मंडियों में आवक बढ़ी तो औंधे मुंह गिरा आलू, 500 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचा भाव

उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, पंजाब जैसे प्रमुख आलू उत्पादक राज्यों की मंडियों में आवक तेज होने से आलू का भाव 500 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे तक आ गया है। नई फसल की खुदाई शुरू होने के बाद से ही भाव में गिरावट का दौर लगातार जारी है। नई फसल की आवक जब शुरू हुई थी तो मध्यम किस्म के आलू का औसत भाव 1,000-1,200 रुपये प्रति क्विंटल तक था।

मंडियों में आवक बढ़ी तो औंधे मुंह गिरा आलू, 500 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचा भाव

उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, पंजाब जैसे प्रमुख आलू उत्पादक राज्यों की मंडियों में आवक तेज होने से आलू के भाव औंधे मुंह गिरे हैं। गिरावट का आलम यह है कि भाव 500 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे तक आ गया है। आलू की नई फसल की खुदाई शुरू होने के बाद से ही भाव में गिरावट का दौर लगातार जारी है। नई फसल की आवक जब शुरू हुई थी तो मध्यम किस्म के आलू का औसत भाव 1,000-1,200 रुपये प्रति क्विंटल तक था। मगर जैसे-जैसे खुदाई बढ़नी शुरू हुई कीमतों में गिरावट आती गई। पिछले एक हफ्ते में गिरावट तेज हुई है।

उत्तर प्रदेश की फर्रुखाबाद मंडी में 8 फरवरी को सामान्य आलू का भाव 450-550 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया। वहीं आगरा मंडी में भाव 600-800 रुपये प्रति क्विंटल तक रहा। आगरा के आलू की गुणवत्ता फर्रुखाबाद की तुलना में अच्छी होती है, इसलिए यहां भाव वहां के मुकाबले ज्यादा रहता है। दिल्ली की आजादपुर मंडी में भाव 500-600 रुपये प्रति क्विंटल तक रहा। आजादपुर मंडी में इन दिनों उत्तर प्रदेश के संभल से ज्यादा आलू आ रहा है। आलू का भाव गिरने से पंजाब, हरियाणा और शाहबाद का आलू आजादपुर नहीं आ रहा है क्योंकि किराया-भाड़ा ज्यादा होने से पंजाब के किसान स्थानीय मंडियों में ही अपनी फसल बेच रहे हैं। बिहार के कोसी और सीमांचल इलाके की सबसे बड़ी मंडी गुलाबबाग (पूर्णिया) मंडी में भी इस दिन भाव 450-600 रुपये के बीच ही घूमता रहा।

अभी जो आलू मंडियों में आ रहा है वह कच्चा आलू है यानी इसका छिलका काफी पतला होता है। पके आलू यानी मोटे छिलके वाले आलू की आवक मार्च में शुरू होगी। भाव नहीं मिलने पर किसान उसे कोल्ड स्टोरेज में रख सकते हैं मगर कच्चे आलू को कोल्ड स्टोरेज में नहीं रखा जा सकता है। इसलिए किसानों को मजबूरन कम कीमत पर भी इसे बेचना ही पड़ता है।

बिहार के पूर्णिया जिले के किसान नवीन कुमार रूरल वॉयस से कहते हैं, “पिछले तीन साल से आलू मुनाफा नहीं दे रहा है। किसी तरह से लागत निकल पा रही है। अगर किसान के मेहनत की लागत को जोड़ दें तो आलू अब घाटे की खेती हो गई है, खासकर कोरोना के बाद से तो स्थिति और बिगड़ी है। कोरोना से पहले तक आलू कुछ न कुछ मुनाफा देकर ही जाता था। अभी जो भाव है यह भाव तो पिछले सात-आठ साल में कभी नहीं रहा।” इसकी वजह पूछने पर वह कहते हैं, “सीमांचल इलाके का ज्यादातर आलू उत्तर-पूर्वी राज्यों को जाता था जहां इसकी खेती बहुत कम होती है। भारत से पाकिस्तान को निर्यात बंद होने की वजह से अब हरियाणा और पंजाब का आलू उन राज्यों में मालगाड़ी से भेजा जाने लगा है। मालगाड़ी से आलू भेजना ट्रक के मुकाबले सस्ता पड़ता है। साथ ही पंजाब का आलू बिहार के आलू से पहले खेतों से निकाला जाने लगता है। मौसम में बदलाव भी एक वजह बन गई है क्योंकि इसकी वजह से पिछले तीन-चार साल से ज्यादातर किसान अगैती आलू की खेती नहीं कर पा रहे हैं। पहले सितंबर के अंतिम हफ्ते और अक्टूबर के पहले हफ्ते में अगैती आलू (60 दिन में निकलने वाला) की बुवाई हो जाती थी। मगर तीन-चार साल से यह देखा जा रहा है कि उस समय बारिश हो जाती है जिसकी वजह से खेत गीला हो जाता है जिसे सूखने में समय लगता है। इस बार तो उस समय इतनी गर्मी थी कि अगैती फसल का आलू खेतों में ही सड़ने लगा।”

आगरा के आलू किसान और आलू व्यापारी डूंगर सिंह खंडोली भी कहते हैं कि यह सही है कि कोरोना के बाद से आलू किसानों को भाव नहीं मिल पा रहा है लेकिन अभी यह कहना पूरी तरह से सही नहीं होगा कि इस साल यही ट्रेंड रहेगा। अभी जो आलू मंडियों में आ रहा है वह कच्चा आलू है, पका आलू मार्च में आएगा जिसका भंडारण किया जा सकता है। भंडारण को देखते हुए ही आलू के भाव की सही स्थिति का पता चल पाएगा। अभी मंडियों में मांग के मुकाबले आवक बढ़ने की वजह से भाव में तेज गिरावट आई है। आवक बढ़ने की वजह पूछने पर डूंगर सिंह कहते हैं, “दरअसल कीमतें घटने से किसानों को लगने लगा है कि आलू तो नुकसान करा ही रहा है, इसे खेतों से निकाल कर दूसरी फसल लगा देंगे तो शायद आलू के घाटे की भरपाई हो जाएगी। खेत खाली करने के लिए भी ज्यादातर किसान कच्ची आलू की खुदाई कर मंडियों में भेज रहे हैं।” उन्होंने बताया कि कोरोना की वजह से 2021 में पैदावार कम हुई थी फिर भी किसानों को आलू का भाव नहीं मिल पाया। जबकि 2022 में पैदावार 5-7 फीसदी ज्यादा रही थी फिर भी 2021 के मुकाबले भाव ज्यादा मिला। इसलिए अभी यह कहना ठीक नहीं होगा कि 2023 में भाव का यही ट्रेंड बनेगा रहेगा जो मौजूदा समय में है।  

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