डीएपी की कीमत 80 हजार रुपये प्रति टन पर पहुंची, नये आयात सौदों में देरी से खरीफ सीजन में उपलब्धता पर पड़ सकता है असर 

उद्योग सूत्रों के मुताबिक इस समय देश में करीब 30 लाख टन डीएपी का स्टॉक है जबकि खरीफ सीजन में खपत करीब 50 लाख टन होती है। इसलिए अगर समय रहते और आयात नहीं होता है तो उससे आगामी खरीफ सीजन में उपलब्धता पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इसलिए सरकार को एनबीएस के तहत डीएपी और दूसरे कॉम्प्लेक्स उर्वरकों पर सब्सिडी बढ़ाने में देरी नहीं करनी चाहिए

डीएपी की कीमत 80 हजार रुपये प्रति टन पर पहुंची, नये आयात सौदों में देरी से खरीफ सीजन में उपलब्धता पर पड़ सकता है असर 
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के चलते वैश्विक बाजार में डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और उसके लिए जरूरी कच्चे माल फॉसफोरिक एसिड की ऊंची कीमतों के चलते ताजा कीमतों पर आयात करने पर उर्वरक कंपनियों को करीब बीस हजार रुपये प्रति टन के घाटे के चलते नए आयात सौदे नहीं हो रहे हैं। इसकी वजह सरकार द्वारा विनियंत्रित उर्वरकों के लिए न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत सब्सिडी में बढ़ोतरी नहीं किया जाना है। सरकार ने अक्तूबर, 2021 में एनबीएस के तहत डीएपी पर सब्सिडी में बढ़ोतरी की थी लेकिन उसके बावजूद नवंबर से कंपनियों को डीएपी के आयात पर नुकसान उठाना पड़ रहा है, क्योंकि पिछले एक साल में डीएपी और फॉस्फोरिस एसिड की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के चलते कीमतों में बढ़ोतरी तेज हुई क्योंकि रूस और उसका सहयोगी देश बेलारूस इन उर्वरकों के बड़े निर्यातक हैं। उर्वरक उद्योग सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि  युद्ध शुरू होने के चलते 24 फरवरी, 2022 के बाद से डीएपी आयात के नये सौदे नहीं हो रहे हैं। वहीं कुछ उद्योग सूत्रों का यह भी कहना है कि जिस तरह से कीमत बढ़ रही हैं उसके चलते वह दिन दूर नहीं जब आयातित डीएपी की कीमत एक लाख रुपये प्रति टन को छू जाएगी। 
उद्योग सूत्रों के मुताबिक इस समय देश में करीब 30 लाख टन डीएपी का स्टॉक है जबकि खरीफ सीजन में खपत करीब 50 लाख टन होती है। इसलिए अगर समय रहते और आयात नहीं होता है तो उससे आगामी खरीफ सीजन में उपलब्धता पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
उर्वरक उद्योग सूत्रों के मुताबिक पिछले माह डीएपी की कीमत में 150 रुपये प्रति बैग (50 किलो) की बढ़ोतरी के बावजूद घाटा काफी ज्यादा हो रहा है। सरकार ने पिछले साल मई, 2021 और उसके बाद अक्तूबर, 2021 में डीएपी पर सब्सिडी में भारी बढ़ोतरी कर इसकी कीमत को 1200 रुपये प्रति बैग पर स्थिर रखा था। लेकिन आयात कीमतों और कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते मार्च, 2022 में कंपनियों ने डीएपी की कीमत को बढ़ाकर 1350 रुपये प्रति बैग कर दिया है। उद्योग सूत्रों का कहना है कि इस समय डीएपी का बिक्री मूल्य 27 हजार रुपये प्रति टन है। सरकार 33 हजार रुपये प्रति टन की सब्सिडी दे रही है। लेकिन डीएपी की आयातित कीमत 80 हजार रुपये प्रति टन चल रही है। इस कीमत पर आयात करने का मतलब है 20 हजार रुपये प्रति टन का घाटा। उर्वरक उद्योग सूत्रों का दावा है कि कंपनियां नवंबर, 2021 से डीएपी पर घाटा झेल रही हैं।
सूत्रों के मुताबिक सरकार ने उद्योग को आश्वस्त किया है कि वह एनबीएस के तहत डीएपी पर सब्सिडी में बढ़ोतरी करेगी। इसके लिए करीब आठ हजार रुपये प्रति टन की अतिरिक्त सब्सिडी देने पर विचार किया जा रहा है। यह अतिरिक्त सब्सिडी बढ़ोतरी एक अप्रैल, 2022 से देने का संकेत सरकार ने उद्योग को दिया गया है। सरकार हर साल अप्रैल से एनबीएस योजना के तहत न्यूट्रिएंट्स पर सब्सिडी की दरें अधिसूचित करती है। लेकिन इस खबर के लिखे जाने तक नई दरें अधिसूचित नहीं हुई हैं। एनबीएस के तहत सरकार विनियंत्रित उर्वरकों के लिए उपयोग होने वाले उत्पादों पर सब्सिडी दरें तय करती है। डीएपी, एनपीके और एमओपी जैसे विनियंत्रित उर्वरकों की कीमतें कंपनियां तय करती हैं और यह कीमतें सब्सिडी दरों के आधार पर तय होती हैं। कॉम्पलेक्स उर्वरक विनियंत्रित उर्वरकों में शुमार होते हैं। यूरिया की कीमत सरकार तय करती है। डीएपी पर सब्सिडी की संभावित बढ़ोतरी पर उर्वरक उद्योग सूत्रों का कहना है कि इसके बावजूद उद्योग को करीब 12 हजार रुपये प्रति टन का घाटा होगा। 
इस समय खरीफ सीजन के लिए उर्वरकों की मांग निकलने में कुछ समय है क्योंकि खरीफ की बुआई में जून में तेजी आती है। वहीं उद्योग के मुताबिक देश में करीब 30 लाख टन डीएपी का स्टॉक मौजूद है। साथ ही पहले किये गए सौदों के कुछ इक्का-दुक्का शिपमेंट आ रहे हैं। खरीफ सीजन में डीएपी की कुल मांग करीब 50 लाख टन होती है। इसलिए अगर समय रहते सरकार सब्सिडी बढ़ोतरी का फैसला नहीं लेती है तो किसानों के लिए डीएपी की उपलब्धता का संकट पैदा हो सकता है। पिछले रबी सीजन में भी देश के कई हिस्सों में किसानों को डीएपी की उपलब्धता के संकट का सामना करना पड़ा था। 
वहीं वैश्विक बाजार में कीमतों के बढ़ने के चलते सरकार द्वारा चालू वित्त वर्ष (2022-23) के बजट में उर्वरक सब्सिडी को पिछले साल से कम रखने के प्रावधान पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा। जिस तरह से कीमतें बढ़ रही हैं उसके आधार पर उर्वरकों पर सरकार को पिछले साल से भी अधिक सब्सिडी देनी पड़ सकती है। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में यह बात भी लगभग तय है कि ऊंची कीमतों का खामियाजा किसानों को भी भुगतना पड़ेगा। पिछले माह डीएपी की कीमत में बढ़ोतरी और उसके पहले एनपीके उर्वरकों के कुछ वेरिएंट की कीमतों में कंपनियों द्वारा की गई बढ़ोतरी से यह संकेत साफ हो रहे हैं।
सरकार ने हाल के वर्षों में उर्वरक सब्सिडी में कटौती की है। 2020-21 में सरकार ने उर्वरक सब्सिडी 127,921.74 करोड़ रुपए की दी थी। इसे 2021-22 के बजट में घटाकर 79,529.68 करोड़ रुपए किया गया था। लेकिन इसे संशोधित करके 140,122.32 करोड़ रुपए करना पड़ा। 2022-23 के बजट में इसमें करीब 25 फ़ीसदी कटौती करके उर्वरक सब्सिडी 105,222.32 करोड़ रुपए निर्धारित की गई है।

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