मसाला निर्यात 31,760 करोड़ रुपये के पार, मिर्च और जीरा का हुआ सबसे ज्यादा निर्यात

भारत से मसाला निर्यात, खासकर मिर्च और जीरा के निर्यात में काफी बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2022-23 में कुल मसाला निर्यात 31,761.38 करोड़ रुपये (4 अरब अमेरिकी डॉलर) रहा है जो बड़ी उपलब्धि है। इसमें मिर्च का निर्यात 10,446 करोड़ रुपये और जीरा का निर्यात 4,193 करोड़ रुपये रहा है। इन दोनों का यह उच्चतम निर्यात स्तर है। साथ ही कुल निर्यात में इनकी हिस्सेदारी आधी है।

मसाला निर्यात 31,760 करोड़ रुपये के पार, मिर्च और जीरा का हुआ सबसे ज्यादा निर्यात

भारत से मसाला निर्यात, खासकर मिर्च और जीरा के निर्यात में काफी बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2022-23 में कुल मसाला निर्यात 31,761.38 करोड़ रुपये (4 अरब अमेरिकी डॉलर) रहा है जो बड़ी उपलब्धि है। इसमें मिर्च का निर्यात 10,446 करोड़ रुपये और जीरा का निर्यात 4,193 करोड़ रुपये रहा है। इन दोनों का यह उच्चतम निर्यात स्तर है। साथ ही कुल निर्यात में इनकी हिस्सेदारी आधी है।

देश में मिर्च और जीरा का उत्पादन ज्यादातर छोटे किसान करते हैं। जलवायु परिवर्तन से प्रेरित मौसम में अचानक बदलाव और फसलों पर कीड़ों के हमलों से निपटने के लिए वे दिन-रात कड़ी मेहनत और पसीना बहाते हैं। मिर्च किसानों के लिए आक्रामक कीट ब्लैक थ्रिप्स एक बुरा सपना रहा है।

जोधपुर स्थित दक्षिण एशिया जैव-प्रौद्योगिकी केंद्र के मुताबिक, पिछले दो साल से जीरा किसान चूसने वाले कीट एफिड के बढ़ते प्रकोप, गर्म पश्चिमी हवाओं और बेमौसम ओलावृष्टि एवं बारिश से पीड़ित हैं। इसके बावजूद किसानों के हौसले, पश्चिमी राजस्थान के जीरा उत्पादक क्षेत्रों में बायोटेक किसान की मदद से समय पर किए गए हस्तक्षेप और दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र द्वारा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मिर्च उत्पादक क्षेत्रों में ऑपरेशन नल्ला तमारा पुरुगु को लागू करने से किसानों को गुणवत्तापूर्ण मिर्च और जीरा का उत्पादन करने में मदद मिली है। इससे भारत में बाजार और मसाला अर्थव्यवस्था की संभावनाएं बढ़ी हैं।

दक्षिण एशिया जैव-प्रौद्योगिकी केंद्र के संस्थापक निदेशक भगीरथ चौधरी ने रूरल वॉयस से कहा, "आक्रामक कीटों का हमला भारत के लिए एक नियमित मामला बन गया है। यह हमारे छोटे किसानों और खाद्य सुरक्षा के लिए चिंता का एक बड़ा कारण है। पिछले दो साल से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के मिर्च किसान विनाशकारी आक्रामक ब्लैक थ्रिप्स से जूझ रहे हैं। ब्लैक थ्रिप्स मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के मिर्च उत्पादक क्षेत्रों तक पहुंच चुका है। यह मिर्च उत्पादकों के लिए परेशानी का कारण बन गया है। किसानों को इस भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है कि वे इससे निपटने के लिए कीटनाशकों का ज्यादा से ज्यादा छिड़काव करें। इसकी वजह से कीटनाशकों का छिड़काव 28 फीसदी बढ़ गया है और खेती की लागत में वृद्धि हुई है।"

उन्होंने कहा, "प्रभावी कीटनाशकों के तात्कालिक अनुमोदन और आक्रामक ब्लैक थ्रिप्स पर स्थानीय शोध और जमीनी साक्ष्य के आधार पर नियंत्रण उपायों के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) पैकेज के मानकीकरण के अभाव में स्थिति और खराब होती जा रही है। भारत सरकार को केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति (सीआईबीआरसी) के माध्यम से प्रभावी कीटनाशकों की मंजूरी में तेजी लानी चाहिए। साथ ही कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोगों को कम करने के लिए आईपीएम पर बड़े स्तर पर किसान जागरूकता कार्यक्रम लागू करना चाहिए। इससे निर्यात योग्य गुणवत्ता वाले मिर्च का उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।"

भगीरथ चौधरी ने कहा कि दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र ने एक मेगा प्रोजेक्ट "ऑपरेशन नल्ला तमारा पुरुगु" शुरू किया है जो किसानों के साथ मिलकर काम कर रहा है। इसके तहत ब्लैक थ्रिप्स, इसके जीवन चक्र, नुकसान के लक्षणों और नियंत्रण उपायों के बारे में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के किसानों को जागरूक किया जा रहा है।

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