रूरल वॉयस विशेषः सेहत और सुंदरता दोनों में काम आने वाले सीवीड की खेती दे सकती है अच्छा मुनाफा

सीवीड पोषक तत्व से भरपूर होते हैं। इसका इस्तेमाल खाने से लेकर फसल की पैदावार बढ़ाने में और कास्टमेटिक में भी होने लगा है। उन्होंने कहा कि सीवीड में मुख्य पोषक तत्व पोटाश की अधिकता होती है। इनमें विटामिन्स, मिनरल्स, अमीनो एसिड्स और प्रोटीन भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए इसे एक सुपर फूड के रूप में देखने के साथ इनका दवाओं और कॉस्मेटिक्स में उपयोग बढ़ रहा है

भारत समेत पूरी दुनिया में शैवाल की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। सीवीड सूक्ष्म एल्गी यानी शैवाल होते हैं। ये समुद्र तट पर कम गहराई वाले इलाके में और चट्टानी किनारों पर उगते हैं। इनका इस्तेमाल खाद्य, ऊर्जा, रसायन और दवा उद्योग के साथ पोषण, बायोमेडिकल और पर्सनल केयर उत्पादों में भी किया जाने लगा है। घेघा, कैंसर, बोन रिप्लेसमेंट थेरेपी और कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी में भी इनका इस्तेमाल होता है। इसलिए इन्हें 21वीं सदी का सुपर और मेडिकल फूड भी कहते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा दिल्ली में माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ.सुनील पब्बी ने ओपेन सीवीड की खेती और इसके फायदे के बारे में रूरल वॉयस के एग्री टेक शो में जानकारी दी। इस शो को आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।

डॉ.पब्बी ने  बताया कि तमिलनाडु, गुजरात, लक्षद्वीप, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, गोवा, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और ओडिशा में समुद्री इलाकों  में सीवीड प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। भारत के समुद्री क्षेत्र में अभी तक सीवीड की 844 प्रजातियों का पता चला है। इनमें से रेड एल्गी की 434, ब्राउन एल्गी की 194 और ग्रीन एलगी की 216 प्रजातियां हैं।

उन्होंने बताया कि सीवीड पोषक तत्व से भरपूर होते हैं। इसका इस्तेमाल खाने से लेकर फसल की पैदावार बढ़ाने में और कास्टमेटिक में भी होने लगा है। उन्होंने कहा कि सीवीड में मुख्य पोषक तत्व पोटाश की अधिकता होती है। इनमें विटामिन्स, मिनरल्स, अमीनो एसिड्स और प्रोटीन भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए इसे एक सुपर फूड के रूप में देखने के साथ इनका दवाओं और कॉस्मेटिक्स में उपयोग बढ़ रहा है।

सीवीड के खास गुणों पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि इसमें नेचुरल गोंद और पालीसेकराइड के कारण फूड इंडस्ट्री में ज्यादा उपयोग हो रहा है। इसका उपयोग आइसक्रीम उद्योग में काफी बढ़ा है। उन्होंने कहा कि सीवीड तीखापन कम करने के साथ न्यूट्रिएंट बढ़ाने में काम आता हैं। यह जापान और कोरिया जैसे देशों में पहले से भोजन रूप उपयोग होता था। हमारे देश में इसका प्रचलन बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि हमारे देश में भी आयोडीन की कमी के कारण घेघा सहित कई रोग होते हैं। 

डॉ पब्बी ने बताया कि कॉस्मेटिक्स इंडस्ट्री में इसका उपयोग काफी बढ़ रहा है। सीवीड से तैयार कॉस्मेटिक्स को लोग सिंथेटिक कॉस्मेटिक्स के मुकाबले अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। इसकी वजह इन उत्पादों में प्राकृतिक और प्योर कंपाउंड्स और एक्सट्रैक्ट्स का होना है। उन्होंने कहा कि इसकी मांग को देखते हुए भारत सरकार ने मत्स्य संपदा योजना के तहत 2025 तक इसका उत्पादन 10 करोड़ टन ले जाने का लक्ष्य रखा है।

डॉ. पब्बी ने बताया कि पिछले 20-22 सालों से सीवीड पर काफी रिसर्च हुआ है। सीवीड की खेती समुद्र के किनारे कम गहरे पानी में होती है। इसके लिए बांस के राफ्ट या ट्यूब नेट का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए आदर्श स्थिति यह है कि पानी में नमक की मात्रा 30 पीपीटी हो, सतह चट्टानी या बलुई हो, औसत तापमान 26 से 30 डिग्री सेल्सियस रहता हो और पानी के बहाव की गति बहुत धीमी हो।

आमतौर पर तीन मीटर के वर्गाकार बांस के राफ्ट या ट्यूब मेट का इस्तेमाल किया जाता है जो समुद्र में तैरता रहता है। एक राफ्ट पर करीब 2000 रुपये का खर्च आता है। एक जगह पर इस तरह के कई राफ्ट रखे जाते हैं। सीवीड की एक फसल तैयार होने में 45 से 60 दिन लगते हैं। तैयार होने पर प्रति राफ्ट 40-50 से लेकर 240 से 260 किलो तक सी-वीड प्राप्त होता है।

पानी से निकालने के बाद इन्हें सुखाना पड़ता है। सूखने के बाद वजन दसवें हिस्सेके बराबर रह जाता है। यानी अगर गीला सीवीड 100 किलो का है तो सूखने के बाद वह 10 किलो रह जाएगा। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत समुद्री शैवाल की खेती के लिए प्रति यूनिट इनपुट के साथ-साथ कल्चर राफ्ट और मोनोलिन/ ट्यूब नेट के लिए क्रमशः 1500 और 8000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।

ब्लॉसम कोचर ब्यूटी प्रॉडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड की डॉ. ब्लॉसम कोचर ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में उपभोक्ताओं की पसंद में ग्रीन और इको फ्रैंडली उत्पादों की प्राथमिकता बढ़ी है। नेचुरल और सुरक्षित व अधिक प्रभावी प्राकृतिक तत्व होने के चलते इनसे तैयार स्किन केयर उत्पाद बेहतर नतीजे दे रहे हैं और वैश्विक प्रतिस्पर्धा व तेजी से बदलते बाजार में इनकी मांग बढ़ रही है। 

डॉ. कोचर ने कहा कि सीवीड कंपाउंड्स कॉस्मेटिक उत्पादों से बेहतर होते हैं। यही वजह है कि कॉस्मेटिक्स इंडस्ट्री में इनका उपयोग बढ़ रहा है। सीवीड की बायोएक्टिव प्रॉपर्टीज की वजह से इनसे तैयार स्किनकेयर उत्पाद तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। सीवीड से तैयार उत्पाद जहां त्वचा में नमी बरकरार रखते हैं वहीं फोटो प्रोटेक्टिव, एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी एलर्जिक, इंटी इनफ्लेमेटरी, एंटी एक्ने, एंटी रिंकलिंग, एंटी माइक्रोबियल और एंटी एजिंग जैसी प्रॉपर्टी भी सीवीड से तैयार कॉस्मेटिक उत्पादों में होती हैं।

डॉ. कोचर ने बताया कि कंपनी ने सीवीड का उपयोग कर कॉस्मेटिक्स उत्पादों की श्रृंखला को बाजार में उतारा है। इसको लोग काफी पंसद कर रहे हैं। उसकी मांग बढ़ी सिंथेटिक कॉस्मेटिक्स के मुकाबले अधिक है।

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