भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फल और सब्जी उत्पादक है। यहां बागवानी उत्पादन 2024-25 में रिकॉर्ड 36.77 करोड़ टन तक पहुंच गया। हालांकि फसल तैयार होने के बाद का नुकसान इस रिकॉर्ड को कमतर कर देता है। जिस क्षण किसी फल या सब्जी की कटाई-तुड़ाई होती है, उसी क्षण समय के साथ उसकी दौड़ शुरू हो जाती है। अपर्याप्त भंडारण, परिवहन और रखरखाव के कारण हर फसल का 16 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बाजार पहुंचने से पहले ही नष्ट हो जाता है। नतीजतन किसानों को अक्सर उसे औने-पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। कोल्ड स्टोरेज की कमी का सबसे ज्यादा असर छोटे और सीमांत किसानों पर पड़ता है। भारत के 86 प्रतिशत किसान पहले से ही गरीबी और कर्ज से जूझ रहे हैं।
वर्ष 2020 और 2022 के बीच उचित कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं के अभाव के कारण भारत को हर साल अनुमानित 1.53 लाख करोड़ रुपये (18.5 अरब अमेरिकी डॉलर) का नुकसान हुआ। मौजूदा कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर का 90-95% हिस्सा निजी कंपनियों के स्वामित्व में है, लेकिन ज्यादातर भारतीय किसान इन सुविधाओं का खर्च वहन नहीं कर सकते। विडंबना यह है कि भारत में बड़े कोल्ड चेन की परिचालन लागत लगभग 60 डॉलर प्रति घन मीटर प्रति वर्ष है। यह पश्चिमी देशों की तुलना में लगभग दोगुनी है। सार्वजनिक वित्त पोषित अधिकतर कोल्ड चेन सुविधाएं पुरानी हैं और अपर्याप्त कनेक्टिविटी से जूझ रही हैं। इसलिए उनका पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता है। जब-तब कटने वाली बिजली और बैकअप जनरेटर की आवश्यकता लागत को और बढ़ा देती है।
आर्थिक विकास महानगरीय केंद्रों से जुड़ा है, जहां सेवा क्षेत्र की नौकरियों के साथ श्रम बाजार सघन होते हैं। इनके अलावा छोटे-मझोले शहरों, खेतों और कृषि लॉजिस्टिक्स व प्रसंस्करण केंद्रों का संयोजन भी है। यहां स्थानीय आबादी खेती के साथ मैन्युफैक्चरिंग, व्यापार, परिवहन और लॉजिस्टिक्स गतिविधियों में भी शामिल होती है। महानगरों में खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाएं आम तौर पर बड़ी कंपनियां चला रही हैं। लेकिन जिन जिलों में नई मांग निकल रही है, वहां इस तरह की सेवा का अभाव है।
कोल्ड रूम नेटवर्क में निवेश
एकीकृत क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था का लाभ उठाने के लिए भारत हाइपर-लोकल कोल्ड रूम नेटवर्क में निवेश कर सकता है, जिनका संचालन बिजनेस के रूप में हो। यह मौजूदा नेटवर्क का व्यवस्थित रूप से विस्तार करेगा। उदाहरण के तौर पर ऑपरेशन फ्लड के माध्यम से बना कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर, 1974 से दिल्ली में मदर डेयरी और सफल बूथ और अन्य राज्य-विशिष्ट फ्रेंचाइजी को लिया जा सकता है।
कोल्ड रूम नेटवर्क किसानों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को क्षेत्रीय बाजारों तक पूर्ण और सीधी पहुंच प्रदान करेगा, साथ ही स्थानीय उपभोक्ताओं को ताजा और पौष्टिक भोजन की आपूर्ति करेगा। उचित तापमान बनाए रखने पर कोल्ड रूम फसल के पोषक तत्वों और ताजगी को संरक्षित रखते हैं। यह सुनिश्चित होता है कि उपभोक्ताओं, विशेष रूप से कम आय वाले परिवारों को पौष्टिक उत्पाद मिलें। यह सीधे तौर पर भारत के कुपोषण के साथ-साथ खाद्य अधिशेष के विरोधाभास की समस्या का समाधान करता है (हम ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर 127 में से 105वें स्थान पर हैं)।
सौर ऊर्जा से चलने वाले 5 से 30 मीट्रिक टन क्षमता के कोल्ड रूम, जिन्हें ग्रामीण-शहरी या रूर्बन बुनियादी ढांचा माना जाता है, किसान और विक्रेता को बाजार के जोखिम से बचा सकते हैं। इससे किसान अपनी उपज का सर्वोत्तम मूल्य प्राप्त करने के लिए समय का इंतजार कर सकते हैं, बजाय इसके कि वे फसल कटाई के बाद औने-पौने दाम में अपनी उपज बेच दें। कोल्ड रूम किसानों और एफपीओ के लिए घर-घर आपूर्ति और खाद्य प्रसंस्करण व्यवसायों में विविधता लाने के लिए एक मंच के रूप में काम कर सकते हैं। ये खुदरा मूल्य में उतार-चढ़ाव के प्रभाव और खाद्य महंगाई को कम करके ग्रामीण आय को भी बढ़ावा दे सकते हैं। इसके अतिरिक्त, ये कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाने में मददगार साबित होंगे।
कोल्ड रूम के सफल परीक्षण
भारत के कई राज्यों में कोल्ड रूम का प्रायोगिक परीक्षण किया जा चुका है। वर्ष 2023 में बिहार सरकार को राज्य में 15 सौर ऊर्जा चालित कोल्ड स्टोरेज इकाइयां स्थापित करने के लिए यूएनडीपी और जापान सरकार का सहयोग प्राप्त हुआ था। इन इकाइयों के शुरू होने के बाद से करीब 5,000 महिलाएं इस तरह के समूहों में शामिल हो चुकी हैं। उन्होंने 300 टन उपज का भंडारण किया और लगभग 25,000 डॉलर मूल्य की उपज को खराब होने से बचाया है। मेघालय सरकार ने भी अपने बेसिन मैनेजमेंट और रिन्यूएबल ऊर्जा कार्यक्रमों के तहत कई स्थानों पर सौर ऊर्जा चालित कोल्ड रूम स्थापित किए हैं।
वर्ष 2021-22 में राउरकेला नगर निगम को ब्लूमबर्ग फिलैंथ्रोपीज के ग्लोबल मेयर चैलेंज से स्थानीय महिला विक्रेताओं और स्वयं सहायता समूहों के लिए मदद मिली। यह मदद स्थानीय बाजारों में 5 मीट्रिक टन क्षमता वाला सौर ऊर्जा चालित कोल्ड रूम स्थापित करने के लिए थी, ताकि किसानों की आजीविका में सुधार हो सके। पहले वर्ष खाद्य अपव्यय में 31 प्रतिशत की कमी आई, जबकि भाग लेने वाले किसानों की औसत आय में 26 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। ये कोल्ड रूम 3 रुपये प्रति 15 किलोग्राम के न्यूनतम शुल्क पर संचालित होते हैं। इन्होंने आय के स्रोतों के विविधीकरण के जरिए स्वयं सहायता समूहों का राजस्व 62 प्रतिशत बढ़ाने में मदद की। इनसे विभिन्न संस्थानों और घरों में फलों और सब्जियों की थोक आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकी। इसके परिणामों से उत्साहित होकर शहर में इस तरह के पांच और केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया गया है।
कोल्ड रूम आर्थिक विकास, किसानों की बेहतर आय और लचीली खाद्य प्रणाली जैसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में भारत की खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को नए सिरे से परिभाषित करने का अवसर प्रदान करते हैं। कोल्ड रूम का व्यावहारिक अर्थशास्त्र छोटे और सीमांत किसानों को गुणवत्तापूर्ण छोटे कोल्ड स्टोरेज तक बेहतर पहुंच प्रदान करने के उपयुक्त है। यह उन्हें बाजारों से जोड़ता है। उन्नत एआई-संचालित कृषि-तकनीक और कृषि-वित्त समाधान भारत में व्यापक रूप से प्रचलित हुए हैं, लेकिन लघु-स्तरीय कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर उतना व्यापक नहीं हो पाया है। भारत बड़े पैमाने पर कोल्ड रूम के वित्तपोषण के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड, जलवायु और हरित निधि, इम्पैक्ट बांड, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) और नए खाद्य-प्रसंस्करण उद्यमों जैसे विभिन्न स्रोतों से धन जुटा सकता है।
कोल्ड रूम केवल रेफ्रिजरेटेड बॉक्स नहीं हैं, बल्कि लचीली खाद्य प्रणाली के सूक्ष्म केंद्र कहे जा सकते हैं, जो निरंतर गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति, मूल्य में स्थिरता और स्थानीय व्यापार बढ़ाने में मदद करते हैं। ये सतत ग्रामीण-शहरी विकास के तत्व हैं, जो महिलाओं द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूहों की आय में सुधार ला सकते हैं और कम आय वाले परिवारों को पोषण प्रदान कर सकते हैं। कोल्ड रूम दिखाते हैं कि कैसे छोटा सा बुनियादी ढांचा भारतीय किसानों की किस्मत बदल सकता है।
(दोनों लेखिका इंफ्राविजन फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)