चालू वित्त वर्ष में उर्वरक सब्सिडी के ढाई लाख करोड़ रहने का अनुमान

चालू वित्त वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली उर्वरक सब्सिडी के ढाई लाख करोड़ रुपये पर पहुंचने का अनुमान है। हालांकि पिछले कुछ माह में अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों की कीमतों में कमी आने के चलते सब्सिडी में करीब 25 फीसदी की बचत होगी। वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमतें 950 डॉलर प्रति टन से घटकर 750 डॉलर प्रति टन पर आ गई हैं वहीं यूरिया की कीमतें भी 950 डॉलर प्रति टन से घटकर 650 डॉलर प्रति टन तक आ गई हैं। फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएआई) के चेयरमैन के. एस. राजू ने एक संवादादाता सम्मेलन में यह जानकारी दी

चालू वित्त वर्ष में उर्वरक सब्सिडी के ढाई लाख करोड़ रहने का अनुमान

चालू वित्त वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली उर्वरक सब्सिडी के ढाई लाख करोड़ रुपये पर पहुंचने का अनुमान है। हालांकि पिछले कुछ माह में अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों की कीमतों में कमी आने के चलते सब्सिडी में करीब 25 फीसदी की बचत होगी। वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमतें 1200 डॉलर प्रति टन से घटकर 750 डॉलर प्रति टन पर आ गई हैं। वहीं यूरिया की कीमतें भी 950 डॉलर प्रति टन से घटकर 650 डॉलर प्रति टन तक आ गई हैं। फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएआई) के चेयरमैन के. एस. राजू ने एक संवादादाता सम्मेलन में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सब्सिडी में भारी इजाफे के बावजूद उद्योग को सरकार समय पर सब्सिडी का भुगतान कर रही है। एफएआई के चेयरमैन के एस राजू ने एक संवाददाता सम्मेलन में यह बातें कहीं।

एफएआई द्वारा 7 नवंबर से 9 नवंबर तक एफएआई के सालाना सेमिनार 2022 का आयोजन किया जा रहा है, जिसका विषय है “फर्टिलाइजर सेक्टर बाई 2030”। सेमिनार में उर्वरक उद्योग और उससे जुड़े क्षेत्रों के प्रतिभागी देश में उर्वरक क्षेत्र के 2030 तक के स्वरूप को लेकर विभिन्न पहलुओं पर चर्चा होगी। सेमिनार का उद्घाटन केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया द्वारा किया जाएगा।

इस मौके पर इंडियन पोटाश लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. पी. एस. गहलोत ने कहा कि सेमिनार में डि कार्बनाइजेशन की प्रतिबद्धता के लक्ष्यों के लिए इनवायरनमेंट, सोशल और गर्वनेंस (ईएसजी) प्रोजेक्ट्स के लिए निवेश पर भी चर्चा होगी। हमें संसाधनों के उपयोग की दक्षता पर काम करना होगा। सिंचाई की मौजूदा फ्लडिंग की परंपरागत विधि में इस्तेमाल होने वाले पानी को बचाने के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग करना होता ताकि कम पानी में अधिक उत्पादन हासिल किया जा सके। इसी तरह मिट्टी के उर्वर तत्वों की स्थिति को सुधारने के लिए कम रसायनों का उपयोग करना होगा। इन सब कामों के लिए निवेश की जरूरत है। यह निवेश कहां से आयेगा इसे देखना होगा। जहां तक प्राकृतिक खेती की बात है तो इस बारे में उन्होंने कहा कि वह कृषि की मौजूदा प्रक्रिया का विकल्प नहीं हो सकती है।

इस मौके पर एफएआई के महानिदेशक अरविंद चौधरी ने कहा कि उद्योग सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है और सब्सिडी भुगतान की कोई समस्या नहीं है। सरकार ने बढ़ती सब्सिडी जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त राशि की व्यवस्था की है।

एफएआई के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. एस. नंद ने बताया कि चालू रबी सीजन की शुरुआत में 14 लाख टन डीएपी उपलब्ध था। उसके बाद आपूर्ति बढ़ने से अभी तक मांग को पूरा करने में कोई समस्या नहीं आई है। रबी सीजन में 58 लाख टन डीएपी की जरूरत पड़ती है। इसी तरह यूरिया की उपलब्धता को लेकर भी कोई समस्या नहीं है।

एक देश एक उर्वरक योजना के बारे में पूछे गये सवाल एफएआई चेयरमैन ने कहा कि उद्योग इससे सहमत है क्योंकि इससे किसी खास ब्रांड की मांग के चलते पैदा होने वाले असंतुलन को दूर किया जा सकेगा। लेकिन कंपनियों द्वारा खड़े किये गये ब्रांड के लिए निवेश के नुकसान पर उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। हालांकि उद्योग प्रतिनिधियों ने कहा कि उर्वरक के बैग पर कंपनी का ब्रांड भी अंकित होगा। उर्वरकों के साथ महंगे उत्पादों की टैगिंग पर एफएआई महानिदेशक ने कहा कि कंपनियों का नियंत्रण थोक विक्रेताओं तक होता है। ऐसे में कई बार रिटेलर के स्तर पर जो काम किया जाता है उस पर नियंत्रण में मुश्किल आती है। हालांकि फर्टिलाइजर कंट्रोल आर्डर (एफसीओ) के तहत राज्य सरकारें टैगिंग को नियंत्रित कर सकती हैं।     

 

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