डीएपी की कीमतें 750 डॉलर पर पहुंचीं, चीन से निर्यात बंद होने का असर
करीब माह भर पहले डीएपी की कीमतें 720 डॉलर प्रति टन से आसपास थीं। एक बड़ी उर्वरक कंपनी के पदाधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि कीमतों में तेजी का रुख रहेगा और इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कीमतें 2022 की तरह 900 डॉलर प्रति टन तक पहुंच जाए।

वैश्विक बाजार में डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की कीमतें 750 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। डीएपी की कीमतों में बढ़ोतरी का यह रुख जारी रहने की संभावना है। इसका सीधा असर उर्वरक सब्सिडी में बढ़ोतरी के रूप में पड़ने वाला है। उर्वरक उद्योग के सूत्रों के मुताबिक वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमतों में बढ़ोतरी की मुख्य वजह चीन से निर्यात का बंद होना है। भारत बड़ी मात्रा में चीन से डीएपी का आयात करता रहा है।
करीब माह भर पहले डीएपी की कीमतें 720 डॉलर प्रति टन से आसपास थीं। एक बड़ी उर्वरक कंपनी के पदाधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि कीमतों में तेजी का रुख रहेगा और इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कीमतें 2022 की तरह 900 डॉलर प्रति टन तक पहुंच जाए।
कीमतों में वृद्धि की मुख्य वजह चीन का डीएपी निर्यात बंद करना है। भारत चीन से यूरिया का भी आयात करता रहा है। सूत्रों का कहना है कि इस बार यूरिया आयात के टेंडर में चीन को शामिल नहीं किया गया है। इसके चलते चीन ने भारत को डीएपी का निर्यात बंद कर दिया है।
देश में सालाना करीब 100 लाख टन डीएपी की खपत होती है। डीएपी के मामले में भारत लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। हालांकि करीब 45 लाख टन डीएपी का देश में उत्पादन होता है, लेकिन इसके लिए रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिक एसिड का आयात किया जाता है। बाकी मात्रा का तैयार उर्वरक के रूप में आयात किया जाता है।
भारत ने डीएपी के लिए मोरक्को और सऊदी अरब की उर्वरक कंपनियों के साथ दीर्घकालिक आयात समझौते किए हैं। लेकिन यह डीएपी की उपलब्धता के लिए हैं और कीमत के लिए समझौते नहीं हैं। कीमत के मामले में बाजार में प्रचलित कीमत पर ही डीएपी की बिक्री यह कपंनियां भारतीय कंपनियों को करेंगी। कीमतों में बढ़ोतरी एक वजह भारत का बड़ा आयात भी है।
सरकार डीएपी पर न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत सब्सिडी देती है। जिसमें नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी), पोटाश (के) और सल्फर (एस) के लिए प्रति किलो सब्सिडी दर होती है। एनबीएस के तहत विनियंत्रित कॉम्प्लेक्स उर्वरकों पर सब्सिडी मिलती है। हालांकि इन उर्वरकों की कीमतें तय करने के लिए उर्वरक कंपनियां स्वतंत्र हैं, लेकिन परोक्ष रूप से सरकार ने डीएपी का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) 1350 रुपये प्रति बैग (50 किलो) तय कर रखा है। कंपनियों को आयात लागत और इस कीमत के बीच के अंतर की भरपाई सब्सिडी के जरिये की जाती है।
सरकार ने चालू खरीफ सीजन (अप्रैल, 2025 से सितंबर, 2025) के लिए डीएपी पर सब्सिडी को बढ़ाकर 27,799 रुपये प्रति टन कर दिया है। इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी के बाद 28 मार्च, 2025 को नोटिफिकेशन जारी किया गया था। कंपनियों को सब्सिडी और एमआरपी से होने वाली आय के आधार पर एक टन डीएपी पर 54,799 रुपये की कमाई होती है। लेकिन मौजूदा वैश्विक कीमतों पर डीएपी का आयात कपंनियों के लिए घाटे का सौदा है।
750 डॉलर प्रति टन की कीमत पर आयातित डीएपी की लागत करीब 68000 रुपये प्रति टन बैठती है। इसमें आयात के साथ ही पोर्ट हैंडलिंग, सीमा शुल्क और बैगिंग और दूसरी लागतें शामिल हैं। हालांकि उद्योग सूत्रों मुताबिक सरकार ने कैबिनेट में सहमति दी है कि वह एमआरपी और आयात कीमत के अंतर की भरपाई करेगी। इस स्थिति में उर्वरक कंपनियों को नुकसान तो नहीं होगा लेकिन सरकार की उर्वरक सब्सिडी बढ़ जाएगी।
इसके पहले रबी सीजन में सरकार ने एनबीएस तहत तय सब्सिडी के अलावा 3500 रुपये प्रति टन का स्पेशल इंसेटिव का प्रावधान किया था। हालांकि उद्योग सूत्रों का कहना है कि पिछले साल महंगा आयात किया गया था और अभी भी कंपनियों का पैसा सरकार पर बकाया है। हालांकि उपलब्धता के मामले में उद्योग का कहना है कि यह सामान्य बनी रहेगी। यह बात अलग है कि देश के कई हिस्सों में डीएपी के ब्लैक में बिकने की खबरें आती रही हैं। उद्योग सूत्रों का कहना कि कॉम्प्लेक्स उर्वरकों में अभी डीएपी सबसे सस्ता है और बाकी उर्वरक महंगे हैं लेकिन डीएपी काफी प्रभावी उर्वरक है और उसका फायदा ट्रेडर उठाते हैं। इस तरह के मामले सरकार के संज्ञान में आने की बात भी उद्योग सूत्र करते हैं।