यूएन ने दिए ग्लोबल मंदी के संकेत, दशकों बाद इस साल सबसे कम रहेगी जीडीपी ग्रोथ, चीन छोड़ सभी बड़ी इकोनॉमी आएगी चपेट में

संयुक्त राष्ट्र विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएं (डब्ल्यूईएसपी) 2023 रिपोर्ट में वर्ल्ड आउटपुट ग्रोथ 2022 के अनुमानित 3 फीसदी के मुकाबले 2023 में सिर्फ 1.9 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। यह हाल के दशकों में सबसे कम ग्रोथ रेट में से एक है। अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन के देशों सहित भारत जैसी बड़ी इकोनॉमी की विकास दर में 2022 के मुकाबले आधे से लेकर तीन फीसदी तक की गिरावट आने का अनुमान यूएन ने लगाया है।

यूएन ने दिए ग्लोबल मंदी के संकेत, दशकों बाद इस साल सबसे कम रहेगी जीडीपी ग्रोथ, चीन छोड़ सभी बड़ी इकोनॉमी आएगी चपेट में

संयुक्त राष्ट्र ने इस साल ग्लोबल सुस्ती छाने का अनुमान जताया है। बुधवार को जारी संयुक्त राष्ट्र विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएं (डब्ल्यूईएसपी) 2023 रिपोर्ट में वर्ल्ड आउटपुट ग्रोथ 2022 के अनुमानित 3 फीसदी के मुकाबले 2023 में सिर्फ 1.9 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। यह हाल के दशकों में सबसे कम ग्रोथ रेट में से एक है। विकसित और विकासशील देशों की इकोनॉमी में सबसे ज्यादा गिरावट आएगी। अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन के देशों सहित भारत जैसी बड़ी इकोनॉमी की विकास दर में 2022 के मुकाबले आधे से लेकर तीन फीसदी तक की गिरावट आने का अनुमान यूएन ने लगाया है। जबकि चीन की इकोनॉमी इस साल रफ्तार पकड़ेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल इकोनॉमी को पुनर्जीवित करने और विकास को बढ़ावा देने के लिए मजबूत वित्तीय उपायों की आवश्यकता है।

 संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट चिंतित करने वाली है क्योंकि कोविड-19 के बाद से ही दुनिया महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी जैसी विकराल समस्या से जूझ रही और अभी तक इससे पूरी तरह उबर नहीं पाई है। रिपोर्ट में भी कहा गया है कि कोविड-19 महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध, खाद्य और ऊर्जा संकट, बढ़ती महंगाई, कर्ज में कमी, जलवायु आपातकाल जैसे एक के बाद एक झटकों ने 2022 में ग्लोबल इकोनॉमी को पस्त कर दिया। इसका असर 2023 में और ज्यादा दिखाई देने का अनुमान संयुक्त राष्ट्र ने जताया है। जबकि 2024 में ग्लोबल ग्रोथ में बढ़ोतरी होने का अनुमान है और इसके 2.7 फीसदी तक पहुंचने की संभावना जताई गई है क्योंकि विपरीत परिस्थितियां कुछ कम होने लगेंगी। हालांकि, यह मौद्रिक नीति में नरमी, यूक्रेन युद्ध के परिणाम और आपूर्ति-श्रृंखला में सुधार की संभावना पर निर्भर है।

 भारत की विकास दर 5.8 फीसदी रहेगी

भारत के बारे में कहा गया है कि ऊंची ब्याज दर और ग्लोबल सुस्ती की वजह से निवेश और निर्यात प्रभावित हुआ है। इसकी वजह से 2022 में अनुमानित 6.4 फीसदी के मुकाबले 2023 में जीडीपी ग्रोथ 5.8 फीसदी रहेगी। जबकि खाद्य और ऊर्जा की ऊंची कीमतों, मौद्रिक सख्ती और राजकोषीय कमजोरी के चलते दक्षिण एशिया की जीडीपी ग्रोथ 5.6 फीसदी की तुलना में 4.8 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। वहीं चीन की विकास दर में इस दौरान बढ़ोतरी का अनुमान जताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन द्वारा जीरी कोविड पॉलिसी को खत्म करने, मौद्रिक और राजकोषीय नीति में नरमी की वजह से जीडीपी ग्रोथ में रिकवरी दर्ज की जा रही है। 2022 के 3 फीसदी के मुकाबले 2023 में चीन की ग्रोथ रेट 4.8 फीसदी रहेगी। वहीं अमेरिका की जीडीपी इस दौरान सिर्फ 0.4 फीसदी की दर से बढ़ेगी जिसकी रफ्तार 2022 में 1.8 फीसदी थी। 2023 में यूरोपीय यूनियन की इकोनॉमी में तेज गिरावट आने का अनुमान जताया गया है। यह 2022 के 3.3 फीसदी के मुकाबले 2023 में सिर्फ 0.2 फीसदी की दर से बढ़ेगी। यूरोपीय यूनियन के कई देशों में आंशिक मंदी छाने का अनुमान संयुक्त राष्ट्र ने जताया है।

 अनिश्चितताओं ने आर्थिक सुधार पर डाला असर

रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादा महंगाई, आक्रामक मौद्रिक सख्ती और बढ़ी हुई अनिश्चितताओं के बीच मौजूदा सुस्ती ने दुनिया भर में आर्थिक सुधार की गति को धीमा कर दिया है। इससे विकसित और विकासशील देशों को खतरा है। 2022 में अमेरिका, यूरोपीय यूनियन एवं अन्य विकसित देशों की ग्रोथ धीमी रही है। जबकि अधिकांश विकासशील देशों में जॉब रिकवरी कम रही है और वहां के लोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक वित्तीय सख्तियों के साथ-साथ डॉलर की मजबूती ने विकासशील देशों की राजकोषीय और कर्ज की स्थिति को कमजोर किया है। महंगाई को कम करने और मंदी से बचने के लिए दुनिया भर के 85 फीसदी से अधिक केंद्रीय बैंकों ने मौद्रिक नीति को 2021 के अंत से सख्त बनाना शुरू कर दिया है। 2022 में वैश्विक मुद्रास्फीति लगभग 9 फीसदी के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी। 2023 में इसके घटकर 6.5 फीसदी रहने का अनुमान है।

 यूएन की रिपोर्ट में दुनिया भर के देशों को सलाह दी गई है कि रोजगार पैदा करने और विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकारों को नीतिगत हस्तक्षेप के माध्यम से सार्वजनिक व्यय के पुनर्आवंटन और पुनर्प्राथमिकता पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मजबूत करने, लक्षित और अस्थायी सब्सिडी, नकद हस्तांतरण और उपयोगिता बिलों पर छूट के माध्यम से निरंतर समर्थन सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी।

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