5 साल पहले के मुकाबले बजट में घटी ग्रामीण विकास की हिस्सेदारी 

जब ग्रामीण विकास में निवेश बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को उबारने की उम्मीद की जा रही थी, तब मनरेगा जैसी योजनाओं के बजट में कटौती आर्थिक नीति पर सवाल खड़े करती है।

5 साल पहले के मुकाबले बजट में घटी ग्रामीण विकास की हिस्सेदारी 

कोविड-19 संकट में लॉकडाउन के दौरान जिन योजनाओं और जिस ग्रामीण क्षेत्र ने देश की आबादी के बड़े हिस्से को सहारा दिया था, इस बजट में उनके खर्च में ही कटौती हो गई है। पांच साल पहले के मुकाबले केंद्र सरकार के कुल व्यय में ग्रामीण विकास की हिस्सेदारी घटी है। कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन से उबरने के लिए चालू वित्त वर्ष के बजट में जो बढ़ोतरी हुई थी, वह भी बरकरार नहीं रही है। 

ग्रामीण विकास के बजट में कटौती  

कोविड-19 महामारी के दौरान ग्रामीण विकास के लिए 2,16,342 करोड़ रूपये के बजट का संशोधित अनुमान था, जो कुल व्यय का 6.3 फीसदी बैठता है। लेकिन वर्ष 2021-22 के बजट में ग्रामीण विकास के लिए 1,94,633 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो कुल व्यय का 5.6 फीसदी है। मतलब, कुल व्यय में ग्रामीण विकास की हिस्सेदारी घटी है। जबकि अभी न तो महामारी का खतरा टला है और न ही रोजगार की स्थिति में विशेष सुधार आया है। 

कुल व्यय में घटी ग्रामीण विकास की हिस्सेदारी

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश के 68.84 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इतनी बड़ी आबादी के बावजूद पिछले पांच वर्षों के दौरान चालू वित्त वर्ष को छोड़कर केंद्र सरकार के कुल व्यय में ग्रामीण विकास की हिस्सेदारी घटी है। 

बजट दस्तावेजों के मुताबिक, वर्ष 2017-18 में ग्रामीण विकास पर कुल व्यय का 6.3 फीसदी खर्च हुआ था, जो वर्ष 2019-20 में घटकर 5.3 फीसदी रह गया। वर्ष 2020-21 के आम बजट में तो ग्रामीण विकास के लिए कुल व्यय का सिर्फ 4.8 फीसदी बजट आवंटित किया गया था, लेकिन लॉकडाउन के कारण मनरेगा समेत कई सामाजिक सहायता की योजनाओं का बजट बढ़ाया गया, जिसके चलते संशोधित अनुमानों में ग्रामीण विकास की हिस्सेदारी बढ़कर 6.3 फीसदी तक पहुंच गई।

लेकिन 2021-22 में फिर कुल व्यय में ग्रामीण विकास की हिस्सेदारी घटकर 5.6 फीसदी रह गई है। इस साल ग्रामीण विकास के लिए 1,94,633 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है जो चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान 2,16,342 करोड़ रुपये से करीब 10 फीसदी कम है। लगता है सरकार लॉकडाउन के दौरान जिस रास्ते पर आगे बढ़ी थी, उससे यू-टर्न ले रही है

बजट

ग्रामीण विकास बजट

(करोड़ रुपये में)

कुल व्यय

(करोड़ रुपये में) 

कुल व्यय में ग्रामीण विकास की हिस्सेदारी  (%)
2017-18 वास्तविक 134973 2141975 6.3
2018-19 वास्तविक 132803 2315113 5.7
2019-20 वास्तविक 142384 2686330 5.3
2020-21 बजट अनुमान 144817 3042230 4.8
2020-21 संशोधित अनुमान 216342 3450305 6.3
2021-22 बजट अनुमान 194633 3483236 5.6

स्रोत: https://www.indiabudget.gov.in

अगर मंत्रालय के लिहाज से देखें तो ग्रामीण विकास मंत्रालय का बजट 2020-21 के संशोधित अनुमान 1.98 लाख करोड़ रुपये से घटकर 2021-22 में 1.34 लाख करोड़ रुपये रह गया है। यह कटौती केंद्र सरकार की ग्रामीण विकास योजनाओं के बजट में करीब 66 हजार करोड़ रुपये की कमी के चलते हुई है।

मनरेगा का बजट दो साल पहले के स्तर पर 

अभूतपूर्व संकट के बाद पेश हुए वित्त वर्ष 2021-22 के बजट से उम्मीद थी, इसमें ग्रामीण विकास को प्रमुखता दी जाएगी। लेकिन केंद्र सरकार ने मनरेगा के बजट को चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान 1,11,500 करोड़ रुपये से घटाकर 73,000 करोड़ रुपये कर दिया है। वर्ष 2020-21 में मनरेगा का बजट 61,500 करोड़ रुपये था, जिसे लॉकडाउन में बढ़ाकर 1,11,500 करोड़ रुपये किया गया था। लेकिन 2021-22 में मनरेगा को आवंटित हुआ 73,000 करोड़ रुपये का बजट 2019-20 में 71,686 करोड़ रुपये के वास्तविक खर्च से थोड़ा ही अधिक है।

मतलब, मनरेगा का बजट दो साल पहले के स्तर पर पहुंच गया है, जबकि देश में बेरोजगारी और मनरेगा के तहत काम की मांग बढ़ी है। मनरेगा से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (पीएईजी) के मुताबिक, 2021-22 में मनरेगा के लिए आवंटित बजट से लगभग 262 करोड़ मानव दिवसों का रोजगार सृजित हो सकता है। जबकि मनरेगा पोर्टल के अनुसार, वर्ष 2020-21 में अब तक 330 करोड़ मानव दिवसों का रोजगार सृजित हो चुका है जो वित्त वर्ष के अंत तक 349 करोड़ मानव दिवस तक पहुंचने का अनुमान है। यानी, एक तरफ जहां मनरेगा के तहत काम की मांग बढ़ रही है, वहीं बजट में कटौती के चलते मनरेगा के रोजगार में लगभग 87 करोड़ मानव दिवसों की कमी होने जा रही है।     

सामाजिक सहायता के लिए अतिरिक्त बजट नहीं 

लॉकडाउन के दौरान वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, विकलांग पेंशन और महिलाओं के जनधन खातों में नकद भुगतान के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत चलने वाले राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम का बजट 2020-21 में 9,196 करोड़ रुपये के बजट अनुमान से बढ़ाकर 42,617 करोड़ रुपये कर दिया गया था। वर्ष 2021-22 में इसे घटाकर फिर से 9,200 करोड़ रुपये कर दिया है। जबकि अभी कोरोना का संकट टला नहीं है और लॉकडाउन के झटके से उबरने में भी समय लगेगा। 

इस बार के बजट आवंटन से स्पष्ट है कि बुजुर्गों और महिलाओं को लॉकडाउन के दौरान जिस तरह की मदद दी गई थी, अगले वित्त वर्ष में उसके लिए अतिरिक्त बजट का प्रावधान नहीं है। जबकि कोविड-19 महामारी के असर को देखते हुए सामाजिक सहायता कार्यक्रमों का बजट बढ़ाया जाना चाहिए था। 

लॉकडाउन के दौरान जिन योजनाओं के बजट में कटौती हुई, उनमें प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना भी शामिल है। ग्राम क्षेत्रों में सड़कों का जाल बिछाने में अहम भूमिका निभाने वाली इस योजना के लिए 2020-21 में 19,500 करोड़ का बजट रखा गया था, जिसे लॉकडाउन के दौरान घटाकर 13,706 करोड़ रुपये कर दिया था। वर्ष 2021-22 में इस योजना के लिए 15,000 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान है जो संशोधित अनुमान से तो अधिक है लेकिन गत वर्ष के बजट अनुमान से कम ही है।

ग्रामीण आजीविका मिशन का बजट बढ़ा

ग्रामीण विकास से जुड़ी योजनाओं के बजट में कटौतियों के बावजूद ग्रामीण आजीविका मिशन का बजट बढ़ा है। वर्ष 2020-21 में इस योजना के लिए 9,210 करोड़ रूपये आवंटित हुए थे जिसे लगभग 48 फीसदी बढ़ाकर 13,677 करोड़ रुपये किया गया है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने और छोटे उद्यमियों को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।

ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के सुधार के लिए नाबार्ड के तहत बने रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड को भी 30 हजार करोड़ रुपये से बढ़ाकर 40 हजार करोड़ रुपये किया गया है।

सबको आवास का लक्ष्य बड़ी चुनौती 

वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने ‘हाउसिंग फॉर ऑल’ का नारा देते हुए इंदिरा आवास योजना को बदलकर प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) की शुरुआत की थी। इसके तहत 2022 तक देश के ग्रामीण इलाकों में 2.95 करोड़ आवास बनाने का लक्ष्य था, जिसमें से अब तक करीब 1.29 करोड़ आवास बन चुके हैं। वर्ष 2021-22 में इस योजना के लिए 19,500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है जो चालू वित्त वर्ष के बजट व संशोधित अनुमानों के बराबर ही है। बजट बढ़ाये बगैर ‘हाउसिंग फॉर ऑल’ के लक्ष्य को पूरा करना भी सरकार के लिए चुनौती रहेगा।

रूर्बन मिशन के लिए बजट नाकाफी  

चुनिंदा ग्रामीण क्षेत्रों को शहरों की तर्ज पर विकसित करने के लिए 2016 में शुरू हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी नेशल रूर्बन मिशन के लिए 2020-21 में 600 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान था, जिसे संशोधित अनुमानों में घटाकर 372 करोड़ रुपये कर दिया। वर्ष 2021-22 के बजट में भी इस योजना के 600 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ है, जो देश में लाखों गांवों के लिहाज से बहुत कम है। 2019-20 में भी इस योजना पर महज 303 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

ग्रामीण विकास मंत्रालय की ज्यादातर योजनाओं का बजट चालू वित्त वर्ष के बजट या संशोधित अनुमानों से कम और 2019-20 के वास्तविक खर्च के आसपास रहना ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ाकर मांग और खपत में सुधार लाने की रणनीति के अनुरूप प्रतीत नहीं होता है।

 

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