मौसम की मार से खरबूजे की फसल बर्बाद, किसानों की लागत भी डूबी
इस साल मौसम के लगातार उतार-चढ़ाव के चलते खरबूजे की फसल में कीट और विभिन्न रोग लग गए हैं, जिससे किसानों की मेहनत बर्बाद हो गई।

गर्मी के मौसम में खरबूजा एक लोकप्रिय मौसमी फल है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के उन्नाव, बाराबंकी, फतेहपुर और रायबरेली जैसे कई जिलों के किसान गर्मियों में बड़े पैमाने पर इसकी खेती करते हैं। लेकिन इस साल मौसम के लगातार उतार-चढ़ाव ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। तेज गर्मी, धूप, बेमौसम बारिश और पुरवा हवाओं के चलते खरबूजे की फसल में कीट और विभिन्न रोग लग गए हैं, जिससे किसानों की मेहनत बर्बाद हो गई।
उन्नाव जिले के बिछिया ब्लॉक के नथईखेड़ा गांव के निवासी प्रदीप कुमार (42 वर्ष) ने बटाई पर डेढ़ बीघा खेत में खरबूजे की खेती की थी। प्रदीप अब तक केवल दो हजार रुपये के खरबूजे ही बेच पाए हैं। रूरल वॉयस से बातचीत में उन्होंने बताया कि डेढ़ बीघा खेत में उन्होंने तीन हजार रुपये प्रति किलो की दर से डेढ़ किलो बीज बोया था। जुताई पर एक हजार रुपये का खर्च आया। सिंचाई हर हफ्ते करनी पड़ती है, जिस पर अब तक तीन हजार रुपये खर्च हो चुके हैं।
मौसम की मार से फसल में रोग लग गया है, जिसके चलते उन्हें पांच बार दवा का छिड़काव करना पड़ा, जिस पर करीब ढाई हजार रुपये खर्च हो गए। अब जब फसल तैयार हुई तो अधिकतर फूल सूख गए हैं और फल कम लगे हैं। जो फल लगे हैं, उनमें से करीब 60% सड़ चुके हैं या कीड़ों से ग्रस्त हैं। प्रदीप कहते हैं, "इस बार मौसम में बार-बार बदलाव हो रहा है—कभी गर्मी, कभी बारिश। खरबूजे के लिए लू जरूरी होती है, लेकिन इस साल पुरवा हवा चलने से फसल में कीड़े और रोग लग रहे हैं। लागत लगातार बढ़ रही है और अब तो लगता है कि लगाया गया पैसा भी डूब जाएगा।"
तजबूज से मिठास गायब
सिकंदरपुर कर्ण ब्लॉक के बलऊखेड़ा निवासी रामदास यादव (52 वर्ष) पिछले 20 वर्षों से खरबूजे की खेती कर रहे हैं। इस साल उन्होंने तीन बीघा खेत में खरबूजा लगाया था। रामदास बताते हैं, "करीब 20 हजार रुपये की लागत से फसल तैयार की थी, लेकिन फल सड़ने के कारण अब तक केवल तीन हजार रुपये के खरबूजे ही बेच पाया हूं।"
रामदास कहते हैं कि खरबूजे की फसल के लिए जितनी अधिक गर्मी और लू चलती है, फल उतने ही मीठे और अच्छे होते हैं। इस बार गर्मी तो है, लेकिन मौसम के लगातार बदलाव से फसल पर असर पड़ा है। "जो फल तैयार हो रहे हैं, उनमें मिठास नहीं है, इसलिए बाजार में दाम भी नहीं मिल रहे। इस साल किसानों को घाटा उठाना पड़ेगा," वे कहते हैं।
तामपान में उतार-चढ़ाव का असर
कृषि विज्ञान केंद्र धौरा, उन्नाव के वैज्ञानिक डॉ. जय कुमार बताते हैं कि खरबूजे के लिए गर्म और शुष्क मौसम उपयुक्त होता है, लेकिन ऐसे मौसम में रोग लगने की संभावना भी बढ़ जाती है। बुआई के समय 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए, जबकि 30 से 35 डिग्री का तापमान खरबूजे के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। लेकिन इस साल तापमान में लगातार उतार-चढ़ाव से न तो फल ठीक से लग पा रहे हैं और न ही रोगों से बचाव हो पा रहा है।
डॉ. कुमार का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह मौसम में बदलाव आया है, उसे देखते हुए पॉलीहाउस खेती जैसे विकल्पों को अपनाना जरूरी हो गया है।