उर्वरकों के उपयोग के असंतुलन पर अंकुश के लिए सब्सिडी नीति में बदलाव की जरूरत

पिछले करीब तीन दशक से उर्वरकों के उपयोग को संतुलित करने की कोशिश हो रही है, लेकिन इनका असंतुलन बढ़ता जा रहा है। साल 2009-10 में न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) का एक बड़ा उद्देश्य उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना था, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि यह संतुलन बिगड़ रहा है और उसकी वजह एनबीएस के तहत सब्सिडी की दरें बन रही हैं। चालू साल में यह असंतुलन काफी अधिक रहने का अनुमान है। उर्वरकों की खपत के आंकड़ों के मुताबिक इस साल जहां यूरिया का उपयोग रिकार्ड स्तर पर पहुंचने की संभावना है वहीं डाइ अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की खपत भी रिकार्ड स्तर पर जा सकती है

उर्वरकों के उपयोग के असंतुलन पर अंकुश के लिए सब्सिडी नीति में बदलाव की जरूरत
प्रतिकात्मक फोटो

पिछले करीब तीन दशक से उर्वरकों के उपयोग को संतुलित करने की कोशिश हो रही है, लेकिन इनका असंतुलन बढ़ता जा रहा है। साल 2009-10 में न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) का एक बड़ा उद्देश्य उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना था, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि यह संतुलन बिगड़ रहा है और उसकी वजह एनबीएस के तहत सब्सिडी की दरें बन रही हैं। चालू साल में यह असंतुलन काफी अधिक रहने का अनुमान है। उर्वरकों की खपत के आंकड़ों के मुताबिक इस साल जहां यूरिया का उपयोग रिकार्ड स्तर पर पहुंचने की संभावना है वहीं डाइ अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की खपत भी रिकार्ड स्तर पर जा सकती है। जबकि कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की खपत कम रहेगी। इनमें भी म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) की खपत में सबसे अधिक गिरावट आने की संभावना है।

पिछले करीब एक साल में उर्वरकों की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव आया है। पिछले साल 24 फरवरी को रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के चलते वैश्विक बाजार में उर्वरकों की कीमतें रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई थीं। यह बढ़ोतरी सभी उर्वरकों की कीमतों में हुई थी लेकिन यूरिया और डीएपी के दाम ज्यादा बढ़े। जून-जुलाई, 2022 में यूरिया की कीमत 900 से 1000 डॉलर प्रति टन और डीएपी की कीमत 950 से 960 डॉलर प्रति टन के बीच पहुंच गई थी। लेकिन अब स्थिति में तेजी से बदलाव आया है और अब जहां यूरिया की कीमत घटकर 550 डॉलर प्रति टन पर आ गई है वहीं डीएपी की कीमत भी 700 डॉलर प्रति टन के आसपास है। डीएपी के कच्चे माल फॉस्फोरिक एसिड की कीमत इस दौरान 1715 डॉलर प्रति टन से घटकर 1175 डॉलर प्रति टन और अमोनिया की 1575 डॉलर प्रति टन से घटकर 900 से 975 डॉलर प्रति टन रह गई हैं। सल्फर की कीमत अप्रैल-जून के 500 से 525 डॉलर प्रति टन से घटकर 180 डॉलर प्रति टन और रॉक फॉस्फेट की कीमत अक्तूबर-नवंबर के 300 से 310 डॉलर प्रति टन से घटकर 275 डॉलर प्रति टन पर आ गई हैं।

लेकिन म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) कीमत में गिरावट नहीं आई है। इसकी कीमत नवंबर, 2021 की 280 डॉलर प्रति टन के स्तर के मुकाबले अभी भी 590 डॉलर प्रति टन पर बनी हुई है। इसकी मुख्य वजह वैश्विक बाजार में एमओपी के निर्यात में रूस और उसके पड़ोसी बेलारूस की करीब 40 फीसदी हिस्सेदारी होना है। अभी तक इन देशों से इन उर्वरकों का निर्यात सहज नहीं हो पाया है।

इसका मतलब है कि एमओपी को छोड़कर बाकी उर्वरकों की कीमतों में जो उफान आया था वह उतर चुका है। इनकी कीमतों में कमी से सरकार को सब्सिडी की भारी बचत के रूप में फायदा होने वाला है और आगामी वित्त वर्ष के बजट में सरकार उर्वरक सब्सिडी के प्रावधान को कम कर सकती है। वैश्विक बाजार में खाद्य उत्पादों की कीमतों में भी कमी दर्ज की गई है और फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन ऑफ यूनाइटेड नेशंस (एफएओ) का खाद्य सूचकांक भी इसे साबित कर रहा है। यह सूचकांक मार्च 2022 में 159.7 पर पहुंच गया था जो दिसंबर, 2022 में गिरकर 132.4 पर आ गया है।

उर्वरकों की कीमतों में कमी के चलते देश में उर्वरकों की उपलब्धता का कोई संकट चालू रबी सीजन में देखने को नहीं मिला है जबकि पिछले साल स्थिति इससे काफी अलग थी। हालांकि एमओपी के मामले में स्थिति नहीं सुधरी है। दूसरे, सरकार का सब्सिडी बोझ कम होगा। चालू वित्त वर्ष के लिए सरकार ने 1,05222.32 करोड़ रुपये की उर्वरक सब्सिडी का प्रावधान किया था जबकि सब्सिडी 2.30 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है। इसकी वजह फरवरी, 2022 के बाद उर्वरकों की कीमतों में आई भारी तेजी रही है। हालांकि पिछले कुछ महीनों में कीमतें घटने से सरकार को कुछ सब्सिडी की बचत होगी अन्यथा यह सब्सिडी 2.5 लाख करोड़ रुपये तक जा सकती थी। पिछले वित्त वर्ष में सरकार ने 1,53,658.11 करोड़ रुपये की उर्वरक सब्सिडी दी थी। वहीं कीमतें घटने का फायदा यह होगा कि आगामी 1 फरवरी को नये वित्त वर्ष (2023-24) के लिए पेश किये जाने वाले बजट में सरकार सब्सिडी के बजटीय प्रावधान को डेढ़ लाख करोड़ रुपये के आसपास रख सकती है।

केंद्र सरकार ने अप्रैल 2010 से एनबीएस की शुरुआत की थी और उसका मकसद था यूरिया, एमओपी और डीएपी के उपयोग को कम करना। यूरिया में 46 फीसदी नाइट्रोजन होती है जबकि डीएपी में 46 फीसदी फॉस्फोरस (पी) और 18 फीसदी नाइट्रोजन (एन) होती है। एमओपी में 60 फीसदी पोटाश (के) होता है। एनबीएस के तहत एन, पी, के और सल्फर (एस) के लिए प्रति किलो के हिसाब से सब्सिडी दी जाती है। इसलिए एनबीएस का मकसद एक खास प्रॉडक्ट की बजाय कॉम्प्लेक्स उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देना था, जिनमें एन, पी, के और एस अलग-अलग अनुपात में होता है।

यहां दिये आंकड़े यह साबित करते हैं कि शुरु के कुछ साल में यह नीति कामयाब होती दिखी जब कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की खपत में लगातार बढ़ोतरी हुई। इस दौरान एनपीके के विभिन्न वेरिएंट की खपत बढ़ी और यूरिया, डीएपी और एमओपी की जगह इन उपयोग अधिक हुआ।  

    अखिल भारतीय स्तर पर उर्वरक उत्पादों की खपत (लाख टन में)

 

यूरिया

डीएपी

एमओपी

एनपीके वेरिएंट

एसएसपी

2009-10

266.73

104.92

46.34

80.25

26.51

2010-11

281.13

108.70

39.32

97.64

38.25

2011-12

295.65

101.91

30.29

103.95

47.46

2012-13

300.02

91.54

22.11

75.27

40.30

2013-14

306.00

73.57

22.80

72.64

38.79

2014-15

306.10

76.26

28.53

82.78

39.89

2015-16

306.35

91.07

24.67

88.21

42.53

2016-17

296.14

89.64

28.63

84.14

37.57

2017-18

298.94

92.94

31.58

85.96

34.39

2018-19

314.18

92.11

29.57

90.28

35.79

2019-20

336.95

101.00

27.87

98.57

44.03

2020-21

350.43

119.11

34.25

118.11

44.89

2021-22

341.80

92.72

24.56

114.79

56.81

Apr-Nov 21

217.53

70.47

19.26

85.88

42.67

Apr-Nov 22

232.53

83.53

11.23

69.96

38.70

स्रोतः फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया

लेकिन पिछले कुछ समय में यह स्थिति बदल गई है। साल 2017-18 तक यूरिया की खपत 300 लाख टन से कम थी जो 2020-21 में 350 लाख टन को पार कर गई और चालू वित्त वर्ष में भी इसके 350 लाख टन से अधिक रहने की संभावना है। वहीं एनपीके और एसएसपी की खपत 2019-20 में 2011-12 से भी कम रही। इसमें 2020-21 और 2021-22 में कुछ बढ़ोतरी हुई लेकिन यह बढ़ोतरी डीएपी और एमओपी की उपलब्धता के संकट के चलते हुई। लेकिन इस साल इसका रुख बदल गया है और डीएपी व यूरिया की अधिक खपत ने उर्वरकों के संतुलन को बिगाड़ दिया है। चालू वित्त वर्ष के अंत में बिक्री का जो स्तर होगा वह इस बदलाव को अधिक स्पष्ट कर देगा। अनुमान है कि इस साल के दौरान यूरिया की खपत 350 लाख टन से अधिक रहेगी, वहीं डीएपी की खपत 120 लाख टन तक पहुंच जाएगी जबिक एसएसपी और एमओपी की खपत में काफी गिरावट आएगी।

इसकी वजह उर्वरकों की कीमतों की स्थिति है। अक्सर डीएपी कॉम्प्लेक्स उर्वरकों से महंगा बिकता था लेकिन इस समय ऐसा नहीं है। जहां नबंवर 2012 से यूरिया की कीमत 5628 रुपये प्रति टन पर स्थिर है। वहीं डीएपी की कीमत 27000 रुपये प्रति टन है। जबकि 20:20:0:13 कॉम्प्लेक्स की कीमत 28000 रुपये प्रति टन, 10:26:26:0 कॉम्प्लेक्स और 12:32:16:0 कॉम्प्लेक्स की कीमत 29400 रुपये प्रति टन है। वहीं एमओपी की कीमत 34000 रुपये प्रति टन है।  हालांकि सरकार की नीति के मुताबिक एनबीएस के तहत विनियंत्रित उर्वरकों की कीमत पर सरकार का नियंत्रण नहीं है और सरकार द्वारा तय सब्सिडी के आधार पर उर्वरक कंपनियां कीमतें तय कर सकती हैं। लेकिन सरकार ने यूरिया के बाद सबसे अधिक लोकप्रिय उर्वरक डीएपी की कीमतों को कम रखने के लिए सब्सिडी में पिछले डेढ़ साल में भारी बढ़ोतरी की है। एनबीएस के तहत एन पर 98.02 रुपये प्रति किलो, पी पर 66.93 रुपये प्रति किलो, के पर 23.65 रुपये प्रति किलो और एस पर 6.12 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी दी जा रही है। खास बात यह है कि सरकार ने चालू रबी सीजन के लिए एन पर सब्सिडी में बढ़ोतरी की थी जबकि दूसरे न्यूट्रिएंट पर सब्सिडी में कटौती की थी। यह उर्वरकों के उपयोग में असंतुलन को बढ़ावा देने वाला कदम है। उर्वरकों के संतुलित उपयोग के लिए सरकार को नाइट्रोजन के मुकाबले दूसरे न्यूट्रिएंट पर अधिक सब्सिडी देनी चाहिए थी।

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