महंगाई से हर वर्ग प्रभावित, इसी कारण उद्योग भी नए निवेश से हिचक रहे

खुदरा महंगाई अगस्त में 7.62 फ़ीसदी दर्ज की गई जबकि जुलाई में यह 6.71 फ़ीसदी थी। थोक महंगाई भी पिछले महीने 12.41 फ़ीसदी रही है। समस्या यह है कि 12.41 फ़ीसदी का आंकड़ा अगस्त 2021 के 11.64 फ़ीसदी के बावजूद है। इसका सीधा मतलब यह है कि अगस्त 2020 से तुलना करें तो चीजें लगभग 24 फ़ीसदी महंगी हो गई हैं

महंगाई से हर वर्ग प्रभावित, इसी कारण उद्योग भी नए निवेश से हिचक रहे

अर्थव्यवस्था के लिए सबसे मुश्किल चुनौती बनकर उभरी महंगाई अब सबको चुभने लगी है। इसका असर अब सिर्फ उपभोक्ताओं तक सीमित नहीं रहा, जो बीते 2 वर्षों से इसका असर झेल रहे हैं। चाहे हम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी खुदरा महंगाई के लिहाज से देखें अथवा थोक मूल्य सूचकांक यानी थोक महंगाई के लिहाज से, ऐसा लगता है कि फिलहाल कुछ समय तक महंगाई दर ऊंचे स्तर पर बनी रहेगी। महंगाई का ऊंचा या नीचा आधार आंकड़ों की बाजीगरी के अलावा और कुछ नहीं, क्योंकि इसकी वजह से महंगाई बढ़ती या घटती हुई लग सकती है लेकिन संभव है कि चीजों के दाम ना घटें और उपभोक्ताओं को राहत ना मिले।

सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार खुदरा महंगाई अगस्त में 7.62 फ़ीसदी दर्ज की गई जबकि जुलाई में यह 6.71 फ़ीसदी थी। थोक महंगाई भी पिछले महीने 12.41 फ़ीसदी रही है। समस्या यह है कि 12.41 फ़ीसदी का आंकड़ा अगस्त 2021 के 11.64 फ़ीसदी के बावजूद है। इसका सीधा मतलब यह है कि अगस्त 2020 से तुलना करें तो चीजें लगभग 24 फ़ीसदी महंगी हो गई हैं। जब महंगाई इतनी बढ़ रही हो तब खपत की मांग को कैसे बरकरार रखा जा सकता है। आम तौर पर थोक महंगाई मंडियों और बिजनेस टू बिजनेस की कीमतों को बताती है और इसी से खुदरा महंगाई भी परिचालित होती है। लगातार 17 महीने से थोक महंगाई 10 फ़ीसदी से ऊपर बनी हुई है। खुदरा महंगाई भी रिजर्व बैंक की तरफ से निर्धारित 6 फ़ीसदी की अधिकतम सीमा से लगातार 8 महीने से ऊपर बनी हुई है।

गेहूं हो या अन्य अनाज, मंडियों में दाम काफी ऊंचे बने हुए हैं जिसकी वजह से रिटेल स्टोर में भी लोगों को ऊंची कीमत चुकानी पड़ रही है। उदाहरण के लिए थोक महंगाई के आंकड़ों को देखें तो प्राथमिक वस्तुओं के दाम 15 फ़ीसदी, गेहूं के 17.35 फ़ीसदी और अन्य अनाजों के 11.77 फ़ीसदी बढ़ गए। इसके कारणों में एक तो हरियाणा और पंजाब में जलवायु परिवर्तन की समस्या है। दूसरे, रूस यूक्रेन युद्ध के कारण ग्लोबल सप्लाई चेन प्रभावित है। अगर आप बेहतर क्वालिटी या साफ-सफाई के लिहाज से पैकिंग वाला गेहूं खरीदते हैं तो उस पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के रूप में अतिरिक्त खर्च होता है। यही स्थिति रोजाना खाई जाने वाली अन्य वस्तुओं की भी है।

मंडियों में धान के दाम तो सिर्फ 4.33 फ़ीसदी ही बढ़े हैं, इस साल असमान बारिश के कारण उत्पादन में होने वाले नुकसान का असर देर-सबेर पड़ने वाला है। फल तो 31.75 फीसदी महंगे हुए हैं और अब यह लग्जरी हो गए हैं। सब्जियां मंडियों में 22.29 फ़ीसदी महंगी हुई हैं और आम लोगों के भोजन से यह भी गायब होती जा रही हैं।

कच्चा पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, जिनका पेंट, केमिकल तथा फ़र्टिलाइज़र समेत अनेक औद्योगिक उत्पादों पर असर होता है, के दाम अगस्त में सालाना आधार पर 59.84 प्रतिशत बढ़ गए हैं। इसी तरह पेट्रोल, हाई स्पीड डीजल और रसोई गैस (एलपीजी) की कीमतों में भी काफी उछाल आया है।

जहां तक खुदरा महंगाई की बात है, तो हमेशा की तरह ग्रामीण आबादी पर इसका असर शहरों की तुलना में अधिक है। अगस्त 2022 में ग्रामीण क्षेत्र में खुदरा महंगाई दर 7.15 फ़ीसदी रही तो शहरी इलाकों में यह 6.72 फ़ीसदी दर्ज की गई।

अनाज और इनके दाम भी एक साल पहले की तुलना में 9.57 फ़ीसदी बढ़ गए। यहां भी ग्रामीण इलाकों में असर अधिक हुआ जहां इनकी महंगाई दर 10.08 फ़ीसदी रही। अनाज कौन उगाता है? किसान। लेकिन जब अनाज खरीदने की बारी आती है तो उन्हीं किसानों को अधिक पैसे चुकाने पड़ते हैं

शहरों और गांवों दोनों को मिलाकर देखें तो फल, सब्जियां, मसाले, दुग्ध उत्पाद, खाद्य पदार्थ तथा पेय पदार्थों की कीमतों में तेज वृद्धि हुई है। लेकिन मांस तथा इसके उत्पादों, दालों, चीनी और कन्फेक्शनरी की कीमतों में वृद्धि की रफ्तार कम है।

कपड़े और जूते चप्पल के दाम भी बढ़े हैं। खुदरा महंगाई में इनकी कीमतों में 10% की वृद्धि दर्ज की गई है। यही स्थिति पर्सनल केयर प्रोडक्ट की है, जिनके दामों में सात फ़ीसदी वृद्धि हुई है। जैसा कि पहले कहा गया है, महंगाई का असर सब पर हो रहा है। छोटी और बड़ी कंपनियां सभी इससे प्रभावित हो रही हैं, भले ही शेयर बाजार में तेजी का माहौल हो।

वास्तविकता तो यह है कि वैश्विक और घरेलू स्तर पर ऊंची महंगाई के कारण नया निवेश रुका हुआ है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को उद्योगों से कहना पड़ा कि आखिर वह कौन सी बाधा है जो निवेश करने से आपको रोक रही है। आखिर सरकार तो कॉरपोरेट टैक्स की दर घटा चुकी है और प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव भी दे रही है। इस सवाल का जवाब महंगाई में छिपा है। जब तक महंगाई दर ऊंची बनी रहेगी और इससे निपटने के लिए बड़े कदम नहीं उठाए जाते, तब तक अर्थव्यवस्था में वास्तविक अर्थों में बदलाव नहीं होंगे।

(प्रकाश चावला सीनियर इकोनॉमिक जर्नलिस्ट है और आर्थिक नीतियों पर लिखते हैं)

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