डीएपी पर सब्सिडी घटने से उर्वरक कंपनियों को तीन हजार करोड़ का नुकसान

केंद्र सरकार ने चालू रबी सीजन (2022-23) के लिए न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) स्कीम में फॉस्फोरस (पी), पोटाश (के) और सल्फर (एस) पर सब्सिडी की दरों में कमी की है जबकि नाइट्रोजन (एन) की सब्सिडी दर में बढ़ोतरी की है। फॉस्फोरस और पोटाश की सब्सिडी दरों में की गई कमी से उर्वरक कंपनियों को करीब तीन हजार करोड़ रुपये का का नुकसान होने का अनुमान है। कंपनियों द्वारा डाइ अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) का जो आयात अक्तूबर, 2022 के पहले किया गया है उस पर भी सब्सिडी की नई दर ही लागू होगी। सरकार द्वारा सब्सिडी की गणना प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) के स्तर पर की जाती है। अक्तूबर के पहले का डीएपी आयात वैश्विक बाजार में डीएपी की मौजूदा 700 डॉलर प्रति टन की कीमत से  काफी अधिक कीमत पर किया गया था। जिसके चलते नई सब्सिडी दरों के आधार पर कंपनियों को करीब तीन हजार करोड़ रुपये का घाटा होने का अनुमान है

डीएपी पर सब्सिडी घटने से उर्वरक कंपनियों को तीन हजार करोड़ का नुकसान
प्रतीकात्मक फोटो

केंद्र सरकार ने चालू रबी सीजन (2022-23) के लिए न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) स्कीम में फॉस्फोरस (पी), पोटाश (के) और सल्फर (एस) पर सब्सिडी की दरों में कमी की है जबकि नाइट्रोजन (एन) की सब्सिडी दर में बढ़ोतरी की है। फॉस्फोरस और पोटाश की सब्सिडी दरों में की गई कमी से उर्वरक कंपनियों को करीब तीन हजार करोड़ रुपये का का नुकसान होने का अनुमान है। कंपनियों द्वारा डाइ अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) का जो आयात अक्तूबर, 2022 के पहले किया गया है उस पर भी सब्सिडी की नई दर ही लागू होगी। सरकार द्वारा सब्सिडी की गणना प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) के स्तर पर की जाती है। अक्तूबर के पहले का डीएपी आयात वैश्विक बाजार में डीएपी की मौजूदा 700 डॉलर प्रति टन की कीमत से  काफी अधिक कीमत पर किया गया था। जिसके चलते नई सब्सिडी दरों के आधार पर कंपनियों को करीब तीन हजार करोड़ रुपये का घाटा होने का अनुमान है।

उद्योग सूत्रों के मुताबिक चालू रबी सीजन में डीएपी उपलब्धता के पिछले साल के मुकाबले बेहतर होने की वजह कंपनियों द्वारा समय पर किया गया आयात है। आयात सौदों से लेकर किसानों तक उर्वरकों के पहुंचने में करीब दो से तीन माह का समय लगता है। ऐसे में डीएपी जो सौदे पहले किये गये थे उनकी कीमत ऊंची थी।  कई सौदे 900 डॉलर प्रति टन व उससे अधिक कीमत पर भी किये गये थे।

केंद्र सरकार ने 2 नवंबर को चालू  रबी सीजन (2022-23) में विनियंत्रित उर्वरकों के लिए एनबीएस की नई दरों को मंजूरी दी। इसके तहत नाइट्रोजन (एन) के लिए 98.02 रुपये प्रति किलो, फॉस्फोरस (पी) के लिए 66.93 रुपये प्रति किलो, पोटाश (के) के लिए 23.65 रुपये प्रति किलो और सल्फर (एस) के लिए 6.12 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी दर को स्वीकृति दी गई है। इनका उपयोग डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी), म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी), सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) जैसे फॉस्फेटिक और पोटाशिक उर्वरकों के विभिन्न वेरियंट का उत्पादन करने के लिए होता है। जिन्हें कॉम्प्लेक्स उर्वरक या एनपीके व पी एंड के उर्वरक कहा जाता है। नई एनबीएस दरें चालू रबी सीजन 2022-23 के लिए  एक अक्तूबर, 2022 से 31 मार्च, 2023 तक की अवधि के लिए होंगी। चालू रबी सीजन में एनबीएस के लिए 51875 करोड़ रुपये की उर्वरक सब्सिडी को मंजूरी दी गई है।

खरीफ के लिए तय की गई एनबीएस की दरों के तहत नाइट्रोजन (एन) पर 91.96 रुपये प्रति किलो, फॉस्फोरस (पी) पर 72.74 रुपये प्रति किलो, पोटाश (के) पर 25.31 रुपये प्रति किलो और सल्फर (एस) पर 6.94 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी दी गई थी। यह दरें खरीफ सीजन 2022 में 1 अप्रैल, 2022 से 30 सितंबर, 2022 तक के लिए लागू रहीं।

उद्योग सूत्रों का कहना है कि चालू रबी सीजन में सब्सिडी के लिए डीएपी 740 डॉलर प्रति टन की कीमत को आधार बनाया गया है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी की कीमत करीब 700 डॉलर प्रति टन चल रही है। ऐसे में मौजूदा सब्सिडी दर नये आयात के लिए अनुकूल है।

वैश्विक बाजार में ऊंची कीमतों के चलते सरकार ने खरीफ सीजन के लिए कंपनियों को 920 डॉलर प्रति टन की कीमत तक डीएपी आयात करने की सहमति दी थी। उसके चलते डीएपी पर सब्सिडी को बढ़ाकर 50 हजार 13 रुपये प्रति टन कर दिया था। रबी सीजन की एनबीएस दरों के आधार पर डीएपी पर सब्सिडी करीब तीन हजार रुपये प्रति टन कम हो गई है। उद्योग सूत्रों का कहना है कि  अक्तूबर के पहले ऊंची कीमतों पर बड़ी मात्रा में डीएपी का आयात किया गया था। इसमें से अधिकांश मात्रा की बिक्री पर सब्सिडी की नई दर लागू होगी। इस आधार पर कंपनियों का कहना है कि उनका नुकसान करीब तीन हजार करोड़ रुपये बैठता है।

उद्योग सूत्रों का कहना है कि इससे पैदा अनिश्चितता के चलते कंपनियों द्वारा उर्वरकों के आयात के फैसले लेने में झिझक बढ़ती है। सरकार लगातार यूरिया के उपयोग को कम करने पर जोर दे रही है ताकि उर्वरकों की खपत में पैदा असंतुलन को कम किया जा सके। उर्वरकों के असंतुलित उपयोग के पीछे यूरिया और दूसरे उर्वरकों की कीमतों के बीच भारी अंतर का होना एक बड़ा कारण है। पिछले करीब पांच साल में यूरिया की खपत काफी बढ़ गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि नाइट्रोजन पर सब्सिडी बढ़ाना और दूसरे न्यूट्रिएंट पर सब्सिडी घटाना उर्वरकों के संतुलित उपयोग के मकसद के प्रतिकूल है।

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