जीनोम एडिटेड प्लांट्स की रिसर्च के लिए एसओपी अधिसूचित, फसलों की नई किस्में विकसित करने की अवधि घटेगी

कई साल की समीक्षा और बैठकों के दौर के बाद सरकार ने जीनोम एडिटेड टेक्नोलॉजी का उपयोग कर नई फसल प्रजातियां विकसित करने के लिए होने वाले रिसर्च का रास्ता साफ कर दिया है। सरकार ने जीनोम एडिटेड प्लांट्स की एसडीएन-1 और एसडीएन-2 श्रेणियों के नियमन की समीक्षा (रेगुलेटरी रिव्यू) के लिए स्टेंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर्स (एसओपी) को 4 अक्तूबर, 2022 को अधिसूचित कर दिया। इस अधिसूचना के बाद एक ही परिवार के प्लांट की जीनोम एडिटिंग की इस तकनीक से तैयार प्लांट्स के जरिये बेहतर उत्पादकता और जलवायु परिवर्तन व बीमारियों से लड़ने वाली किस्मों को विकसित करने की समयावधि को कम करने वाली इस तकनीक पर अमल शुरू हो सकेगा

जीनोम एडिटेड प्लांट्स की रिसर्च  के लिए एसओपी अधिसूचित, फसलों की नई किस्में विकसित करने  की अवधि घटेगी

कई साल की समीक्षा और बैठकों के दौर के बाद सरकार ने जीनोम एडिटेड टेक्नोलॉजी का उपयोग कर नई फसल प्रजातियां विकसित करने के लिए होने वाले रिसर्च का रास्ता साफ कर दिया है। सरकार ने जीनोम एडिटेड प्लांट्स की एसडीएन-1 और एसडीएन-2 श्रेणियों के नियमन की समीक्षा (रेगुलेटरी रिव्यू) के लिए स्टेंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर्स (एसओपी) को आज यानी 4 अक्तूबर, 2022 को अधिसूचित कर दिया है। इस अधिसूचना के बाद एक ही परिवार के प्लांट की जीनोम एडिटिंग की इस तकनीक से तैयार प्लांट्स के जरिये बेहतर उत्पादकता और जलवायु परिवर्तन व बीमारियों से लड़ने वाली किस्मों को विकसित करने की समयावधि को कम करने वाली इस तकनीक पर अमल शुरू हो सकेगा। एक की प्लांट्स के जीन्स की एडिटिंग की इस स्टेज को एसडीएन-1 और एसडीएन-2 कहा जाता है और इसे जेनेटकली मोडिफाइड (जीएम) किस्म नहीं कहा जाता है क्योंकि इसमें कोई बाहरी जीन नहीं है। सरकार के इस फैसले पर वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके साथ ही देश में फसलों की बेहतर प्रजातियों को विकसित करने का एक नया दौर शुरू हो गया है जो देश और किसानों के लिए बड़े फायदे लेकर आने वाला है।

अधिसूचना में कहा गया है कि सरकार द्वारा गठित एक एक्सपर्ट कमेटी द्वारा लंबे विचार-विमर्श के बाद यह जीनोम एडिटेड प्लांट्स की एसडीएन-1 और एसडीएन-2 श्रेणियों के लिए तैयार एसओपी को रेगुलेटरी कमेटी ऑन  जेनेटिक मैनीपुलेशन (आरसीजीएम) की 7 सितंबर, 2022 को हुई 240वीं बैठक में मंजूरी दी गई और इनको अधिसूचित करने की सिफारिश की गई। जिसके बाद डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी (डीबीटी) द्वारा इनको अधिसूचित किया जा रहा है। वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 30 मार्च, 2022 को जारी अधिसूचना के अनुसार रिसर्च, डेवलपमेंट और थ्रेसहोल्ड छूट के तहत आने वाले एसडीएन-1 और एसडीएन-2 श्रेणियों के जीनोम एडिटेड प्लांट्स के शोध पर काम करने के लिए यह एसओपी एक रेगुलेटरी रोडमैप है।

यह एसओपी जीनोम एडिटेड प्लांट्स पर रिसर्च, डेवलपमेंट या उनकी हैंडलिंग करने वाले सभी संस्थानों पर लागू होंगे। अधिसूचना में जीनोम एडिटेड प्लांट्स की एसडीएन-1 और एसडीएन-2 श्रेणियों की परिभाषा भी दी गई है। इन प्लांट्स के शोध और विकास पर काम करने के लिए आईबीएससी की अनुमति लेनी होगी और आरसीजीएम को सूचित करना होगा। इन रिसर्च और डेवलपमेंट का काम "रेगुलेशन एंड गाइडलाइंस फोर रिकंबीनेंट डीएनए एंड बॉयोकंटेनमेंट, 2017" के तहत कंटेनमेंट के तहत ही हो सकेगा। एसओपी में इस श्रेणी के प्लांट्स के आयात, इस प्रक्रिया के जरिये तैयार होने वाली किस्मों के डाटा, रिसर्च के लिए जरूरी अनुमति प्रक्रिया समेत तमाम नियमों को शामिल किया गया है। 

नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (नास) के सेक्रेटरी आईसीएआर के नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (एनबीपीजीआर) के डायरेक्टर प्रोफेसर के.सी. बंसल ने एसओपी की अधिसूचना के बाद रूरल वॉयस के साथ बातचीत में कहा कि जीनोम एडिटेड प्लांट्स के जरिये फसलों की किस्में विकसित करने के लिए अधिसूचित किये गये एसओपी किसानों के लिए एक बेहतर भविष्य लेकर आने वाले हैं। तकनीक की खाद्य उत्पादन की वृद्धि में अहम भूमिका रही है। सरकार के इस कदम के बाद भारत में कृषि शोध का एक नया चरण शुरू होगा जीनोम एडिटिंग देश की बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन के दौर में खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ी भूमिका निभाने वाली तकनीक साबित होगी। कम होते जल और जमीन जैसे संसाधनों के  दौर में छोटे किसानों तक तकनीक के फायदा पहुंचेगा और उनकी उत्पादन लागत कम होगी। 

एसडीएन1 और एसडीएन2 तकनीक में एक ही पौधे के जीन्स का इस्तेमाल किया जाता है और इसमें कोई बाहरी जीन शामिल नहीं होता है, इसलिए यह जेनेटिकली इंजीनियर्ड या मोडिफाइड (जीएम) तकनीक से अलग है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक ही पौधे के जीन को एडिट कर तैयार किये जाने वाले पौधों (प्लांट्स) की प्रक्रिया एसडीएन1 (साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज) और एसडीएन2 को बॉयोसेफ्टी रूल्स से छूट देने का फैसला लिया था। इस संबंध में 30 मार्च, 2022 को पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय ने अधिसूचना जारी की थी अधिसूचना के मुताबिक जीनोम एडिटेड प्लांट्स को जेनेटिकली इंजीनियर्ड आर्गनिज्म या सेल्स रुल्स, 1989 से छूट देने की सिफारिश उक्त मंत्रालयों और विभागों ने की थी। इसलिए केंद्र सरकार ने एसडीएन1 और एसडीएन2 श्रेणियों के तहत आने वाले प्लांट्स को रूल 7 से 11 तक छूट देने का फैसला लिया है। इन प्लांट्स से तैयार होने वाली किस्मों पर फसलों की नई प्रजातियों के लिए लागू होने वाले नियम-कानून लागू होंगे। कैबिनेट के इस फैसले की अधिसूचना के बाद 17 मई, 2022 को इस संंबंध में गाइडलाइंस जारी की गई हैं। लेकिन इन गाइडलाइंस पर वैज्ञानिकों ने कुछ सवाल खड़े किये थे। ऐसे में एसओपी की अहमियत काफी बढ़ गई थी क्योंकि इसके लिए बनी कमेटी के सदस्यों का कहना था कि एसओपी में इस मसले को हल कर लिया जाएगा।

वहीं साउथ एशिया बॉयोटेक्नोलॉजी सेंटर के फाउंडर-डायरेक्टर भगीरथ चौधरी ने एसओपी की अधिसूचना पर रूरल वॉयस को बताया कि एसओपी में साफ किया गया है कि बॉयोटेक्नोलॉजी को लेकर सरकार ने नियमन की प्रक्रिया को बेहद कारगर रखा है। जो जीनोम एडिटेड प्लांट्स की एसडीएन-1 और एसडीएन-2 श्रेणियों के तहत छूट पाने के बावजूद बॉयोसेफ्टी मानकों और साइंटिफिक स्क्रूटनी के सख्त मानकों का पालन करने की भारत की गंभीरता को दर्शाता है। लगभग एक दशक की प्रक्रिया के बाद मिली इस मंजूरी के बाद हम बीमारियों से सुरक्षित और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से लड़ने में सक्षम बेहतर उत्पादकता वाली फसलों की प्रजातियों का विकास कर सकेंगे।

जीनोम एडिटिंग की इस तकनीक में एक ही प्लांट के परिवार के जींस को एडिट किया जाता है और उसी फैमिली के प्लांट की अधिक उत्पादकता, बीमारी से लड़ने में सक्षम, तापमान में परिवर्तन के बावजूद उत्पादन में सक्षम गुणों वाली नई किस्म तैयार करना संभव है। साथ ही इसके जरिये बेहतर टारगेटेड अप्रोच का फायदा लिया जा सकता है। इस तकनीक का फायदा यह है कि इसके जरिये नई वेरायटी विकसित करने की प्रक्रिया बहुत छोटी हो जाती है जिसे वैज्ञानिक एक्सीलरेट कहते हैं। यानी किसी भी फसल की किस्म को बहुत कम समय में तैयार किया जा सकेगा। जीनोम एडिटेड टेक्नोलॉजी पर अमेरिका और ब्रिटेन में भी बॉयोसेफ्टी रेगुलेशन लागू नहीं हैं।

जीनोम एडिटेड टेक्नोलॉजी को बॉयोसेफ्टी रूल्स से छूट मिलने से अब नई प्रजातियों का विकास तेजी से हो सकेगा। साथ ही इसका फायदा यह है कि देश में मौजूद बॉयो रिसोर्सेज का इस्तेमाल जनहित के लिए किया जा सकेगा। इस तकनीक की खूबसूरती यह है कि बेहतर उत्पादकता के जीन तो पौधे में डाले ही जा सकते हैं, साथ ही यह देश की खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा में भी बड़ी भूमिका निभाने में सक्षम है, क्योंकि इसके जरिये एक ही पौधे की विभिन्न वेरायटी में उपलब्ध पोषक तत्वों को एक साथ लाया जा सकेगा। वहीं इस तकनीक के जरिये पौधों को जलवायु परिवर्तन और तापमान में होने वाले बदलाव से भी लड़ने में सक्षम बनाना संभव है। मोहाली स्थित नेशनल एग्रीकल्चर बॉयोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (नाबी) में केले की एक प्रजाति तैयार की गई है।

इस तकनीक ने नई प्रजातियां विकसित करने की प्रक्रिया को बहुत छोटा कर दिया है। साथ ही यह सटीक परिणाम लाने में सक्षम है। जीन एडिटिंग की इस नई तकनीक को क्रिसपर/कास9 नाम दिया गया है। इसके लिए फ्रांस की वैज्ञानिक डॉ. एमानुअल कारेंपेंटीअर और अमेरिका की वैज्ञानिक डॉ. जेनिफर डुआंडा को 2020 का केमिस्ट्री का नोबल पुरस्कार दिया गया था। इस तकनीक का उपयोग जीन एडिटिंग के जरिये नई प्रजातियां विकसित करने में किया जा रहा है। अमेरिका और जापान में इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर कई वेरायटी रिलीज की जा चुकी हैं।

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