छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना में 80.42 करोड़ का भुगतान, महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर

छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना कई मायने में सफल साबित हो रही है। इससे पशुपालक किसानों की आमदनी तो बढ़ी ही है, हजारों लोगों को रोजगार भी मिला है, खास तौर से ग्रामीण महिलाओं को। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 25 फरवरी को इस योजना की 14वीं किस्त के रूप में प्रदेश के 1.54 लाख पशुपालकों के खाते में 4.94 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए। योजना के अंतर्गत अब तक 80.42 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है।

छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना में 80.42 करोड़ का भुगतान, महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर
गोधन योजना के लाभार्थी महेश हसवानी अपनी मोडिफाइड गाड़ी के साथ

छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी गोधन न्याय योजना कई मायने में सफल साबित हो रही है। इससे पशुपालक किसानों की आमदनी तो बढ़ी ही है, हजारों लोगों को रोजगार भी मिला है, खास तौर से ग्रामीण महिलाओं को। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 25 फरवरी को इस योजना की 14वीं किस्त के रूप में प्रदेश के 1.54 लाख पशुपालकों के खाते में 4.94 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए। योजना के अंतर्गत अब तक 80.42 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है। इस योजना के तहत जहां लोगों को रोजगार का नया विकल्प मिल रहा है वहीं महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं। साथ ही योजना के तहत तैयार हो रहा वर्मी कंपोस्ट किसानों को जैविक खेती की ओर बढ़ने में मददगार साबित रहा है जिसके चलते किसानों की आय में बढ़ोतरी की संभावनाएं बन रही हैं। 

दो हजार करोड़ रुपए का होगा वर्मी कम्पोस्ट का कारोबार

इस योजना की कामयाबी और अहमियत पर जोर देते हुए राज्य के मुुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि गोधन न्याय योजना सहित प्रदेश के गौठानों में मशरूम उत्पादन, कुक्कुट उत्पादन, मछली पालन, बकरी पालन, राइस मिल, कोदो-कुटकी और लाख प्रोसेसिंग जैसी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से हजारों लोगों को रोजगार मिला है। उन्होंने बताया कि गौठानों में महिला स्व-सहायता ने लगभग 6 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन किया है। कुछ दिनों में वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन 12 लाख क्विंटल हो जाने का अनुमान है। यदि साल भर में 20 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन होता है, तो इसका व्यापार दो हजार करोड़ रुपए का होगा। 

लघु वनोपजों के प्रसंस्करण के काम भी गौठानों से जुड़ेंगे

मुख्यमंत्री ने कहा कि गौठानों में महिला स्व-सहायता समूहों को लघु वनोपजों के प्रसंस्करण की गतिविधियों से जोड़ा जाना चाहिए। गौठानों में तैयार वर्मी कम्पोस्ट सहित अन्य उत्पादित वस्तुओं के विक्रय की सक्रिय पहल की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि गौठानों में तैयार वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री के लिए सहकारिता और अन्य विभागों के साथ मिलकर योजना बनाई गई है। सरगुजा से बस्तर तक लघु वनोपजों के प्रसंस्करण के काम को भी गौठानों तक जोड़ा जाएगा।

गौठानों में 8 हजार महिला स्व-सहायता समूह

गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट के अलावा मशरूम उत्पादन, मछली पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन, गोबर दीया, गमला, अगरबत्ती निर्माण सहित अन्य गतिविधियां भी हो रही हैं। इन गतिविधियों से महिला स्व-सहायता समूहों को अब तक 10 करोड़ रुपए की आमदनी हुई है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में स्वावलंबी गौठानों की संख्या 226 से बढ़कर 251 हो गई है। गौठानों में लगभग 8 हजार महिला स्व-सहायता समूहों की 59 हजार 942 महिलाएं विभिन्न आर्थिक गतिविधियां संचालित कर रही हैं। 

योजना के तहत हर 15 दिन में होता है भुगतान

मुख्यमंत्री बघेल ने 20 जुलाई 2020 को गोधन न्याय योजना शुरू की थी। मंत्रिमंडल की उपसमिति की सिफारिशों के आधार पर भूमिहीन लोगों से दो रुपए प्रति किलो की दर से गोबर खरीदने का निर्णय लिया गया। योजना के अंतर्गत हर 15 दिन में गोबर खरीदने के बदले राशि का भुगतान पशुपालकों और गोबर संग्राहकों को किया जा रहा है। योजना के तहत अब तक 33 लाख क्विंटल गोबर की खरीदी की जा चुकी है। योजना का एक और फायदा यह है कि गांवों में गोबर के उपले बनाकर उसे जलाने पर रोक से पर्यावरण भी शुद्ध हो रहा है। वर्मी कंपोस्ट के इस्तेमाल से प्रदेश में जैविक खेती बढ़ रही है। जिन लोगों के पास कृषि योग्य भूमि या मवेशी नहीं हैं, वे भी इस योजना के माध्यम से अच्छी आय प्राप्त कर रहे हैं।

लाभार्थियों में 40.5 फीसदी महिलाएं

इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदक का छत्तीसगढ़ का मूल निवासी होना जरूरी है। उसके पास आधार कार्ड, अपना बैंक खाता, मोबाइल नंबर आदि होना चाहिए। आवेदक को अपने पशुओं की संख्या के बारे में संबंधित विभाग को जानकारी देनी पड़ेगी। बड़ी जोत वाले किसान और व्यापारी इस योजना का लाभ नहीं ले सकते हैं। इस योजना के तहत गोबर विक्रेताओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के 51.51%, अनुसूचित जाति वर्ग के 37.91% और अनुसूचित जाति वर्ग के 8.36% लाभार्थी शामिल हैं। इसके अलावा 59.42% लाभार्थी पुरुष और बाकी 40.56% महिलाएं हैं। लाभार्थियों में 57 हजार से अधिक भूमिहीन किसान हैं।

इस योजना से लोगों का जीवन किस तरह से बदल रहा है उसे सामने रखने के लिए हमने लाभार्थियों के साथ बातचीत की। उसके आधार पर तैयार इन दो केस स्टडी के जरिये योजना के उद्देश्य और उसके फायदे को समझा  जा सकता है।

केस स्टडी - 1

पति के लिए सीता देवी ने खरीदी बाइक 

कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ जनपद पंचायत की सीता देवी की इच्छा थी कि उनके पति के पास अपनी मोटरसाइकल हो ताकि दोनों अपनी इच्छा के अनुसार अपने परिचितों के यहां आना-जाना कर सकें। गोधन न्याय योजना के जरिए उन्होंने अपना सपना साकार किया है। अब तक लगभग 40 टन गोबर बेचकर इस परिवार को 80 हजार रुपए मिले हैं। परिवार के पास 13 गाय, बैल और भैंसें हैं।

 केस स्टडी-  2

महेश ने गाड़ी मॉडिफाई कराई, रोजाना कमा रहे हैं एक हजार रुपए  

गोधन न्याय योजना का लाभ उठाने के लिए दुर्ग जिले के आदर्श नगर निवासी महेश हसवानी ने अपनी स्कॉर्पियो को 23 हजार रुपए खर्च कर मॉडिफाई कराया। इसमें वे हर दिन अपने और पड़ोसी गोपालकों का गोबर क्रय केंद्रों तक पहुंचाते हैं। वे हर दिन लगभग 600 किलो गोबर लेकर जाते हैं। केवल गाड़ी के भाड़े से महेश को हर दिन एक हजार रुपए की आमदनी हो रही है। यानी डीजल आदि का खर्च निकालने के बाद भी उन्हें 30 हजार रुपए महीने की आय हो रही है। अब उनकी योजना अपनी डेयरी बढ़ाने की है। इस स्टोरी की मुख्य फोटो में महेश हसवानी और उनकी मोडिफाइड कराई गई गाड़ी दिख रहे हैं।  

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