आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने विकसित किया स्मार्ट माइक्रोजेल, उर्वरकों की कुशलता बढ़ाने में कारगर

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मंडी की एक शोध टीम ने प्राकृतिक पॉलिमर-आधारित स्मार्ट माइक्रोजेल विकसित किया है जो टिकाऊ कृषि में काफी उपयोगी साबित हो सकता है। इस माइक्रोजेल को नाइट्रोजन (एन) और फास्फोरस (पी) उर्वरकों की स्लो रिलीज के लिए तैयार किया गया है, जो पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए फसल पोषण को बढ़ाने के लिए एक कारगर समाधान हो सकता है।

आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने विकसित किया स्मार्ट माइक्रोजेल, उर्वरकों की कुशलता बढ़ाने में कारगर
आईआईटी मंडी की रिसर्च टीम

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मंडी की एक शोध टीम ने प्राकृतिक पॉलिमर-आधारित स्मार्ट माइक्रोजेल विकसित किया है जो टिकाऊ कृषि में काफी उपयोगी साबित हो सकता है। इस माइक्रोजेल को नाइट्रोजन (एन) और फास्फोरस (पी) उर्वरकों की स्लो रिलीज के लिए तैयार किया गया है, जो पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए फसल पोषण को बढ़ाने के लिए एक कारगर समाधान हो सकता है।

जैसे-जैसे दुनिया की आबादी बढ़ रही है, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होता जा रहा है। कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए उर्वरक अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन उनकी प्रभावशीलता अक्सर गैसीय अस्थिरता और लीचिंग जैसे कारकों पर प्रभाव डालती है। अत्यधिक उर्वरक उपयोग से न केवल उच्च लागत आती है बल्कि पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसमें भूजल और मिट्टी प्रदूषण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य खतरे भी शामिल हैं। इसलिए, टिकाऊ कृषि पद्धतियों के लिए फर्टिलाइजर के स्लो रिलीज में मददगार तकनीकी विकल्पों का महत्व बढ़ता जा रहा है। आईआईटी मंडी का शोध इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। 

इस शोध के निष्कर्ष अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के प्रतिष्ठित जर्नल एसीएस एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में प्रकाशित हुए हैं। शोध का नेतृत्व डॉ. गरिमा अग्रवाल ने अपनी टीम के साथ किया, जिसमें स्कूल ऑफ केमिकल साइंसेज, आईआईटी मंडी से अंकिता धीमान, पीयूष थापर और डिम्पी भारद्वाज शामिल हैं। अनुसंधान को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, भारत सरकार और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया था।

आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ केमिकल साइंसेज में सहायक प्रोफेसर डॉ. गरिमा अग्रवाल ने कहा, "हमने प्राकृतिक पॉलिमर-आधारित बहुक्रियाशील स्मार्ट माइक्रोजेल विकसित किया है। यह माइक्रोजेल पौधों के लिए फॉस्फोरस के संभावित स्रोत के रूप में काम करते हैं और लागत प्रभावी, बायोडिग्रेडेबल और पर्यावरण के अनुकूल हैं।"

डॉ. अग्रवाल ने कहा, “माइक्रोजेल फॉर्मूलेशन पर्यावरण के अनुकूल और बायोडिग्रेडेबल है, क्योंकि यह प्राकृतिक पॉलिमर से बना है। इसे मिट्टी में मिलाकर या पौधों की पत्तियों पर छिड़क कर लगाया जा सकता है। मक्के के पौधों के साथ हाल के अध्ययनों से पता चला है कि हमारा फॉर्मूलेशन शुद्ध यूरिया उर्वरक की तुलना में मक्के के बीज के अंकुरण और समग्र पौधों के विकास में काफी सुधार करता है। नाइट्रोजन और फास्फोरस उर्वरकों की यह निरंतर रिहाई उर्वरक के उपयोग में कटौती करते हुए फसलों को बढ़ने में मदद करती है।“

यह शोध टिकाऊ कृषि का मार्ग प्रशस्त करता है। पोषक तत्वों की आपूर्ति को अनुकूलित करने, फसल की पैदावार बढ़ाने और पारंपरिक उर्वरकों से जुड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों को कम करने यह मददगार साबित हो सकता है। टिकाऊ कृषि पद्धतियों की ओर बदलाव को सुविधाजनक बनाने के लिए उर्वरक जारी करने के तकनीकी विकल्प विकसित करना महत्वपूर्ण है। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कृषि, कारोबार और स्टार्ट-अप में विशेषज्ञता रखते हैं )

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