राजस्थान में एथेनॉल फैक्ट्री विरोध की जड़ें पंजाब से जुड़ीं, जल संकट और प्रदूषण बना मुद्दा
राजस्थान के हनुमानगढ़ की टिब्बी तहसील में 10 दिसंबर को आंदोलन के हिंसक रूप लेने के बाद एथेनॉल फैक्ट्री निर्माण पर अस्थायी रोक लगा दी गई है। जबकि आंदोलनकारी किसान फैक्ट्री को पूरी तरह हटाने की मांग पर अडिग हैं।
केंद्र की मोदी सरकार एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम को बड़ी उपलब्धि और किसान हितैषी कदम के तौर पर पेश करती रही है। लेकिन राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की टिब्बी तहसील के राठीखेड़ा गांव में प्रस्तावित एथेनॉल फैक्ट्री के खिलाफ किसानों के आंदोलन ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। गत 10 दिसंबर को आंदोलन के हिंसक रूप लेने के बाद फैक्ट्री निर्माण पर अस्थायी रोक लगा दी गई है। जबकि आंदोलनकारी किसान फैक्ट्री को पूरी तरह हटाने की मांग पर अडिग हैं।
शुक्रवार को प्रशासन की मध्यस्थता में हुए समझौते के बाद बवाल थमता दिख रहा है, लेकिन इस मुद्दे पर सियासत अभी भी गरमाई हुई है। टिब्बी के किसानों के समर्थन में किसान संगठनों ने 17 दिसंबर को हनुमानगढ़ में महापंचायत बुलाई है जिसमें राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी और जोगिंदर सिंह उग्राहां सहित कई बड़े किसान नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है।
श्रीगंगानगर के सांसद कुलदीप इंदौरा और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल इस मुद्दे को लोकसभा में उठा चुके। कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हैं। कांग्रेस जहां किसानों पर लाठीचार्ज को लेकर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही है, वहीं भाजपा सरकार के मंत्री कांग्रेस नेताओं पर आंदोलन को भड़काने के आरोप लगा रहे हैं। इन राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों के बीच एक सच्चाई ऐसी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। टिब्बी का यह आंदोलन अचानक पैदा नहीं हुआ, बल्कि इसकी जड़ें पंजाब के जीरा आंदोलन से जुड़ी हैं।

टिब्बी में शनिवार को धरने पर बैठे किसान | फोटो: अमरपाल सिंह वर्मा
जीरा का आंदोलन बना नजीर
राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला पंजाब और हरियाणा के नजदीक होने के कारण सीमावर्ती जिलों में किसान संगठनों के बीच काफी संपर्क रहता है। पंजाब के फिरोजपुर जिले की जीरा तहसील के गांव मंसूरवाल में स्थित मालब्रोस इंटरनेशनल इथेनॉल डिस्टिलरी को बंद कराने के लिए वहां के किसानों ने जो लंबा आंदोलन चलाया, उसी ने टिब्बी के किसानों को संघर्ष का रास्ता दिखाया। जीरा की तर्ज पर टिब्बी में भी पिछले करीब सोलह महीनों से आंदोलन चल रहा है।
पंजाब के जीरा में 44 गांवों के किसानों ने 24 जुलाई 2022 को आंदोलन शुरू किया था। यह आंदोलन 177 दिन तक लगातार चला। आखिरकार, जनदबाव और पर्यावरणीय चिंताओं को देखते हुए पंजाब सरकार ने जनवरी 2023 में उस एथेनॉल फैक्ट्री को बंद कराने का आदेश दिया। इसके बाद तो पंजाब सरकार ने गत 2 नवम्बर 2025 को पहली बार नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष औपचारिक रूप से स्वीकार किया है कि जीरा में मालब्रोस इंटरनेशनल डिस्टिलरी ने गंभीर पर्यावरणीय नुकसान पहुंचाया और इसे स्थायी रूप से बंद किया जाना चाहिए।
यह फैसला हनुमानगढ़ के किसानों के लिए एक बड़ा उदाहरण बना। टिब्बी में फैक्ट्री हटाओ क्षेत्र बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य मदन दुर्गेसर, महंगा सिंह सिद्धू, जगजीत सिंह जग्गी सहित कई किसान जीरा गए और वहां के आंदोलनकारी किसानों से बातचीत की। मदन दुर्गेसर बताते हैं, “जीरा के किसानों ने जो हालात बताए, उन्हें सुनकर हमारे पैरों तले से जमीन खिसक गई। हमें समझ आ गया कि अगर समय रहते नहीं रोका गया तो टिब्बी का हश्र भी वही होगा।”
जल संकट और प्रदूषण की चिंता
मदन दुर्गेसर बताते हैं कि जीरा क्षेत्र में वर्ष 2006 में स्थापित एथेनॉल फैक्ट्री से निकलने वाले औद्योगिक कचरे और दुर्गंध ने कृषि भूमि, भूजल और पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित किया। प्रदूषित पानी खेतों में जाने से मिट्टी की उर्वरता घट गई, फसलें प्रभावित हुईं और पीने के पानी की गुणवत्ता बिगड़ गई। लोगों में स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ने की बातें भी सामने आईं।
जीरा में छह महीने तक चले आंदोलन के बाद फैक्ट्री बंद होना टिब्बी के किसानों के लिए एक चेतावनी भी था और एक मॉडल भी। दोनों आंदोलनों में कई समानताएं दिखती हैं जैसे लंबा धरना, गांव-गांव सभाएं, सोशल मीडिया के जरिए जनसमर्थन और पर्यावरणीय नुकसान को केंद्र में रखना।
डेढ़ साल से जारी था विरोध-प्रदर्शन
दो साल पहले जब टिब्बी क्षेत्र के किसानों को पता चला कि चंडीगढ़ की ड्यून एथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड राठीखेड़ा गांव में करीब 45 एकड़ जमीन पर 450 करोड़ रुपये की लागत से 1320 केएलपीडी क्षमता का अनाज आधारित इथेनॉल प्लांट और 24.5 मेगावाट का पावर प्लांट लगाने जा रही है, तभी से क्षेत्र में बेचैनी शुरू हो गई थी। किसानों ने जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर इसका विरोध दर्ज कराया।
हनुमानगढ़ का टिब्बी क्षेत्र सिंचाई के लिए ट्यूबवेल पर निर्भर है। एथेनॉल फैक्ट्री के निर्माण से अत्यधिक भूजल दोहन और प्रदूषण फैलने की चिंताओं ने किसान आंदोलन को जन्म दिया। जुलाई 2024 में जैसे ही कंपनी ने प्रस्तावित भूमि पर चारदीवारी का निर्माण शुरू किया, आंदोलन खुलकर सामने आ गया। 12 अगस्त 2024 को बड़ी संख्या में किसान फैक्ट्री स्थल पर धरने पर बैठ गए और वहीं पड़ाव डाल दिया। यह धरना लगातार चलता रहा। 19 नवंबर 2025 को प्रशासन ने पुलिस बल की मदद से किसानों को वहां से हटवाकर चारदीवारी का काम फिर शुरू करवाया।
10 दिसंबर को क्या हुआ
गत 10 दिसम्बर को दर्जनों गांवों के किसान टिब्बी में एसडीएम कार्यालय के बाहर महा पंचायत में जुटे। महापंचायत के बाद हजारों आक्रोशित किसान ट्रैक्टरों के काफिले के साथ फैक्ट्री स्थल की ओर बढ़े। किसानों ने जैसे ही चारदीवारी को धक्का देना शुरू किया तो हालात बिगड़ गए। आगजनी और तोड़फोड़ के बाद पुलिस ने आंसू गैस, लाठीचार्ज और प्लास्टिक की गोलियों का इस्तेमाल किया। दोनों पक्षों से दर्जनों लोग घायल हुए।

फैक्ट्री स्थल पर आगजनी के हवाले किए गये वाहन | फोटो: अमरपाल सिंह वर्मा
स्थिति को काबू में करने के लिए इंटरनेट बंद किया गया और पूरे इलाके में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया। पुलिस के लाठीचार्ज और आंसू गैस से कार्रवाई में कांग्रेस विधायक अभिमन्यु पूनिया सहित दर्जनों लोग घायल हो गए। हिंसा में 16 से अधिक वाहन जलाए गए और कई क्षतिग्रस्त हुए। 10 दिसंबर की हिंसा के बाद 107 लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई और कई गिरफ्तारियां हुईं।
तीन दिन तक चले तनाव के बाद प्रशासन और पुलिस अधिकारियों की बैठक में फैक्ट्री निर्माण पर रोक लगाने पर सहमति बनी। हालांकि, किसान अभी भी धरने पर बैठे हैं। संघर्ष समिति के सदस्य जगजीत सिंह जग्गी साफ कहते हैं कि जब तक फैक्ट्री लगाने का फैसला पूरी तरह निरस्त नहीं किया जाता, आंदोलन जारी रहेगा।

हनुमानगढ़ में शुक्रवार रात को प्रशासन और किसानों के बीच बैठक | फोटो: अमरपाल सिंह वर्मा
कंपनी के दावों पर भरोसा नहीं
हालांकि, ड्यून एथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड के अधिकारी लगातार यह दावा करते रहे हैं कि प्लांट में आधुनिक तकनीक, प्रदूषण नियंत्रण उपकरण और जीरो लिक्विड डिस्चार्ज प्रणाली लागू होगी। कंपनी का कहना है कि इससे किसानों को फसलों और पराली का बेहतर दाम मिलेगा। बड़ी संख्या में लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। लेकिन किसान इन दावों से संतुष्ट नहीं हैं।
टिब्बी की निवासी और पूर्व जिला प्रमुख शबनम गोदारा कहती हैं, “यह भरोसे का नहीं, भविष्य का सवाल है। हम विकास के नाम पर ऐसा कुछ नहीं होने देंगे, जो हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरा बने।” किसान विनोद नेहरा का कहना है कि जहां-जहां एथेनॉल प्रोजेक्ट लगे हैं, वहां जल, जमीन और हवा को नुकसान पहुंचा है। टिब्बी इससे अलग कैसे रहेगा?
फिलहाल, किसानों के विरोध के बाद फैक्ट्री निर्माण पर रोक है। प्रशासन ने किसानों के साथ बैठक कर उनकी आशंकाओं की जांच के बाद आगे की कार्रवाई तय करने की बात कही है। लेकिन किसान अपनी मांग पर अडिग हैं कि फैक्ट्री की मंजूरी पूरी तरह निरस्त की जाए। इसी मांग को लेकर टिब्बी में धरना जारी है। संघर्ष समिति के सदस्य मदन दुर्गेसर कहते हैं, “जब तक फैसला वापस नहीं होता, तब तक आंदोलन ही रास्ता है।”

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