कपास का ड्यूटी फ्री आयात 31 दिसंबर तक बढ़ाया, दांव पर किसान हित

केंद्र सरकार ने पहले 30 सितंबर, 2025 तक ही कॉटन के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी थी। इसके पीछे तर्क था कि कॉटन का नया मार्केटिंग सीजन अक्तूबर में शुरू होगा और किसानों की उपज बाजार में आने पर उनके हितों पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। लेकिन अधिसूचना के 10 दिन के भीतर ही उस तर्क को नजरअंदाज कर दिया गया है

कपास का ड्यूटी फ्री आयात 31 दिसंबर तक बढ़ाया, दांव पर किसान हित

अमेरिका द्वारा भारत से होने वाले आयात पर 50 फीसदी शुल्क (टैरिफ) लगाने का फैसला लागू होने के अगले ही दिन भारत सरकार ने टेक्सटाइल निर्यातकों की मदद करने के लिए कॉटन के शुल्क-मुक्त आयात को 31 दिसंबर, 2025 तक बढ़ाने की घोषणा कर दी। यह कदम टेक्सटाइल उद्योग को सस्ते कॉटन की आपूर्ति बढ़ाने के मकसद से उठाया गया है, लेकिन सरकार के इस फैसले का खामियाजा देश के कपास किसानों को भुगतना पड़ सकता है। सरकार ने इससे पहले 30 सितंबर, 2025 तक ही कॉटन के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी थी। इसके पीछे तर्क था कि कॉटन का नया मार्केटिंग सीजन अक्तूबर में शुरू होगा और किसानों के उत्पाद के बाजार में आने पर उनके हितों पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा।

18 अगस्त तक कॉटन के आयात पर 11 फीसदी शुल्क लगता था, जिसमें 10 फीसदी आयात शुल्क और उस पर 10 फीसदी एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर सेस शामिल था। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि 18 अगस्त को जारी पहली अधिसूचना के दस दिन के भीतर ही सरकार ने उसी तर्क को नजरअंदाज कर दिया। सरकार के शुल्क-मुक्त कॉटन आयात के फैसले के दो दिन बाद ही कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने कॉटन की कीमत में 1100 रुपये प्रति कैंडी की कटौती कर दी थी।

उद्योग सूत्रों के मुताबिक, कॉटन पर आयात शुल्क समाप्त करने के फैसले से पहले सीसीआई 56,000 से 57,000 रुपये प्रति कैंडी की दर से कॉटन बेच रही थी, जिसे दो दिन में घटाकर 1100 रुपये प्रति कैंडी कम कर दिया गया। मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर कॉटन का आयात मूल्य करीब 51,000 रुपये प्रति कैंडी आ रहा है। जाहिर है कि जो आयातक 40 दिन की शुल्क-मुक्त आयात विंडो के चलते आयात का फैसला लेने में हिचक रहे थे, अब वे 31 दिसंबर, 2025 तक बड़ी मात्रा में कॉटन का आयात कर सकेंगे। इसका सीधा असर घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों पर पड़ेगा।

इस कदम का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ेगा क्योंकि करीब 300 लाख गांठ कपास उत्पादन में से सीसीआई केवल 100 लाख गांठ की ही खरीद करती है। सीसीआई किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद करती है। बाकी 200 लाख गांठ के लिए किसानों को बाजार पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में या तो सीसीआई किसानों से पूरी 300 लाख गांठ एमएसपी पर खरीदे, नहीं तो किसानों के लिए एमएसपी मिलना मुश्किल हो जाएगा। नए मार्केटिंग सीजन के लिए तय एमएसपी के आधार पर सीसीआई को 61,000 रुपये प्रति कैंडी की दर से कॉटन की खरीद करनी होगी, जबकि आयातित कॉटन की लागत करीब 51,000 रुपये प्रति कैंडी है। ऐसे में बाजार भाव एमएसपी से कम ही रहेगा। यदि कुल खरीद के आधार पर 10,000 रुपये प्रति कैंडी का अंतर रहता है तो सीसीआई और किसानों को लगभग 15,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।

‘ट्रम्प टैरिफ’ के बाद भारत से अमेरिका को होने वाला करीब 8 अरब डॉलर का टेक्सटाइल निर्यात प्रभावित होने की आशंका है। कॉटन इंडस्ट्री के एक विशेषज्ञ ने रूरल वॉयस को बताया कि सरकार ने टेक्सटाइल निर्यातकों के हित में कॉटन के शुल्क-मुक्त आयात को 31 दिसंबर तक जारी रखने की जो रणनीति अपनाई है, वह उचित नहीं है। बेहतर होता कि सरकार टेक्सटाइल उद्योग और किसानों के हितों के बीच संतुलन बनाने का कदम उठाती। निर्यातकों को सीधे निर्यात प्रोत्साहन देकर मदद करना अधिक प्रभावी विकल्प था। टेक्सटाइल निर्यातकों को कॉटन आयात की सुविधा मिलने से उनके ऊपर करीब 3 फीसदी का ही शुल्क पड़ता था। वहीं घरेलू कॉटन के बाजार में आने के सबसे अहम समय में शुल्क-मुक्त आयात का फैसला किसानों के लिए भारी साबित होगा। सूत्र का कहना है कि समस्या टेक्सटाइल निर्यातकों की है, लेकिन इसका फायदा घरेलू टेक्सटाइल उद्योग भी उठाएगा। एक तरह से यह किसानों के हितों की कीमत पर घरेलू उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाने वाला कदम होगा।

दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका के साथ भारत की द्विपक्षीय वार्ता घरेलू कृषि उत्पादों के बाजार को खोलने के मुद्दे पर ही अटकी है। भारत ने साफ किया था कि वह किसानों, डेयरी सेक्टर और मछुआरों के हितों की कीमत पर कोई समझौता नहीं करेगा। लेकिन सरकार का शुल्क-मुक्त कॉटन आयात 31 दिसंबर, 2025 तक बढ़ाने का फैसला किसानों के लिए मुश्किलें बढ़ाएगा।

पिछले कई साल से देश में कपास उत्पादन घट रहा है, जो 399 लाख गांठ से घटकर करीब 300 लाख गांठ रह गया है। घरेलू टेक्सटाइल क्षेत्र की खपत करीब 315 लाख गांठ है। अधिक उत्पादन के चलते भारत एक बड़े कॉटन निर्यातक देश के रूप में उभरा था, लेकिन अब हम शुद्ध आयातक हो गए हैं। चालू खरीफ सीजन में कपास का क्षेत्रफल करीब 3 लाख हेक्टेयर घट गया है। बेहतर बीज की कमी और कीट हमलों के चलते किसान कपास का रकबा कम कर रहे हैं। ऐसे में अगर उन्हें वाजिब कीमत नहीं मिली तो आने वाले दिनों में किसान दूसरी फसलों की ओर रुख करेंगे, जिससे देश के कॉटन उद्योग के लिए और मुश्किलें खड़ी होंगी। प्रधानमंत्री स्वदेशी को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं, ऐसे में शुल्क-मुक्त कॉटन आयात का यह फैसला किसानों के लिए सकारात्मक संदेश नहीं है।

सरकार को इस फैसले के चलते किसानों के विरोध का भी सामना करना पड़ सकता है। देश के बड़े किसान संगठनों ने पहले ही सरकार को चेताया था कि वे कॉटन के शुल्क-मुक्त आयात का विरोध करते हैं और जरूरत पड़ने पर आंदोलन करेंगे। यह बयान तब आया था जब सरकार ने 30 सितंबर, 2025 तक शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी थी। लेकिन अब जब इसे 31 दिसंबर, 2025 तक बढ़ा दिया गया है, तो विरोध और तेज हो सकता है।

Subscribe here to get interesting stuff and updates!