दाल कीमतों पर नियंत्रण के लिए चना स्टॉक और आयात का सहारा

नेफेड द्वारा जारी सूचना के मुताबिक 26 मई तक नेफेड 21.45 लाख टन से ज्यादा चना की खरीद पीएसएस के तहत कर चुकी। पिछले साल 25 लाख टन से ज्यादा चना की सरकारी खरीद की गई थी। इसमें से 14.5 लाख टन का बकाया स्टॉक भी नेफेड के पास मौजूद है। जबकि मसूर की सरकारी खरीद 67 हजार टन से ज्यादा की हो चुकी है। ऐसे में अगर दालों के दाम बढ़ते हैं तो सरकार चना दाल की आपूर्ति बढ़ाकर कीमतों को नियंत्रित करने का कदम उठा सकती है।

दाल कीमतों पर नियंत्रण के लिए चना स्टॉक और आयात का सहारा
चना की सरकारी खरीद 21.45 लाख टन के पार पहुंच गई है।

केंद्र सरकार ने पिछले सप्ताह दालों के रिकॉर्ड उत्पादन के आंकड़े जारी किए हैं। इसके बावजूद अरहर और उड़द दाल की कीमतों में तेजी की आशंका बनी हुई है। यह एक तरह से उत्पादन अनुमानों पर भी सवाल खड़ा करती है। मगर सरकार के लिए राहत की बात यह है कि चालू रबी विपणन सीजन में प्राइस सपोर्ट स्कीम (पीएसएस) के तहत चना की खरीद 21.5 लाख टन के करीब पहुंच गई है। वहीं मसूर के आयात मूल्य घरेलू उत्पादन के लिए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी कम चल रहे हैं। ऐसे में सस्ता आयात और चना की सरकारी स्टॉक में बड़ी उपलब्धता सरकार और उपभोक्ताओं को कुछ राहत दे सकती है।

भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) द्वारा जारी सूचना के मुताबिक 26 मई तक नेफेड 21.45 लाख टन से ज्यादा चना की खरीद पीएसएस के तहत कर चुकी। पिछले साल 25 लाख टन से ज्यादा चना की सरकारी खरीद की गई थी। इसमें से 14.5 लाख टन का बकाया स्टॉक भी नेफेड के पास मौजूद है। जबकि मसूर की सरकारी खरीद 67 हजार टन से ज्यादा की हो चुकी है। ऐसे में अगर दालों के दाम बढ़ते हैं तो सरकार चना दाल की आपूर्ति बढ़ाकर कीमतों को नियंत्रित करने का कदम उठा सकती है।

इस समस ऑस्ट्रेलिया से आयातित मसूर दाल की कीमत 660 से 670 डॉलर प्रति टन के आसपास चल रही है जो भारतीय रुपये में करीब 55 हजार रुपये प्रति टन बैठती है। जबकि इस समय अरहर दाल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 6000 रुपये प्रति क्विंटल है। ऐसे में मसूर दाल का आयात कर दालों की कमी को दूर किया जा सकता है। मगर अरहर और उड़द को लेकर स्थिति बेहतर नहीं है। अरहर और उड़द का उत्पादन इस साल घटा है। इसके साथ ही अरहर दाल के निर्यातक देशों में कारोबारियों के पास स्टॉक है। वह इसके भारत में निर्यात में देरी कर रहे हैं। पहले ही अरहर दाल की वैश्विक कीमतें बढ़ चुकी हैं और दाल निर्यातक इसकी कीमतों में और उछाल की संभावना देख रहे हैं।

दालों की कीमतों पर नियंत्रण के लिए सरकार ने आयातकों को आयात के 30 दिन के भीतर दालों को डिस्पोज करने का निर्देश दे रखा है यानी उन्हें 30 दिन के भीतर आयातित दालों को घरेलू बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध कराना अनिवार्य है। इससे ज्यादा समय तक वे इसे अपने स्टॉक में नहीं रख सकते है। वहीं उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने एक विशेष पोर्टल पर दालों के स्टॉक की जानकारी देना अनिवार्य कर रखा है। पिछले दिनों मंत्रालय के अधिकारियों ने दाल कारोबारियों और दाल मिल मालिकों के संगठनों के साथ बैठकें भी की थी।

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