सरकार का विकेंद्रीकरणः केरलीयम 2023 में कहां है स्थानीय शासन

इसमें कोई संदेह नहीं है कि विकेंद्रीकरण में केरल देश का नेतृत्व करता है। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि पंचायतों को सत्ता और अधिकार हस्तांतरित करने में राज्यों के हस्तांतरण सूचकांक में यह शीर्ष (77%) पर है। केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय के लिए मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज द्वारा 2015 में किए गए स्वतंत्र मूल्यांकन में यह बात सामने आई है।

सेमिनार को संबोधित करते केरल के स्थानीय स्वशासन और उत्पाद शुल्क मंत्री एमबी राजेश।

केरल के तिरुवनंतपुरम में आयोजित केरलीयम 2023 में 'केरल में स्थानीय सरकारें' विषय पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए पूर्व केंद्रीय पंचायती राज मंत्री मणि शंकर अय्यर ने कहा, "निस्संदेह केरल पंचायती राज में देश का नेतृत्व करता है।" 1-7 नवंबर तक आयोजित इस कार्यक्रम में राज्य के विकास और उपलब्धियों के साथ-साथ लोकतांत्रिक मूल्यों, सतत विकास, कल्याण और वैज्ञानिक स्वभाव पर आधारित आधुनिक अर्थव्यवस्था बनने की इसकी यात्रा को प्रदर्शित किया गया। इस चर्चा में जमीनी स्तर के नेताओं, शिक्षाविदों, नौकरशाहों और राजनेताओं से लेकर कई लोगों ने हिस्सा लिया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि विकेंद्रीकरण में केरल देश का नेतृत्व करता है। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि पंचायतों को सत्ता और अधिकार हस्तांतरित करने में राज्यों के हस्तांतरण सूचकांक में यह शीर्ष (77%) पर है। केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय के लिए मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज द्वारा 2015 में किए गए स्वतंत्र मूल्यांकन में यह बात सामने आई है।

राज्यों के बीच शीर्ष स्थान हासिल करना एक या दो दिन में नहीं हुआ है। इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है जिसमें सार्वजनिक कार्रवाई और लोगों को उनके विकास के लिए संगठित करना शामिल है। हालांकि आजादी के समय समाज को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों पर विरोध और आंदोलन के मामले में कुछ असमानता थी, लेकिन बेहतर शासन के लिए राजनीतिक लामबंदी जारी रही। केरल इस तरह लामबंदी की प्रतिक्रियाओं के लिए काफी अनुकूल था। अमर्त्य सेन ने केरल की विकास उपलब्धियों में इसे सार्वजनिक कार्रवाई के महत्वपूर्ण घटक के रूप में नामित किया है, जिसे अक्सर 'मॉडल' के रूप में माना जाता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो केरल मॉडल बेहतर शासन के लिए सार्वजनिक कार्रवाई का मॉडल है।

लगभग तीन दशक पहले ग्रामीण क्षेत्रों के लिए हुए 73वें संविधान संशोधन और शहरी क्षेत्रों के लिए 74वें संविधान संशोधन ने लोगों को भागीदारीपूर्ण तरीके, योजना और विकास के बेहतर परिणामों के लिए खुद को संगठित करने का एक नया अवसर दिया।

इसके लिए जुलाई 1996 से शुरू हुई नौवीं पंचवर्षीय योजना में जन योजना अभियान इस उद्देश्य से शुरू किया गया था कि पंचायती राज/नगर निकाय वैज्ञानिक तरीके से एकीकृत योजनाओं की एक शेल्फ तैयार करें और उसे प्राथमिकता दें ताकि नौवीं योजना के कार्यक्रम प्राथमिकता के आधार पर उनमें से चुने जा सकें और कार्यात्मक रूप से प्रासंगिक और उद्देश्यपूर्ण लोगों की भागीदारी विकसित की जा सके। इसमें यह भी प्रस्तावित किया गया था कि योजना का कम से कम 35-40 फीसदी हिस्सा स्थानीय निकायों द्वारा उनसे संबंधित जिम्मेदारी वाले क्षेत्रों के लिए तैयार और कार्यान्वित की जाने वाली योजनाओं से युक्त होनी चाहिए।

इस अभियान का उद्देश्य पंचायतों को स्वशासित संस्था के रूप में मजबूत करने में कार्यात्मक, प्रशासनिक और वित्तीय बाधाओं को दूर करना है। 73वें संविधान संशोधन के अनुच्छेद 243 जी में इसकी परिकल्पना की गई है। यह जन योजना अभियान के दृष्टिकोण और कार्यप्रणाली की मान्यता है जिसे 2018 में देश भर के सभी पंचायतों के लिए अपनाया गया था। गरीबी पर नीति आयोग के 2021 के अध्ययन से पता चलता है कि भारत में बहुआयामी गरीबी के नवीनतम आंकड़े के आधार पर केरल की केवल 0.7 फीसदी आबादी गरीब है, जबकि गरीबी का राष्ट्रीय आंकड़ा 25.1 फीसदी है। गरीबी उन्मूलन, आजीविका सुरक्षा और आय आधारित रोजगार पर ध्यान केंद्रित करने वाले सामुदायिक संगठन के रूप में 1998 में शुरू हुए कुदुम्बश्री मिशन ने भी केरल के विकास  में योगदान दिया। 2019-20 में कुदुम्बश्री समूहों के तीन लाख से अधिक समूहों में 45 लाख महिलाओं की समग्र भागीदारी थी।

राज्य की विकास शासन प्रणाली को मौलिक रूप से पुनर्गठित करने वाले इन महत्वपूर्ण निर्णयों को शुरू हुए 25 साल से अधिक का समय बीत चुका है। इसे देखते हुए केरल सरकार ने विकेंद्रीकरण की अनूठी विशेषताओं को प्रतिबिंबित करने और आगे बढ़ने के लिए केरलीयम 2023 के एक भाग के रूप में चर्चा का आयोजन किया।

इस सेमिनार में केरल के स्थानीय स्वशासन और उत्पाद शुल्क मंत्री एमबी राजेश ने विकेंद्रीकरण, खासकर पीपीसी हस्तांतरण कार्यों, फाइनेंस और स्थानीय सरकारों के पदाधिकारियों के जरिये राज्य के लोगों को हुए लाभ गिनाते हुए प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि विकेंद्रीकृत सरकारी प्रणाली की क्षमता को 2018 के बाढ़ और कोविड महामारी के दौरान व्यावहारिक अभिव्यक्ति मिली।

कुदुम्बश्री आंदोलन के साथ विकेंद्रीकरण से न केवल लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार आया, बल्कि आर्थिक और सामाजिक विकास की संभावनाओं का भी विस्तार हुआ। नवा केरलम की कल्पना करते हुए उन्होंने विश्वास जताया कि स्थानीय सरकारें विकसित देशों की तरह विकास और रोजगार को बढ़ावा देकर आर्थिक विकास की अग्रणी बनेंगी, जैसा कि मानव विकास के मामले में हुआ है। स्थानीय स्वशासन विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव सारदा मुरलीधरन ने कहा कि पिछले 25 साल नवाचार और प्रयोग के समय रहे हैं जिसमें नियमों के ढांचे को संस्थागत रूप दिया गया है। स्थानीय सरकार के भविष्य की तलाश में उन्होंने स्थानीय स्तर पर अधिक संसाधन पैदा करने, डिजाइन और सिस्टम को प्रशासन में शामिल करने, डिजिटल शासन को मजबूत बनाने,  शहरीकरण की गतिशीलता को समझने, प्रवासी लोगों को समायोजित करने और टिकाऊ व लचीली विकास की आवश्यकता को बनाए रखा। उपरोक्त जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने स्थानीय लोकतंत्रों में स्वायत्तता के सुधार पर जोर दिया ताकि वे जनता के प्रति उत्तरदायी शासन और समावेशी कल्याण प्रदान करने में सक्षम हो सकें।

केरल के पूर्व वित्त मंत्री टीएम थॉमस इसाक ने कहा कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की वजह से पीपीसी और योजना कार्यान्वित हो सकी जिसे एक तकनीकी अभ्यास माना जाता है। यह सामाजिक गतिशीलता और सशक्तिकरण की प्रक्रिया के रूप में उभरी है। विकेंद्रीकरण के दूसरे संस्करण के रूप में उन्होंने प्रतिनिधि लोकतंत्र से आगे जाने की आवश्यकता पर जोर दिया। केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय के पूर्व सचिव एसएम विजयानंद ने वास्तविक स्थानीय सरकार के उद्भव के माध्यम से मौजूदा दृष्टिकोण को कल्याणकारी राज्य से दयालु राज्य में स्थानांतरित करने का आह्वान किया। राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान के पूर्व महानिदेशक डब्ल्यूआर रेड्डी ने शासन और बुनियादी ढांचे के विकास में प्रौद्योगिकी पर जोर दिया।

केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय के पूर्व सचिव सुनील कुमार ने प्रतिभागियों का ध्यान याचिका निकायों की बजाय स्थानीय सरकारी समाधान निकाय बनाने की ओर आकर्षित किया। चर्चा में सेवानिवृत्त आईएएस मीनाक्षीसुंदरम ने नीति निर्माण में पंचायती राज संस्थाओं को शामिल करने का सुझाव दिया। इस चर्चा में मैं भी भागीदार था। मैंने जिला योजना समिति को और आगे ले जाकर जिला स्तर पर जिला सरकार की स्थापना करने और कार्य आवंटन के सहायक सिद्धांत को लागू करके उप-जिला स्तर पर शक्तियां और अधिकार सौंपने का सुझाव दिया। केरल इंस्टीट्यूट ऑफ लोकल एडमिनिस्ट्रेशन के महानिदेशक जॉय एलामोन ने पीपीसी में क्षमता निर्माण की भूमिका पर जोर दिया और प्रतिभागियों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि पीपीसी के माध्यम से सामाजिक गतिशीलता से भी लोगों और उनके नेताओं को सहभागी शासन, योजना और विकास  के विभिन्न स्तरों को संभालने के लिए क्षमता निर्माण में लाभ हुआ।

स्थानीय शासन की चुनौतियों का भविष्य में सामना करने के लिए प्रतिभागियों ने स्थानीय सरकार को पेशेवर सहायता देने के तहत स्वैच्छिक तकनीकी फसलों (वीटीसी) के पुनरुद्धार, अधिक स्थानीय संसाधन जुटाने, नए केरल के लिए 2017 में शुरू किए गए पीपीसी के दूसरे चरण को तेज करने, विभिन्न विभागों के बीच समन्वय बढ़ाने का सुझाव दिया। साथ ही कुशल और प्रभावी थोझिल सभा (रोजगार सभाएं) आयोजित करने, एक स्वतंत्र ऑडिट कमीशन की स्थापना करने और स्वायत्त स्थानीय टैक्स निगरानी बोर्ड की स्थापना करने भी सुझाव दिया।

(लेखक भारतीय आर्थिक सेवा के पूर्व अधिकारी और करपा फाउंडेशन, गाजियाबाद के अध्यक्ष हैं।)