खाद्य सुरक्षा और सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में गेहूं की भूमिका अहमः डब्ल्यूपीपीएस

गेहूं को और अधिक आक्रामक रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिए और सभी राज्य प्रायोजित खाद्य कार्यक्रमों में इसका उपयोग किया जाना चाहिए। इन कार्यक्रमों में गेहूं को शामिल करके भारत 2030 तक भुखमरी से पूरी तरह मुक्ति पाने और अपनी आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर सकता है। गेहूं के आटे को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में गेहूं की है महत्वपूर्ण भूमिका।

गेहूं लंबे समय से भारत की खाद्य सुरक्षा का केंद्र रहा है। यह देश की हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और इसने एक मजबूत, टिकाऊ और सुरक्षित खाद्य प्रणाली का निर्माण किया है। द व्हीट प्रोडक्ट्स प्रमोशन सोसाइटी (डब्ल्यूपीपीएस) ने हाल ही में एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया जिसमें वर्ष 2030 तक भुखमरी को खत्म करने के सतत विकास लक्ष्य-2 को पूरा करने में एक प्रमुख खाद्य फसल के रूप में गेहूं की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया।

सेमिनार में गेहूं को बढ़ावा देने और रिफाइंड आटे और ग्लूटेन प्रोटीन के बारे में गलत धारणाओं को दूर करने के महत्व पर जोर दिया गया। इस दौरान वक्ताओं ने वर्ष 2050 और उसके बाद भारत की भविष्य की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गेहूं को प्रमुख खाद्य फसल के रूप में स्थापित करने की जरूरत भी बताई। सतत विकास लक्ष्य-2 को पूरा करने और दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सेमिनार में नीति निर्माताओं, उद्योग हितधारकों और अनुसंधान संस्थानों के लिए महत्वपूर्ण सिफारिशें पेश की गईं।

राज्य प्रायोजित खाद्य कार्यक्रमों में गेहूं का आक्रामक प्रचार

गेहूं को और अधिक आक्रामक रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिए और सभी राज्य प्रायोजित खाद्य कार्यक्रमों में इसका उपयोग किया जाना चाहिए। इन कार्यक्रमों में गेहूं को शामिल करके भारत 2030 तक भुखमरी से पूरी तरह मुक्ति पाने और अपनी आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर सकता है। गेहूं के आटे को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

बायो-फोर्टिफाइड गेहूं की किस्मों का उपयोग

मैक्रो और सूक्ष्म पोषक तत्वों की पर्याप्त आपूर्ति को पूरा करने के लिए बायो-फोर्टिफाइड गेहूं की किस्मों या गेहूं-सोया/गेहूं-दाल मिश्रित आटे का उपयोग किया जाना चाहिए। ये दृष्टिकोण आवश्यक पोषक तत्वों के वितरण और जैव उपलब्धता को बढ़ाने के साथ लक्षित आबादी में पोषण संबंधी कमियों को दूर करते हैं।

विशेष आटे के विनिर्देशों का विकास

सुविधाजनक खाद्य पदार्थों के लिए महत्वपूर्ण उपभोक्ता बाजारों के विकास के साथ विशेष आटे के विनिर्देशों को विकसित करना महत्वपूर्ण है। उपभोक्ता मांगों को पूरा करना और गेहूं उद्योग में नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए।

निरंतर मिल समेकन

मिलिंग उद्योग को दक्षता, गुणवत्ता नियंत्रण और प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार के लिए निरंतर मिल समेकन पर ध्यान देना चाहिए। मिलों को समेकित करके उद्योग उच्च गुणवत्ता वाले गेहूं के आटे का उत्पादन सुनिश्चित कर सकता है जो उद्योग के मानकों और उपभोक्ता अपेक्षाओं को पूरा करता है।

उद्योग और अनुसंधान के बीच सहयोग

गेहूं प्रसंस्करण और पोषण की गुणवत्ता में सुधार के लिए उद्योग और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग विकसित करना महत्वपूर्ण है। ये साझेदारी नवाचार को बढ़ावा देगी, उत्पाद विकास को बढ़ाएगी और उद्योग की निरंतर वृद्धि सुनिश्चित करेगी।

डब्ल्यूपीपीएस के अध्यक्ष अजय गोयल ने सेमिनार के परिणामों और प्रतिभागियों द्वारा की गई सिफारिशों पर उत्साह जताते हुए कहा, "सतत विकास लक्ष्य-2 को पूरा करने और भारत की भविष्य की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गेहूं को बढ़ावा देना और नई रणनीतियों को लागू करना आवश्यक है। गेहूं की नई किस्में विकसित करके, आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों की जैव उपलब्धता में सुधार कर और गेहूं आधारित पूरक खाद्य पदार्थों को बढ़ाकर हम लक्षित लाभार्थियों के स्वास्थ्य और तंदुरूस्ती में सुधार कर सकते हैं।"