उत्तरी भारत कपास क्षेत्र में पिंक बॉलवार्म के नियंत्रण के लिए पीबीनॉट तकनीक का व्यापक स्तर पर परीक्षण 

प्रोजेक्ट बंधन के तहत पिंक बॉलवार्म से सुरक्षा के लिए दक्षिण एशिया जैव तकनीकी केंद्र (एसएबीसी), जोधपुर ने खरीफ 2022 के लिए उत्तरी कपास उत्पादन क्षेत्र में  केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान की तकनीकी निगरानी में  पीबीनॉट तकनीक का बड़े पैमाने पर परीक्षण और प्रदर्शन किया है। इससे कपास में पिंक बॉलवार्म के चलते किसानों को होने वाले नुकसान अध्ययन और प्रबंधन किया जाएगा

उत्तरी भारत कपास क्षेत्र में पिंक बॉलवार्म के नियंत्रण के लिए पीबीनॉट तकनीक का व्यापक स्तर पर परीक्षण 

प्रोजेक्ट बंधन के तहत पिंक बॉलवार्म से सुरक्षा के लिए दक्षिण एशिया जैव तकनीकी केंद्र (एसएबीसी), जोधपुर ने खरीफ 2022 के लिए उत्तरी कपास उत्पादन क्षेत्र में  केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान की तकनीकी निगरानी में  पीबीनॉट तकनीक का बड़े पैमाने पर परीक्षण और प्रदर्शन किया है। इससे कपास में पिंक बॉलवार्म के चलते किसानों को होने वाले नुकसान अध्ययन और प्रबंधन किया जाएगा।

बड़े पैमाने पर किए गए इस परीक्षण और प्रदर्शन को 7 क्लस्टर में 469 एकड़ में किया जा रहा है। प्रत्येक क्लस्टर में 65 एकड़ से ज्यादा है जो पंजाब के भटिंडा, मानसा और फाजिल्का; हरियाणा के सिरसा व फतेहाबाद व राजस्थान के गंगानगर व हनुमानगढ़ सहित सात जिलों में फैला हुआ है। यह उत्तरी कपास उत्पादन क्षेत्र के तीन राज्यों के कपास उत्पादन भौगोलिक क्षेत्र को प्रदर्शित करता है।

इस व्यापक प्रदर्शन के तहत किसानों के लिए खेतों पर ही आठ गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए। इनमें 650 से ज्यादा किसानों और खेत मजदूरों को प्रशिक्षित किया गया। एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन के तहत 7 जिलों के 7 जियोटैग मेगा कपास क्लस्टर में पीबीनॉट को सुव्यवस्थित रूप से बांधना, क्षेत्र कर्मचारियों को गहन प्रशिक्षण, स्थानीय कार्यकर्ताओं और समन्वयकों को ढ़ांचागत प्रशिक्षण दिया गया ताकि वे हर सप्ताह वयस्क पीबीडब्लू कीट, रोजेटी फूल और हरे टिंडों के नष्ट करने संबंधी आंकड़े एकत्र कर सकें। इनका इस्तेमाल वे पूरे मौसम के दौरान कीट गतिविधियों का अध्ययन करने व नियंत्रण उपाय सुझाने के लिए करेंगे।

सात जिलों में पीबीनॉट बांधने के अलावा प्रोजेक्ट बंधन के तहत पीबीनॉट उपचारित/नियंत्रित क्लस्टरों में बड़ी संख्या में फेरोमॉन ट्रैप वितरित किए गए हैं व लगाए गए हैं। कपास अवशेष व कपास के डंठलों को मच्छरदानी से ढंक दिया गया है ताकि पीबीडब्लू कीट को इन सभी 7 पीबीनॉट क्लस्टरों में प्रवेश करने और अंडे देने से रोका जा सके।

दक्षिण एशिया जैवप्रौद्योगिकी केंद्र, जोधपुर के अध्यक्ष डॉ. सीडी मायी के अनुसार “कीट मिलन व्यवधान फेरोमॉन आधारित तकनीकी नवाचार है जो पीबीडब्लू के प्रजनन चक्र को इस प्रकार प्रभावित करता है कि उनकी आबादी में अत्यधिेक गिरावट देखी जाती है और फसल खराबे में भी कमी आती है। पीबी नॉट डिस्पेंसर ऐसे सैक्स फेरोमॉन छोड़ता है जो नर कीट को मादा कीट को ढूंढने और मिलन से रोकता है। इससे इनका प्रजनन चक्र बाधित होता है। कीट मिलन रुकावट तकनीक पीबीडब्लू जैसे कीटों का प्रबंधन करने की सशक्त प्रक्रिया के तौर पर उभरा है”।

पीआई इंडस्ट्रीज लिमिटेड के सीईओ प्रशांत हेगड़े कहते हैं “पीआई फाउन्डेशन ने भारतीय कपास उत्पादकों के लिए अपने जापानी साझेदारों के साथ मिल कर यह कीट मिलन व्यवधान पीबीनॉट तकनीक नवाचार शुरू किया है। पिछले तीन सालों से भारत में व्यापक तौर पर इस तकनीक का परीक्षण किया गया है और यह पीबीडब्लू प्रबंधन में काफी प्रभावी पाई गई”।

केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड (सीआईबी) ने गुलाबी सुण्डी (पिंक बॉलवार्म) के प्रभावी प्रबंधन के लिए 2020 में भारत में पीबीनॉट की बिक्री के लिए पंजीकरण को मंजूरी दे दी थी। गत वर्ष पीआई ने सीआईसीआर नागपुर के तकनीकी पर्यवेक्षण में तीन सौ एकड़ से अधिक बड़े क्षेत्र में इस तकनीक के प्रदर्शन कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संचालित किया।

उत्तर भारत में बीटी कपास में गुलाबी सुण्डी पहली बार हरियाणा के जींद में कपास ओटने वाले कारखानों और तेल निकालने वाली इकाइयों में देखी गईं और 2018-19 में पंजाब के भटिंडा में देखी गई। इसका मुख्य कारण प्रतिरोधी पीबीडब्लू लार्वा का प्रवेश है, जो कपास के बीज के साथ केंद्र और दक्षिणी क्षेत्र से यहां तेल निकालने के लिए लाए जाते हैं। पंजाब के भटिंडा, मानसा और हरियाणा के फतेहाबाद व हिसार 2021 के मौसम में गुलाबी सुण्डी से सर्वाधिक प्रभावित देखे गए। पंजाब सरकार ने इस नुकसान का आंकलन 30 फीसदी बताया है।

केंद्रीय कपास अनुसंधान क्षेत्रीय स्टेशन, सिरसा के पूर्व प्रमुख डॉ दिलीप मोंगा के अनुसार “क्षिण एशिया जैव तकनीकी केंद्र द्वारा उत्तरी क्षेत्र के सात स्थानों पर शुरू किए गए कीट मिलन रुकावट कार्यक्रम प्रोजेक्ट बंधन से उम्मीद है कि यह एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन;(आईपीएम) के एक घटक के तौर पर इस पर्यावरण अनुकूल तकनीक के असर को प्रदर्शित करेंगे”।

अंबुजा सीमेंट फाउन्डेशन (एसीएफ) के कार्यक्रम समन्वयक राजेश सुथार ने कहा “इस वर्ष एसीएफ ने दक्षिण एशिया जैवप्रौद्योगिकी केंद्र के साथ मिलकर पंजाब व राजस्थान के कपास उत्पादक क्षेत्रों में कीट नियंत्रण के लिए पीबी नॉट तकनीक की शुरूआत की है। पीबी नॉट तकनीक वयस्क पीबीडब्लू कीट के मिलन में रुकावट डालकर कीट नियंत्रण में सक्षम है। उम्मीद है कि यह प्रभावी कीट नियंत्रक तकनीक साबित होगी और कपास उत्पादकों के लिए प्रभावी व सुगम प्रक्रिया होगी”।

भारत की ही तरह अमरीकी कपास उद्योग भी पिछले सौ वर्षों से अधिक समय से गुलाबी सुण्डी की समस्या से जूझ रहा है। पीबीडब्लू की नाशक प्रवृत्ति को देखते हुए अमरीका ने 2002 में देशव्यापी पीबीडब्लू उन्मूलन कार्यक्रम चलाया और 2018 तक देश को पीबीडब्लू मुक्त घोषित कर दिया गया। दक्षिण एशिया जैवप्रौद्योगिकी केंद्र (एसएबीसी) के संस्थापक निदेशक भागीरथ चौधरी के अनुसार “कीट मिलन रुकावट तकनीक नर कीट बंध्याकरण की उन मुख्य तकनीकों में से एक है जो अमरीका ने 2002 से 2018 के बीच वहां कई राज्यों में पीबीडब्लू उन्मूलन के लिए इस्तेमाल की। एसएबीसी खरीफ 2022-23 में देशव्यापी पीबीडब्लू प्रबंधन रणनीति एवं वैज्ञानिक कार्यक्रम की अगुवाई कर रहा है। आईसीएआर.सीआईसीआर के तकनीकी पर्यवेक्षण के तहत इस कार्यक्रम को नाम दिया गया है “प्रोजेक्ट बंधन : गुलाबी सुण्डी से सुरक्षा”

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