कृषि कर्ज माफी पर सियासी दलों का चुनावी दांव कितना कारगर

1990 में सबसे पहले वीपी सिंह की सरकार ने देशभर के किसानों का कर्ज माफ किया था। तब यह राशि 10 हजार करोड़ रुपये थी। इसके बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2008-09 में किसानों का करीब 71 हजार करोड़ रुपये माफ किया था। इस फैसले का लाभ यूपीए को अगले आम चुनाव में मिला और 2009 में यूपीए की केंद्र में वापसी हुई। इसके बाद तो यह राजनितिक दलों के लिए सत्ता हासिल करने का ब्रह्मास्त्र बन गया।

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना सबसे आजमाया हुआ दांव खेलते हुए किसानों की कर्ज माफी का वादा किया है। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अपने घोषणा-पत्र में किसानों का 2 लाख रुपये तक का और तेलंगाना में 1 लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने का वादा किया है। राजस्थान का घोषणा-पत्र अभी जारी नहीं किया गया है लेकिन चुनावी रैलियों में पार्टी नेताओं की ओर से किसानों से यह वादा किया गया है कि प्रदेश में पार्टी सत्ता में लौटी, तो किसानों का कर्ज माफ किया जाएगा।   

2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने किसान कर्ज माफी का वादा किया था, जिसका लाभ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मिला और पार्टी बहुमत से सत्ता में आई। तीनों राज्यों में सरकार बनने के बाद उसने इस वादे को निभाया भी। हालांकि, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार 15 महीने में ही गिर गई, लेकिन उसके बाद बनी भाजपा सरकार ने भी बाद में किसान कर्ज माफी योजना के तहत डिफॉल्टर किसानों का कर्ज माफ किया था।

किसान कर्ज माफी को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। कुछ अर्थशास्त्री और बाजार नीतियों के पक्षधर विशेषज्ञ कहते हैं कि इससे देश और प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ता है और कर्ज की संस्कृति खराब होती है। वहीं, दूसरी ओर किसान संगठनों का कहना है कि जब सरकार कारपोरेट सेक्टर के कर्जों को राइट आफ करती है या रिस्ट्रक्चर करती है तो इस तरह से सवाल नहीं उठते हैं।

सवाल यह भी है कि क्या कर्ज माफी किसानों की समस्या का स्थायी समाधान है और इससे कितने किसानों की हालत में सुधार हुआ है। एसबीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 से जुलाई 2022 तक राज्यों ने किसानों का 2.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया है, जबकि उन पर उस समय तक 16 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज (सभी तरह का) था। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में केंद्र सरकार ने कृषि कर्ज के लक्ष्य को बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपये करने की घोषणा की है।

किसान कर्ज माफी को लेकर नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने रूरल वॉयस के सहयोगी प्रकाशन रूरल वर्ल्ड के ताजा अंक में दिए इंटरव्यू में एक सवाल के जवाब में कहा है “यदि कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा आ जाती है तो उस स्थिति में मैं कहूंगा कि इसे जस्टिफाई किया जा सकता है। अगर उस तरह की कोई बड़ी विकट स्थिति उत्पन्न नहीं होती है, तो कर्ज माफी से इंस्टीट्यूशनल क्रेडिट डिलीवरी सिस्टम को बहुत ज्यादा नुकसान होता है। मेरे खयाल से सामान्य परिस्थितियों में इस तरह की चीजों से बचना चाहिए।

कब हुई थी पहली किसान कर्ज माफी

सबसे पहले वीपी सिंह की सरकार ने 1990 में देशभर के किसानों का कर्ज माफ किया था। उस समय देवीलाल कृषि मंत्री थे और उस कर्ज माफी को लागू कराने में उनकी भूमिका अहम रही थी। तब यह राशि 10 हजार करोड़ रुपये थी। इसके बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2008-09 में किसानों का करीब 71 हजार करोड़ रुपये माफ किया था। इस फैसले का लाभ यूपीए को अगले आम चुनाव में मिला और 2009 में यूपीए की केंद्र में वापसी हुई। इसके बाद तो राजनितिक दलों  ने इस फार्मूले को कई बार अपनाया है।

2014 से करीब दर्जन भर राज्य सरकारें किसानों के कर्ज माफ कर चुकी हैं। कहीं लघु एवं सीमांत किसानों का कर्ज माफ किया गया, तो कहीं सभी किसानों के लिए एक निश्चित राशि तय की गई। 2014 के बाद सबसे पहले आंध्र पदेश ने 24 हजार करोड़ रुपये का, फिर तेलंगाना ने 17 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया। 2016 में तमिलनाडु ने 6,000 करोड़ रुपये, 2017 में महाराष्ट्र ने 34 हजार करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश ने 36,000 हजार करोड़ रुपये और पंजाब ने 1,000 करोड़ रुपये का किसानों का कर्ज माफ किया। 2018 के बाद से मध्य प्रदेश में करीब 40,000 करोड़ रुपये, छत्तीसगढ़ में करीब 9000 करोड़ रुपये और राजस्थान में 18,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के कर्ज माफ किए जा चुके हैं।