दाम बढ़ने से डीएपी की बिक्री 74 फीसदी गिरी, कुल उर्वरक बिक्री 25 फीसदी घटी

उर्वरक उत्पादक कंपनियों ने एक अप्रैल, 2021 से डिकंट्रोल उर्वरकों (कॉम्प्लेक्स उर्वरकों) की कीमतों में 45 फीसदी से 58 फीसदी तक की बढ़ोतरी कर दी थी। इसका नतीजा उर्वरकों की बिक्री में 25 फीसदी गिरावट के रूप में सामने आया है। सबसे अधिक 58 फीसदी तक की बढ़ोतरी वाले डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की बिक्री में 74 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

दाम बढ़ने से डीएपी की बिक्री 74 फीसदी गिरी, कुल उर्वरक बिक्री 25 फीसदी  घटी

कोविड महामारी में देश की अर्थव्यवस्था को सहारा देने वाले कृषि क्षेत्र और किसानों को लेकर सरकार की उदासीनता एक बड़े संकट की आहट दे रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे माल की कीमतों में भारी इजाफे के चलते उर्वरक उत्पादक कंपनियों ने एक अप्रैल, 2021 से डिकंट्रोल उर्वरकों (कॉम्प्लेक्स उर्वरकों) की कीमतों में 45 फीसदी से 58 फीसदी तक की बढ़ोतरी कर दी थी। इनमें डीएपी, एमओपी और कॉम्प्लेक्स उर्वरक शामिल हैं। इस कीमत बढ़ोतरी का बोझ किसान सहन नहीं कर पा रहे हैं और इसका नतीजा उर्वरकों की बिक्री में 25 फीसदी गिरावट के रूप में सामने आया है। सबसे अधिक 58 फीसदी तक की बढ़ोतरी वाले डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की बिक्री में 74 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। उद्योग सूत्रों ने रुरल वॉयस  को बताया कि अप्रैल, 2021 से अभी तक उर्वरकों की बिक्री में 25 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। सबसे अधिक गिरावट डीएपी की बिक्री में आई है और यह 74 फीसदी है। यही नहीं जिस यूरिया की कीमतों में कोई इजाफा नहीं हुआ है उसकी बिक्री में भी पिछले साल के मुकाबले 15 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। अगर यह स्थिति कायम रहती है तो इसका कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ना तय है। सामान्य मानसून के बावजूद कृषि उत्पादन में गिरावट आ सकती है और इसकी सबसे बड़ी वजह बढ़ती कीमतों के चलते किसानों द्वारा उर्वरकों की खपत में कमी करना होगा।

महत्वपूर्ण बात यह है कि इस अहम मुद्दे पर सरकार ने चुप्पी साध रखी है। अप्रैल में जब उर्वरक कंपनियों ने दाम बढ़ाना शुरू किया था जो उस समय यह सफाई दी गई कि सबसे बड़ी उर्वरक उत्पादक सहकारी संस्था इफको के पास कॉम्पलेक्स उर्वरकों का 11 लाख टन से अधिक पुराना स्टॉक है। वह पुरानी कीमत पर ही बिकेगा। इसका स्पष्टीकरण इफको ने भी दिया था। लेकिन इस बात का कोई जवाब नहीं आया कि एक अप्रैल से उत्पादन वाले स्टॉक की कीमतों में कमी होगी या नहीं। अब जब कीमत बढ़ोतरी की घोषणा को करीब 40 दिन बीत चुके हैं तो बाजार में नई कीमतों पर ही कॉम्पलेक्स उर्वरक किसानों को मिल रहे हैं। हां, यह बात सही है कि अभी तक इफको ने पुरानी कीमतों पर उर्वरक बेचें हैं लेकिन यह स्टॉक अब समाप्त होने को है। इफको के एक  वरिष्ठ अधिकारी ने रुरल वॉयस  को बताया कि सरकार ने सब्सिडी में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। ऐसे में अब हमारे पास भी नये स्टॉक को नई कीमतों पर बेचने के अलावा कोई चारा नहीं है। पुरानी कीमतों का इफको का स्टॉक अब लगभग समाप्त होने को है। वहीं जब दूसरी कंपनियां नई कीमतों पर ही कॉम्प्लेक्स उर्वरक बेच रही हैं तो हमें भी लागत के आधार पर तय कीमतों पर ही उर्वरक बेचने होंगे।

जिस तरह से चालू साल के पहले 40 दिन में उर्वरक बिक्री में गिरावट आई है वह इस बात का साफ संकेत है कि किसानों के उपर कीमत बढ़ोतरी का काफी प्रतिकूल असर पड़ा है। किसानों का कहना है कि उर्वरक कीमतों में बढ़ोतरी के चलते उत्पादन लागत में सीधे 10 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो गई है। इसकी भरपाई सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी से करेगी इसकी संभावना बहुत कम है।

कीमतों में आई इस बढ़ोतरी से किसानों पर पड़ रहे बोझ को कम करने को लेकर अभी तक सरकार की तरफ से किसी तरह का कदम नहीं उठाया गया है। कॉम्प्लेक्स उर्वरकों पर सरकार न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस)  के तहत फिक्स्ड सब्सिडी देती है और सरकार का इन उर्वरकों की कीमतों पर नियंत्रण नहीं है। कच्चे माल की कीमत के आधार पर कंपनियां दाम तय करती है। यही वजह है कि कच्चे माल की कीमतों में इजाफे के चलते उर्वरक उत्पादकों ने दाम बढ़ाये। वहीं सरकार ने इस अनुपात में सब्सिडी में बढ़ोतरी नहीं की। उद्योग सूत्रों का कहना है कि यह तो सरकार को तय करना है कि वह किसानों की राहत देना चाहती है या नहीं।

वैसे सरकार ने इस तरह की संभावना पर उस समय पानी फेर दिया था जब उर्वरक मंत्रालय ने गैर यूरिया उर्वरकों पर मिलने वाली सब्सिडी के लिए 9 अप्रैल को चालू साल के लिए न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) की दरों को पिछले साल (2020-21) के स्तर पर ही रखने के लिए आफिस मेमोरेंडम जारी किया था। उर्वरक एवं रसायन मंत्रालय द्वारा जारी मेमोरेंडम में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष (2021-22) में अगले आदेश तक एनबीएस की दरें पिछले वित्त वर्ष (2020-21) के स्तर पर जारी रहेंगी। इससे साफ हो गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको), कृषक भारती कोआपरेटिव लिमिटेड (कृभको) और निजी कंपनियों ने 1 अप्रैल, 2021 से डीएपी और कॉम्पलेक्स उर्वरकों की कीमतों में 58 फीसदी तक की जो बढ़ोतरी की है, उसके रोलबैक की संभावना नहीं रह गई है। कृभको, मंगलौर केमिकल एंड फर्टिलाइजर, जुआरी एग्रो और पारादीप फास्फेट लिमिटेड ने डीएपी की कीमत को बढ़ाकर 1700 रुपये प्रति बैग (50 किलो) कर दिया है। इफको की नई कीमतों में डीएपी का दाम 1200 रुपये से बढ़कर 1900 रुपये प्रति बैग (50किलो) हो गया है।

इफको ने अप्रैल में एक बयान जारी कर कहा था कि उसके पास 11.26 लाख का कॉम्प्लेक्स उर्वरकों का पुराना स्टॉक मौजूद है और उसकी बिक्री पुरानी कीमतों पर ही जाएगी। हालांकि सूत्रों का कहना है कि इस स्टॉक की बिक्री लगभग पूरी होने को है और अब नई कीमतों पर ही उर्वरक बेचने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है।

विनियंत्रित उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर सबसे पहले इफको की ओर से जारी एक अंतरविभागीय पत्र में जानकारी सामने आई थी लेकिन बाकी कंपनियों ने भी कीमतों में बढ़ोतरी की थी। 

केंद्र सरकार गैर-यूरिया उर्वरकों के लिए एनबीएस के तहत सब्सिडी की दरें तय करती है। यह दरें न्यूट्रिएंट के अनुसार होती हैं और उर्वरकों में इनकी मात्रा के अनुसार सब्सिडी का आकार तय होता है। इन न्यूट्रिएंट के लिए कच्चे माल में होने वाला उतार-चढ़ाव उर्वरकों की खुदरा कीमतें तय करता है क्योंकि सब्सिडी फिक्स होती है। पिछले छह माह में डीएपी और कॉम्पलेक्स उर्वरकों के कच्चे माल की कीमत में भारी बढ़ोतरी हुई है। नतीजा उर्वरक उत्पादकों ने इनकी कीमत में बढ़ोतरी कर दी। इस बढ़ोतरी को टालने का एक ही उपाय है और वह है सरकार द्वारा कच्चे माल की कीमतों  में इजाफे के अनुपात में सब्सिडी में बढ़ोतरी करना। लेकिन यह नहीं हुआ है और सरकार का 9 अप्रैल का आफिस मेमोरेंडम साफ करता है कि सरकार तुरंत एनबीएस दरों में कोई बदलाव नहीं करेगी।

सरकार ने एनबीएस की जिन दरों को चालू वित्त वर्ष में जारी रखने का आदेश जारी किया है वह 3 अप्रैल, 2020 को निर्धारित की गई थी। उनके तहत नाइट्रोजन पर 18.789 रुपये प्रति किलो, फॉस्फोरस पर 14.888 रुपये किलो, पोटाश पर 10.116 रुपये किलो, सल्फर पर 2.374 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी दी जाती है। इन सब्सिडी दरों के आधार पर 18 फीसदी नाइट्रोजन व 46 फीसदी फॉस्फोरस से बनने वाले डीएपी पर 10231 रुपये प्रति टन की सब्सिडी मिलती है। वहीं 60 फीसदी पोटाश वाले एमओपी पर सब्सिडी का स्तर 6070 रुपये प्रति टन और एनपीके 10:26:26 पर सब्सिडी का स्तर 8380 रुपये प्रति टन है। इस समय डीएपी की 540 डॉलर प्रति टन की आयातित कीमत पर 74.50 रुपये प्रति डॉलर के विनिमय रेट पर डीएपी की लागत 40230 रुपये प्रति टन बैठती है। इसके उपर 5.5 फीसदी सीमा शुल्क और बीमा, स्टोरेज, पैकेजिंग, ढुलाई भाड़ा और डीलर मार्जिन जैसे 3500 रुपये प्रति टन के खर्च जोड़कर लागत करीब 45950 रुपये प्रति टन बैठती है। जिसमें से 10231 रुपये की सब्सिडी घटाने और 5.5 फीसदी जीएसटी जोड़ने पर कंपनी को 37500 रुपये प्रति टन की लागत पड़ती है। इफको ने डीएपी का नया दाम 38000 रुपये प्रति टन तय किया है, जो 1900 रुपये प्रति बैग (50 किलो) बैठता है। जो लागत से 500 रुपये अधिक है। लेकिन जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे माल की कीमत बढ़ रही है और डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है तो यह मार्जिन भी कंपनी के लिए खत्म हो सकता है।

कीमतों में बढ़ोतरी के वक्त ही उद्योग सूत्रों ने रुरल वॉयस को बताया था कि उर्वरकों की कीमत में 45 फीसदी से 58 फीसदी तक की बढ़ोतरी से इनकी बिक्री में कमी आ सकती है। ताजा आंकड़े इस आशंका को सही साबित कर रहे हैं। लेकिन जिस तरह से उर्वरकों की कुल बिक्री में 25 फीसदी की गिरावट आई है वह सही संकेत नहीं हैं और इसका कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मुद्दे पर कोई राजनीतिक हलचल भी नहीं है और देश किसान संगठन भी इस मुद्दे पर बहुत मुखर नहीं है। यह बढ़ोतरी उर्वरकों की कीमतों में अभी तक की सबसे अधिक बढ़ोतरी है। वाजपेयी सरकार ने वित्त मंत्री रहते हुए यशवंत सिन्हा ने बजट में यूरिया की कीमत में दो रुपये किलो की बढ़ोतरी की घोषणा थी लेकिन राजनीतिक विरोध के चलते उस बढ़ोतरी को रोलबैक करना पड़ा था लेकिन अभी 58 फीसदी तक की भारी बढ़ोतरी पर भी कोई हलचल नजर नहीं आ रही है। जिस तरह से देश में करोना संक्रमण की दूसरी लहर आई है उसी पर सभी का ध्यान है और लगता है कि महामारी के संकट के चलते उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी का संवेदनशील मुद्दा पीछे चला गया है।

 

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