ये दोनों ऐसे उत्पाद हैं जो अमेरिकी हितों को प्रभावित कर सकते हैं। इसी तरह सूखे मेवे और वाशिंगटन एप्पल पर भारत सरकार का कदम आने वाले रुख को स्पष्ट करेगा।

अब 27 अगस्त तक यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार नीति किस दिशा में जाती है। हालांकि सरकार ने दोहराया है कि किसानों के हित उसके लिए सर्वोपरि हैं और उनके साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जाएगा। वहीं, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने अमेरिकी टैरिफ में बढ़ोतरी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले संभावित असर का आकलन करना शुरू कर दिया है।

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