रूरल वॉयस विशेषः जानिए सजावटी मछली पालने के तरीके, कितनी होगी इससे कमाई

सजावटी मछली पालन बिजनेस की सफलता के लिए इसके प्रजनन और मछलियों के पालन में उचित प्रबंधन प्रोटोकॉल अपनाने जरूरत होती है। मछली पालन का स्थान और ले आउट भी अहम होता है। इसके लिए भरपूर ताजा पानी, गुणवत्ता वाले ब्रूड स्टॉक और बिजली की निरंतर सप्लाई बुनियादी जरूरतें हैं

आज के दौर में अनेक लोग अपने घर और दफ़्तरों में सजावटी मछलियों को एक्वेरियम में पालने का शौक रखते हैं। सजावटी मछली पालन दुनिया में दूसरा सबसे पसंदीदा शौक है और इसके शौकीनों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। जिसके कारण इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा हो  रहे हैं। ऑर्नामेंटल फिश फार्मिग यानि सजावटी मछली पालन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर लोगों को रोज़गार दे सकता है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर भुवनेश्वर (सीफा) के डायरेक्टर डॉ. सरोज कुमार स्वैन ने ऑर्नामेंटल फिशरीज टेक्नॉलोजी पर रूरल वॉयस के एग्री टेक शो में विस्तार से बताया। इस शो को आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।

डॉ सरोज कुमार स्वैन ने बताया कि अनेक लोग सजावटी मछली पालन से जुड़े हैं और अच्छा कमा रहे हैं। लेकिन सजावटी मछली पालन बिजनेस की सफलता के लिए इसके प्रजनन और मछलियों के पालन में उचित प्रबंधन प्रोटोकॉल अपनाने जरूरत होती है। मछली पालन का स्थान और ले आउट भी अहम होता है। इसके लिए भरपूर ताजा पानी, गुणवत्ता वाले ब्रूड स्टॉक और बिजली की निरंतर सप्लाई बुनियादी जरूरतें हैं। अगर छोटे पैमाने पर सजावटी मछलियों का पालन करना है तो कम से कम 500 वर्गमीटर  जगह की जरूरत होती है। इसके लिए सीमेंट और क्रंकीट के टैंक बनाने होते हैं। बड़े पैमाने पर पालन के लिए एक हेक्टेयर से अधिक भूमि की जरूरत होती है।

सीफा डायरेक्टर ने बताया कि हमारे देश की नदियों  और जलाशयों में कुछ सजावटी मछलियां मिलती हैं। उनको लाकर हम अपने संस्थान में प्रजनन कराते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में 18 तरह सजावटी मछलियों की प्रजाति हैं। इनके अलावा विदेशी सजावटी मछलियां हैं जिनका प्रजनन कराके बीज  किसानों  को देते  हैं।

डॉ स्वैन ने बताया कि सामान्य मछलियों की तुलना में रंगीन मछलियां सॉफ्ट होती हैं। इसलिए इनको सीमेन्ट टैंकों में पाला जाता है। पानी की क्वालिटी बेहतर होनी चाहिए और तापमान भी कम होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मछलियों की प्रजाति के अनुसार सीमेंट के टैंक के अलावा मिट्टी के तालाबों की जरूरत होती है। तालाब की मछलियों को पक्षियों से बचाने के लिए नेट की भी जरूरत होती है।

कुछ प्रजातियां क्षारीय पानी में रहना पंसद करती हैं तो कुछ अम्लीय पानी में। इसलिए एक्वेरियम का बिजनेस करने वाले या एक्वेरियम का शौक रखने वालों को सजावटी मछलियों की प्रजातियों के बारे में जानना बेहद ज़रूरी होता है। उन्हें नियमित तौर पर आहार देना भी जरूरी है। आहार में 35 फीसदी प्रोटीन की मात्रा होनी चाहिए। इससे उनका विकास जल्दी और अच्छा होता है। तीन महीने बाद ये मछलियां बिक्री के लिए तैयार हो जाती हैं।

डॉ स्वैन ने बताया कि किसान सजावटी मछलियों का उत्पादन  अपनी क्षमता के अनुसार छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर पर शुरू कर सकता है। अगर किसान छोटी इकाई स्थापित करना चाहता है तो शेड, मछलियों के फीड और जरूरी समान के लिए शुरू में 50 से लेकर 70 हजार रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे हर महीने तीन से  पांच हजार रुपए की कमाई हो सकती है। करीब सवा लाख रुपए निवेश करने पर हर महीने  आठ से नौ हजार रुपए की कमाई हो सकती है। अगर  कोई 25 लाख  रुपए निवेश  करके बड़े स्तर पर मछली पालन करता है तो वह हर महीने सवा से डेढ़ लाख रूपये कमा सकता है।

डॉ स्वैन ने बताया रंगीन मछलियों के पालन के प्रोत्साहन के लिए सरकार की तरफ से सब्सिडी दी जा रही है। महिलाओं के लिए मत्स्य सम्पदा योजना के तहत 60 फीसदी  और पुरुषों के लिए 40 फीसदी तक का सब्सिडी सुविधा है।

सजावटी मछलियों का उत्पादन कर रहे ओडिशा के कटक जिले के गांव कोचिया नोयगा के किसान राजेश रंजन महापात्रा ने रूरल वॉयस एग्रीटेक शो में बताया कि उन्होंने सीफा भुवनेश्वर से ट्रेनिंग ली। अभी वे पांच एकड़ में सजावटी मछलियों का उत्पादन कर रहे हैं। उन्होंने बताया इस फार्म को विकसित करने में 47 लाख रुपए का खर्च आया और अभी हर साल पांच से सात  लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं। राजेश ने बताया कि सजावटी मछलियों का दाम सामान्य मछली की तुलना में 10 गुना तक मिल जाता है। इस व्यवसाय  को अपनाकर किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

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