कॉम्प्लेक्स होती टेक्नोलॉजी के दौर में कृषि शोध में इंटरडिसिप्लिनरी और ग्लोबल अप्रोच की जरूरतः प्रोफेसर रमेश चंद, सदस्य नीति आयोग

नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद का कहना है कि कृषि क्षेत्र में तकनीक जटिल होती जा रही है और इस क्षेत्र में माडर्न साइंस का उपयोग बढ़  रहा है। ऐसे में कृषि क्षेत्र की टेक्नोलॉजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषि शोध संस्थानों को नई टेक्नोलॉजी में काम कर रहे आईआईटी और दूसरे संस्थानों के साथ सहयोग और इंटरडिसिप्लिनरी व ग्लोबल अप्रोच के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है

कॉम्प्लेक्स होती टेक्नोलॉजी के दौर में कृषि शोध में इंटरडिसिप्लिनरी और ग्लोबल अप्रोच की जरूरतः प्रोफेसर रमेश चंद, सदस्य नीति आयोग

नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद का कहना है कि कृषि क्षेत्र में तकनीक जटिल होती जा रही है और इस क्षेत्र में माडर्न साइंस का उपयोग बढ़  रहा है। ऐसे में कृषि क्षेत्र की टेक्नोलॉजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषि शोध संस्थानों को नई टेक्नोलॉजी में काम कर रहे आईआईटी और दूसरे संस्थानों के साथ सहयोग और इंटरडिसिप्लिनरी व ग्लोबल अप्रोच के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है। इसके साथ ही जहां तक संभव हो देश या विदेश में उपलब्ध आधुनिकतम तकनीक का उपयोग क्षेत्र में होना चाहिए। इसके लिए केवल स्वदेशी की धारणा से काम नहीं चलेगा। साथ ही हमारे वैज्ञानिकों और संस्थानों को अपने नतीजे देने के प्रदर्शन में भी सुधार करना होगा। प्रोफेसर रमेश चंद का कहना है कि कृषि शोध में निवेश के कृषि जीडीपी एक दो फीसदी से लक्ष्य के मुकाबले हम अभी आधा फीसदी के करीब ही खर्च कर रहे हैं। लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए कि जो खर्च हो रहा क्या उसके परिणाम बेहतर हैं या नहीं। रूरल वॉयस के एग्रीटेक शो की लांचिंग के लिए दिये अपने वीडियो संदेश में प्रोफेसर रमेश चंद ने यह बातें कहीं।

उन्होंने कृषि में नई तकनीक के इस्तेमाल पर जोर देते हुए कहा कि कृषि में विकास के लिए समय के साथ नई नई तकनीकों इस्तेमाल करना जरूरी है। अगर हम समय के अनुसार नई तकनीक को नहीं अपनाएंगे तो हम पीछे छूट जाएंगे। उन्होंने कहा कि  एक ऐसा समय था छोटी भी तकनीक रेवोलुशन ला देती थी लेकिन आज के समय में हम  साधारण तकनीक के सहारे  कृषि को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं ।

नीति आयोग सदस्य ने कहा कि पहले के युग में संगीत के लिए लोग बांसुरी का इस्तेमाल करने ही से लोग खुश हो जाते थे लेकिन आज के वक्त में लोगों को संगीत के लिए आरकेस्ट्रा चाहिए, जिसमें बहुत से संगीत यंत्रों की जरूरत होती  है । वैसे  कृषि  में भी अब साधारण तकनीक से काम नहीं चलने वाला  है । इसके लिए अब जटिल से जटिल तकनीक का इस्तेमाल करना जरूरी है। अगर आज के समय में सोचे कि कृषि विकास के लिए फसल कोई की नई किस्म का खोज कर दी है उससे कृषि का विकास हो जाएगा यह सोचना बड़ी भूल होगी । आज की जरूरत के हिसाब से तकनीकों की खोज और इस्तेमाल करना होगा उससे ही  कृषि का विकास होगा। अब वक्त बदल गया और कृषि में भी जटिल से जटिल तकनीक आ गई है। जिसमें गहन जानकारी  के साथ यह पूंजी आधारित है। अब दुनिया में तकनीकों के मामले में काफी प्रतिस्पर्धा हो गई है औऱ अपने देश को  टेक्नोलॉजी के मामले मे कम्पटीशन करना होगा जिसके लिए स्टेट आफ द आर्ट तकनीक  और वैज्ञानिकों का नॉलेजेबल होना बेहद जरूरी है।

इस फील्ड दूसरी बड़ी जटिलता है माडर्न मशीनरी, ब़ायोटेक्नोलॉजी की जरूरत है जिसके लिए ज्यादा पैसे की जरूरत है। वहीं  तीसरी जटिलता है इसमें आया बदलाव पहले इसमें कृषि क्षेत्र की ही तकनीक का इस्तेमाल होता था, उससे ही बहुत लाभ मिल जाता था लेकिन अब कृषि में दूसरी साइंस का भी इस्तेमाल हो रहा और उससे काफी फायदा मिला रहा है जैसे डेटा साइंस , नैनो टेक्नॉलोजी , बायोटेक्नॉलोजी  की नई चीजें  जुड़ गई हैं । अगर हम इन  टेक्नॉलोजी की जटिलतओं के स्तर को देखें तो जो भारत की कृषि में तकनीकी विकास हो रहा है और  शोध एवं विकास (आरएंडडी) पर जो खर्च हो रहा है उसके हिसाब से लोगों को फायदा नही मिल पा रहा है। देश में बासमती धान रेवोलुशन , कुछ फलों के विकास और गन्ना में रिकवरी में काम तो हुआ, लेकिन जिस हिसाब पूरी कृषि में तकनीक का अपग्रेडेशन होना चाहिए औऱ कॉस्ट इफेक्टिव होना चाहिए उस हिसाब से नहीं हुआ है । उस पर ध्यान देने की जरूरत है।

प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा कि आज की कृषि के लिए तकनीक के विकास के लिए ज्यादा माडर्न रिसर्च की जरूरत है। जिसके लिए कृषि शोध सस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों के लिए जितने फंड की जरूरत है उसके लिए पर्याप्त बजट नहीं मिल पा रहा है। इसलिए अगर तकनीकों का विकास करना है इसके लिए कृषि के रिसर्च पर बजट बढ़ाना होगा ।

उन्होंने कहा कि काफी लम्बे समय से विचार किया जा रहा है  कि कृषि जीडीपी का दो फीसदी कृषि शोध पर खर्च होना चाहिए ,लेकिन कभी भी यह आधा फीसदी से अधिक नही हो पाया। इसलिए जरूरी है कि कृषि के विकास के लिए प्रॉडक्शन टेक्नोलॉजी, प्रोटेक्शन टेक्नोलॉजी औऱ प्रीजरवेशन टेक्नोलॉजी तीनों पर ध्यान दिया जाय ।

उन्होंने कहा कि हमारे देश में कभी कभी स्वदेशी की बात होने लगती है। स्वदेशी की बात करना अच्छी बात है लेकिन लोगों को यह नही भूलना चाहिए कि भारत में गेहूं में जो रेवोलूशन आया जिससे देश में गेहूं का उत्पादन अधिक होने लगा उसमें सीमीट संस्थान, मैक्सिको का बड़ा योगदान था इसी तरह धान के उत्पादन में जो बढोत्तरी हुई  उसमे अंतरराष्ट्रीय धान शोध संस्थान  (इरी), फिलीपींस का योगदान था  जिसको अपने देश ने हालात के अनुसार हमने अपनाया था ।

अब इसी तरह मक्का में  और कुछ फलों में हो रहा है।  इसलिए अब जरुरत है कि  हम बाहर जितनी अच्छी टेक्नॉलोजी है उसको मंगवाये और अपनाएं जिससे कृषि का विकास होगा। जैसे बाहर से शीतोष्ण फलों के विकास लिए प्लांट मेटेरियल , प्लांट प्रोपेगेशन अच्छे और गुणवत्ता वाले फसलों बीज लाकर अपने देश में मल्टीपलाई करना चाहिए । इसको प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाना चाहिए।

अब कृषि वैज्ञानिकों को इंटरडिसिप्लिनरी रिसर्च पर ध्यान देना चाहिए और टेक्नोलॉजी की क्षमता के विकास में भी उन्नति होनी चाहिए। जैसे कि अगर पौधे को 30 फीसदी पोषक तत्व मिल रहा है तो अब कैसे पौधों को 60 फीसदी पोषक तत्व मिले ? इस  तकनीक पर काम होना चाहिए इन सब पर ध्यान देने की जरूरत है । कृषि रिसर्च के लिए दूसरे साइंस की सहयोग की जरूरत पड़े तो कृषि के विकास लिए सहयोग लेना चाहिए। कृषि रिसर्च संस्थानों को सेंसर बेस टेक्नालॉजी के लिए आईआईटी का सहयोग लेना चाहिए क्योंकि आजकल सेंसर बेस टेक्नोलॉजी का कृषि  में उपयोग हो रहा है औऱ हमारे कृषि शोध  संस्थानों के पास इतनी क्षमता नहीं है वह  आज की जरूरत के हिसाब से सेंसर बना सके । इसलिए इस प्रकार की टेक्नोलॉजी विकसित करने के लिए आईआईटी जैसे संस्थानों से संबंध स्थापित करने पडेंगे। इससे कृषि क्षेत्र को बड़ा लाभ मिलेगा। आज के समय में डेटा सांइस से बहुत कुछ कृषि क्षेत्र में हासिल किया जा सकता है। यह न केवल टेक्नोलॉजी विकसित करने में मदद करेगी बल्कि टेक्नोलॉजी को किसान के पास तक ले जाने में काफी मदद करेगी। हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि ब्राडबैंड टेक्नोलॉजी से की हम कितने किसानों के पास अपनी तकनीक पहुंच पाए हैं। अगर नहीं पहुंची है तो हम इसकी जानकारी डिजीटल टेक्नोलॉजी से दे सकते है । स्पेस टेक्नोलॉजी में जो विकास हो रहा है उसको भी कृषि क्षेत्र में उपयोग करना चाहिए ।

आज के वक्त में टेक्नोलॉजी में  जितनी जटिलता है औऱ जो चुनौती है उसकी गम्भीरता को समझते हुए कृषि क्षेत्र के विकास के लिए अपनी तकनीकी को उच्च स्तर पर ले जाना चाहिए। उसमें सरकारी क्षेत्र के साथ साथ प्राइवेट सेक्टर को भी बढ़ावा देना चाहिए। कृषि शोध संस्थानों को दूसरे क्षेत्र के वैज्ञानिक संस्थानो के साथ संबध स्थापित करना चाहिए। अपने देश के वैज्ञानिकों को अधिक से अधिक जानकारी के लिए दुनिया के दूसरे अच्छे से अच्छे रिसर्च लैब में  भेजकर जानकारी हासिल करना चाहिए। विदेश से अच्छी टेक्नोलॉजी मिलती है तो उसको लाने में हमे संकोच नहीं करना चाहिए।

 

 

 

 

Subscribe here to get interesting stuff and updates!