आलू की किस्म को लेकर पेप्सी की याचिका दिल्ली हाई कोर्ट से खारिज, आईपीआर रद्द करने के आदेश को दी थी चुनौती  

पेप्सिको इंडिया होल्डिंग्स ने आईपीआर के उल्लंघन के नाम पर 2018 और 2019 में गुजरात के कई आलू किसानों के खिलाफ मुकदमे दायर किए थे। हालांकि, मई 2019 में किसानों के विरोध के बाद कंपनी ने उन सभी मामलों को बिना शर्त वापस ले लिया था। किसानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली एक्टिविस्ट कविता कुरुगंती ने इस मामले को लेकर पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण में एक आवेदन दायर किया था जिस पर सुनवाई करते हुए प्राधिकरण ने कंपनी का पीवीपी प्रमाण-पत्र रद्द करने का फैसला सुनाया था।

आलू की किस्म को लेकर पेप्सी की याचिका दिल्ली हाई कोर्ट से खारिज, आईपीआर रद्द करने के आदेश को दी थी चुनौती  

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पेप्सिको इंडिया होल्डिंग्स (पीआईएच) की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उसने आलू की किस्म के उसके आईपीआर पर प्लांट वैरिएटल प्रोटेक्शन (पीवीपी) प्रमाण-पत्र रद्द करने के आदेश को चुनौती दी थी। पेप्सिको के पीवीपी प्रमाण-पत्र रद्द करने का आदेश दिसंबर 2021 में पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (Protection of Plant Varieties & Farmers’ Rights Authority) ने दिया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए पेप्सिको ने दिसंबर 2021 में ही दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

पेप्सिको इंडिया होल्डिंग्स ने आईपीआर के उल्लंघन के नाम पर 2018 और 2019 में गुजरात के कई आलू किसानों के खिलाफ मुकदमे दायर किए थे। हालांकि, मई 2019 में किसानों के विरोध के बाद कंपनी ने उन सभी मामलों को बिना शर्त वापस ले लिया था। किसानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली एक्टिविस्ट कविता कुरुगंती ने इस मामले को लेकर पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण में एक आवेदन दायर किया था जिस पर सुनवाई करते हुए प्राधिकरण ने कंपनी का पीवीपी प्रमाण-पत्र रद्द करने का फैसला सुनाया था।

दिल्ली हाई कोर्ट के जज नवीन चावला ने 5 जुलाई, 2023 को कंपनी की याचिका खारिज करते हुए कहा कि  इस अपील में कोई योग्यता नहीं मिली इसलिए इसे खारिज किया जाता है। पौधों की विविधता और किसानों के अधिकार संरक्षण (पीपीवी और एफआर) अधिनियम, 2001 के तहत यह फैसला सुनाया गया है। यह कानून डब्ल्यूटीओ ट्रिप्स समझौते के मुताबिक बनाया गया है। इसके तहत किसानों को संरक्षित किस्म के बीज सहित अपने कृषि उपज को बचाने, बीज के रूप में उसका उपयोग करने, उसे बोने, दोबारा बोने, बीज का आदान-प्रदान करने, साझा करने या बेचने (बिना ब्रांड के) के अधिकार की स्वतंत्रता दी गई है। इस अधिनियम में किसानों के अधिकार अंतरराष्ट्रीय संधियों के मुताबिक हैं जो किसानों के अधिकारों को मान्यता देते हैं।

कविता कुरुगंती ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “यह अच्छा है कि न्यायमूर्ति नवीन चावला ने तीन आधार पर अपना फैसला दिया है। पहली बिक्री की तारीख के संबंध में गलत जानकारी देने, अयोग्य पंजीकरणकर्ता और कंपनी द्वारा कोर्ट को आवश्यक दस्तावेज मुहैया कराने में नाकाम रहने पर उन्होंने याचिका खारिज की है और प्राधिकरण के निरस्तीकरण आदेश को बरकरार रखा है। कंपनी को दिए गए प्रमाण-पत्र को रद्द करने के लिए सार्वजनिक हित में आवेदन करने में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति को फैसले में सही ठहराया गया है।”  

हालांकि, उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया है कि गुजरात के किसानों पर किए गए मुकदमे को न्यायमूर्ति चावला ने जनहित के उल्लंघन के प्राधिकरण के फैसले को बरकरार नहीं रखा है। प्राधिकरण ने अपने 3 दिसंबर, 2021 के आदेश में इस मुद्दे पर किसानों के उत्पीड़न को गंभीर बताया था। जबकि न्यायमूर्ति चावला ने अपने फैसले में कहा कि धारा 34 (एच) को रद्द करने के लिए स्पष्ट रूप से आधार नहीं बनाया गया है। धारा 34(एच) इस आधार पर निरस्तीकरण के बारे में है कि पंजीकरण प्रमाण-पत्र प्रदान करना सार्वजनिक हित में नहीं है। कविता कुरुगंती ने इसे गंभीर चिंता का विषय बताया है।

गुजरात के आलू किसानों के अधिकारों की शुरुआत से लड़ाई लड़ रहे एक्टिविस्ट कपिल शाह ने कहा, “पेप्सी के पास एफएल-2027 नामक आलू की किस्म पर प्लांट वेरिएटल सर्टिफिकेट है जिसके आधार पर उसने 2018 और 2019 में कई आलू किसानों पर अवैध रूप से मुकदमा दायर किया था। कंपनी ने इस तथ्य के बावजूद ऐसा किया कि किसानों के बीज के विषय पर भारत में कानून हैं जिसमें उनके अधिकार के प्रावधान बहुत स्पष्ट हैं। यह कानून किसानों को संरक्षित किस्मों सहित किसी भी बीज के किस्म जो वह चाहते हैं उन तक पहुंच का अधिकार देता है।”

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